जलवायु परिवर्तन
सवाल अब धरती को बचा लेने का है
- डॉ. कृष्ण कुमार मिश्र
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change, IPCC) ने 20 मार्च 2023 को जारी मूल्यांकन में जिन बातों का जिक्र किया है, वे बेहद चिंताजनक हैं। उसने भारत तथा दक्षिण एशिया के देशों के लिए चेतावनी जारी की है। विशेषज्ञों के समूह ने चेताया है कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो भारत में लोगों को खाद्यान्न संकट से जूझना पड़ेगा। पैनल का आकलन है कि 1 से 4 डिग्री सेल्शियस ताप वृद्धि होने से भारत में चावल का उत्पादन 10 से लेकर 30 प्रतिशत तक घट सकता है। यह बेहद कठिन स्थिति होगी। संस्था ने चेतावनी दी है कि 1.5 डिग्री ताप वृद्धि की निर्धारित सीमा बहुत संभव है कि वर्ष 2030 में ही पार हो जाए। रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रायद्वीप होने के कारण बहुत बड़े नुकसान का अंदेशा है। मुंबई, गोवा, चेन्नई जैसे स्थानों पर काफी बड़े तटीय इलाके समुद्र में समा जाएंगे। भारत में करीब 3.5 करोड़ लोग सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। तटीय शहरों में गर्म हवाओं के साथ अप्रत्याशित भारी बरसात का सामना करना पड़ेगा।
देश के मैदानी इलाकों में असहनीय गर्मी पड़ेगी। इन मैदानों में साल का औसत तापमान करीब 31 डिग्री सेल्शियस के करीब रहेगा। नदियों में अमूमन बाढ़ की स्थितियां रहेंगी। देश की जनसंख्या का कुल एक-तिहाई हिस्सा जल संकट का सामना करेगा। हिमालयी प्रदेशों में तापवृद्धि से ग्लेशियर पिघलेंगे, जिससे वहां बड़ी तथा व्यापक तबाही होगी। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव, श्री एंटोनियो गुटेरेस ने अपील जारी की है कि सभी देश तत्काल हर स्तर पर कार्बन उत्सर्जन रोकने, तथा जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को वर्ष 2035 तक दो-तिहाई घटाने का संकल्प लें, तथा उसके लिए अभी से निष्ठापूर्वक काम करें। उन्होंने संपन्न राष्ट्रों से सन् 2040 तक कोयला, तेल तथा गैस की खपत को पूर्णतः रोकने की अपील की। महासचिव ने यकीन जाहिर किया कि 1.5 डिग्री सेल्शियस की सीमा कठिन जरूर है, लेकिन नामुमकिन बिल्कुल नहीं है। हाँ, उसके लिए हर स्तर पर सभी को प्रयास करना होगा। उनका कहना है कि सभी देशों को सन् 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य हेतु कटिबद्ध होना ही पड़ेगा। दुनिया का तापमान औद्योगीकरण के पूर्वकाल से लेकर अब तक करीब 1.1 डिग्री सेल्शियस बढ़ चुका है।
जलवायु परिवर्तन वास्तव में आज दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती है। यह सभी देशों के लिए गहरी चिंता के साथ-साथ गहन चिंतन-मनन का भी विषय बन गया है। अब तो यहां तक कहा जा रहा है कि यह सवाल अब धरतीरूपी जीवित ग्रह को बचा लेने का बन चुका है। पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि इंसान ने अपने तौर-तरीकों में बहुत जल्दी, तथा व्यापक तौर पर बदलाव नहीं किया तो फिर धरती पर भयावह संकट का आना करीब-करीब तय है। जलवायु परिवर्तन से धरती का तापमान बढ रहा है। मौसम-चक्र में परिवर्तन हो रहा है। भूमंडल का तापमान बढ़ने से समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। इससे दुनिया के अनेक तटीय इलाके धीरे-धीरे सागर में समाते जा रहे हैं। छोटे-छोटे अनेक टापुओं का अस्तित्व मिटने, तथा उनके महासागरों में विलीन हो जाने का खतरा है। जलवायु परिवर्तन से धरती पर मौजूद अनेक जीव प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी। मौसम-चक्र में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिलेंगे, जो कि अब दिखाई देना शुरू हो चुका है। कहीं अतिवृष्टि होगी, तो कहीं अनावृष्टि। धरती के बहुत बड़े भूभाग पर वातावरणीय परिवर्तनों के चलते खाद्य-संकट पैदा हो जाएगा। जलवायु परिवर्तन के चलते धरती के अनेक इलाकों से जन समुदायों का बड़े पैमाने पर भौगोलिक विस्थापन होगा।
सृष्टि विषयक सनातन चिंतन
भारत की सनातन परंपरा के अनुसार सृष्टि का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है। इन्हें ब्रह्मांड में व्याप्त लौकिक एवं अलौकिक वस्तुओं का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और परिणति माना गया है। ब्रह्मांड में प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुओं में पंचतत्व की अलग-अलग मात्रा मौजूद है। अपने उद्भव के बाद सभी वस्तुएँ नश्वरता को प्राप्त होकर इनमें ही विलीन हो जाती है। ये पंचतत्त्व है; जल, वायु, मिट्टी, अग्नि तथा आकाश। सृष्टि में सभी जड़ तथा चेतन इन्हीं पंचमहाभूतों से निर्मित हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा ही है-
‘क्षिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित यह अधम सरीरा ।।
सनातन जीवन पद्धति की उपासना प्रक्रिया में यजुर्वेद के इस शांति मंत्र का प्रयोग किया जाता है। इसमें कामना की गयी है कि त्रिभुवन में, जल में, थल में, अन्तरिक्ष में, अग्नि में, पवन में, औषधि में, वनस्पति में, वन-उपवन में, प्राणिमात्र के तन, मन और जगत के कण कण में, शांति हो, समरसता हो। हमारे शास्त्रों में असत्य से सत्य की ओर जाने की कामना है, अंधकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान का भाव है, तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर चलने की बात कही गयी है। शास्त्रों में बारंबार प्राकृतिक शक्तियों तथा देवों के साहचर्य हेतु प्रार्थन की गयी है। यथा-
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष, शांति पृथ्वी:
शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शांति : ।
वनस्पत्य: शांतिविश्वे: देवा: शांति,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सामा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति:! शान्ति:! शान्ति:॥
शान्ति: कीजिए, भगवन त्रिभुवन में, त्रिलोक में, जल में, थल में और गगन में,
अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन में,
सकल विश्व में, अवचेतन में !
शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन, नगर, ग्राम और भवन में
जीवमात्र के तन, मन और जगत के कण कण में,
ॐ शान्ति: ! शान्ति: ! शान्ति:॥
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्माऽमृतं गमय।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
- बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28।
भावार्थ
इसका अर्थ है कि मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। ओम शांति! शांति! शांति!
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः।
शं नो भवत्वर्यमा।
शं नो इन्द्रो बृहस्पतिः।
शं नो विष्णुरुरुक्रमः।
नमो ब्रह्मणे।
नमस्ते वायो।
त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि।
ॠतं वदिष्यामि।
सत्यं वदिष्यामि।
तन्मामवतु।
तद्वक्तारमवतु।
अवतु माम्।
अवतु वक्तारम्।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
- तैत्तिरीयोपनिषद्
भावार्थ
देवता हमारे मित्र हो, हमारे साथ हो, वरुण हमारे साथ हो,
आदरणीय आर्य कृपया हमसे जुड़ें,
इंद्र और बृहस्पति हमारे अनुकूल हों,
विष्णु लंबी प्रगति के साथ हमारे साथ रहें,
ब्राह्मण को नमस्कार
वायु को नमस्कार,
आप वास्तव में दृश्यमान ब्रह्म हैं,
मैं घोषणा करता हूं, आप वास्तव में दृश्यमान ब्रह्म हैं,
मैं ईश्वरीय सत्य की बात करता हूँ,
मैं परम सत्य की बात करता हूं,
मेरी रक्षा करो,
जो मालिक की रक्षा करता है
मेरी रक्षा करो,
गुरु की रक्षा करो
शांति शांति शांति।
कार्बन उत्सर्जन रोकने की चुनौती
दुनिया के सामने पहल लक्ष्य है वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन स्तर को हासिल करना, जिससे कि इस सदी के अंत तक 1.5 अंश सेल्शियस की तापवृद्धि के लक्ष्य को पाया जा सके। इसके लिए जरूरी होगा कि ग्रीन एनर्जी का प्रयोग किया जाए, कोयले के इस्तेमाल में कमी लायी जाए, वनों का कटाव रोका जाए, तथा इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ा जाए। समय की मांग है कि कार्बन डाईआक्साइड (CO2) के उत्सर्जन में 1.4 गिगाटन की कटौती प्रतिवर्ष की दर से लागू हो। इस समय दुनिया भर में सालाना CO2उत्सर्जन 36.6 गिगाटन है। ग्लोबल कार्बन बजट, जो कि 380 गिगाटन है, वह आगामी सन् 2031 में खतम हो जाएगा। कोविड-19 के वैश्विक संकट के दौरान जीवाश्म ईंधन की खपत कम हुई थी। लेकिन अब कोरोना के पीछे छूटने के साथ ही औद्योगिक गतिविधियां पहले के स्तर पर पहुंच गयी हैं।
दुनिया के कार्बन उत्सर्जन में भारत का योगदान कुल 8 प्रतिशत का ही है। चीन का उत्सर्जन भारत का चार गुना, यानी करीब 32 प्रतिशत है। औद्योगीकरण के चलते यूरोप तथा अमेरिका ने अब तक सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन किया है। इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने की नैतिक जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आती है। एशिया तथा अफ्रीका महाद्वीप तो हाल के कुछ दशकों से विकास पथ पर चलना शुरू किये हैं। इसलिए उन्हें नयी प्रौद्योगिकी के साथ वित्तीय साधन भी उपलब्ध कराना, विकसित राष्ट्रों की जिम्मेदारी है जिससे ये देश नवीकरणीय तथा दूसरे वैकल्पिक स्रोतों के विकास पर काम कर सकें। फिलहाल भारत ने वर्ष 2070 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प व्यक्त किया है।
दिनोंदिन गर्म होती धरती
जीवाश्म ईंधन के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड गैस तथा दूसरी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। इन गैसों की सघन मौजूदगी के कारण धरती द्वारा निर्मुक्त सूर्य की अवशोषित गरमी वातावरण से बाहर नहीं जा पाती है। ये गैसें एक आवरण का काम करती हैं तथा ऊष्मा को बाहर नहीं जाने देतीं। इससे धरती गर्म हो रही है। ध्यान देने की बात है कि बदरी वाली रातें अपेक्षाकृत गर्म होती हैं। उसका कारण यह है कि दिन में धरती द्वारा सोखी गयी ऊष्मा रात्रि में बादलों के कारण वातावरण से बाहर नहीं जा पाती। जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों का बड़ी संख्या में विस्थापन हो रहा है। प्राकृतिक आपदाओं, जैसे, बाढ़, सूखा, तूफान के चलते गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इनसे होने वाले नुकसान को वे झेल नहीं पाते, तथा दूसरी जगह विस्थापन कर जाते हैं। बाढ़, सूखे या फिर चक्रवातों से प्रभावित होकर देश में बहुत बड़ी आबादी विस्थापन का शिकार होती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि आने वाले समय में कुदरती आपदायें बढ़ेंगी। भारत में हिमालयी राज्यों तथा समुद्रतटीय इलाकों से अन्य स्थानों की ओर विस्थापन बढ़ रहा है। मौसम में बदलाव के कारण सामान्य लोगों का जीवन-यापन कठिन होता जा रहा है, जिससे वे अपने पुराने पारंपरिक पर्यावास को छोड़कर दूसरी जगहों पर जा रहे हैं।
निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है। इससे निपटने के लिए पूरी दुनिया को साथ आना होगा। हमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत खोजने होेंगे। उन पर अपनी निर्भरता बढ़ानी होगी। जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल समय के तेजी से घटाना होगा। गैर-परंपरागत स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, तथा ज्वारीय ऊर्जा को विकसित करना होगा। दुनिया भर की सरकारों को अपने स्तर पर कुछ बड़े और नीतिगत फैसले लेने होंगे। आम लोगों की भागीदारी भी उतनी ही जरूरी है। हमारे छोटे-छोटे प्रयास जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में उपयोगी सिद्ध होंगे। पहला कदम होना चाहिए कि यातायात के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग किया जाए। छोटी-मोटी दूरियों के लिए साइकिल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मोटरकार, बाइक जैसे निजी साधनों पर निर्भरत घटायी जाए। बिजली के गैरजरूरी खपत को कम किया जाए। रीयूज़ यानी पुनर्प्रयोग पर बल दिया जाए। यानी चीजों तथा वस्तुओं को बारंबार इस्तेमाल योग्य बनाया जाए। साथ ही रीसाइकिलिंग यानी पुनर्चक्रण पर काम किया जाए। अर्थात सामानों को प्रयोग के बाद फेंक नहीं देना है, बल्कि पुनर्चक्रित करके उनसे फिर से उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करना है। यह सब हमें साथ-साथ तेजी से करना होगा। समय कम है, काम ज्यादा। सवाल अब इस धरती को बचा लेने का है।
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लेखक
डॉ. कृष्ण कुमार मिश्र
वैज्ञानिक
होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र
टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान
मुंबई-400088
Email: vigyan.lekhak@gmail.com
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