हम मरना नहीं बोलते
इस पीड़ा की अभिव्यक्ति
हम चले जाने से किया करते हैं
हमें बताया जाता है
कि मरना बोलने से
सबकुछ खत्म हो जाने का अर्थ प्रकट होता है
जबकि चले जाने में
लौट आने की उम्मीद बची रहती है
जब एक वृक्ष जाता है
उसका बीज उसे लौटा लाता है
जब नदिया जातीं हैं
बादल उसको लौटाने धरती पर उतर आता है
हम जब भी निकलते हैं
सिर्फ यह देह लिए निकलते हैं
शेष सब यहीं छूट जाता है
वही पाने के लिए
हम यहां बार-बार लौटते हैं
यह धरती हमारा नइहर है
हम यहां से निकलते हैं
यहीं आकर किलकने लगते हैं फिर से
मिथिलेश कुमार राय: लेखक बिहार के सुपौल जनपद के रहने वाले हैं, ग्रामीण अंचल के विषयों को अपने लेखों व कविताओं में बड़े ही भावनात्मक संवेदना तथा पारंपरिक ज्ञान को बहुत ही जबरदस्त ढंग से प्रस्तुत किया है, इनसे mithileshray82@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।
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