दुनिया में मोटा अनाज की अहमियत
मोटा अनाज की अहमियत दुनिया जान चुकी है। इसी कारण वर्ष 2018 को नेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स के रूप मे मनाया गया। वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स यानी कि मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया है। श्रीअन्न वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह न केवल वैश्विक बेहतरी के लिए जरूरी है बल्कि वैश्विक बेहतरीन में भारत की बढ़ती जिम्मेदारी के प्रतीक भी है। इसमें श्रीअन्न की खेती इससे जुड़ी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य पर उसके प्रभाव को भी जाना जा सकेगा। वैश्विक सम्मेलन में माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा एक अनुकूलित डाक टिकट और ₹75 के सिक्के का भी अनावरण किया है। इसके अलावा बुक ऑफ स्टैंडर्ड को भी लंच किया गया। आईसीआर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च को वैश्विक उत्कृष्टता केंद्र घोषित किया गया है।
सम्मेलन में माननीय प्रधानमंत्री ने कहा कि श्रीअन्न सिर्फ खेती या खाने तक सीमित नहीं, जो लोग भारत की परंपराओं से प्रचलित है, वह यह भी जानते हैं कि हमारे यहां किसी के नाम के आगे श्री ऐसे नहीं जुड़ता है, जहां श्री होती है, वहां समृद्धि भी होती है और समग्रता भी होती है। श्रीअन्न भी भारत में समग्र विकास का एक माध्यम बन रहा है। इसमें गांव भी जुड़ा है, गरीब भी जुड़ा है। श्रीअन्न का तात्पर्य देश के छोटे किसानों की समृद्धि का द्वार, देश के करोड़ों लोगों के पोषण का कर्णधार, देश के आदिवासी समाज का संस्कार, कम पानी में ज्यादा फसल देने की फसल की पैदावार, केमिकल मुक्त खेती का बड़ा आधार, जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में मददगार है।
श्रीअन्न खाद्य सुरक्षा से निपटने में मदद कर सकता है। यह देश के बड़े सम्मान की बात है कि भारत के प्रस्ताव को 72 देशों ने समर्थन दिया। भारत बाजरा या श्रीअन्न को वैश्विक आंदोलन के रूप में बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रहा है। श्रीअन्न प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों मे भी रसायन एवं उर्वरक के बिना आसानी से उगाया जा सकता है। इनको ज्यादा सिंचाई और खाद की जरूरत नहीं होती। इन्हें सुखी इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।
देश में 1960 में हरित क्रांति से पहले तक सभी लोगों की थाली का एक प्रमुख भाग मोटे अनाज हुआ करते थे। कृषि में मोटे अनाज की हिस्सेदारी 40% थी लेकिन हरित क्रांति और गेहूं-चावल पर हुए व्यापक शोध के बाद इसका हर तरफ अधिकतम उपयोग होने लगा। जिसमें मोटे अनाज पिछड़ गए और हिस्सेदारी घटकर मात्र 20% रह गई। हालांकि तकनीक और अन्य सुविधाओं के दम पर पांच दशक पहले की तुलना में प्रति हेक्टेयर मोटे अनाजों की उत्पादकता बढ़ गई है। लेकिन इनका रकबा तेजी से घटा है और इनकी पैदावार कम हो गई है।
प्रधानमंत्री की अपील एक बार फिर लोगों से ध्यान आकर्षित हुआ है। भारत 170 लाख टन से अधिक श्रीअन्न का उत्पादन करता है, जो एशिया का 80 फीसदी और वैश्विक उत्पादन का 20 फ़ीसदी है। जबकि मोटे अनाज की वैश्विक औसत उपज 1229 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है और भारत में 1239 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। भारत श्रीअन्न मिशन से देश के 2.5 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को लाभ होगा। आज बाजरा राष्ट्रीय खाद टोकरी में केवल 5 से 6 फ़ीसदी है। इनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी ज्यादा है। वर्ष 2022-24 का एमएसपी ₹2970 प्रति क्विंटल है।
मोटे अनाजों को पोषण का पावर हाउस कहा जाता है। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्व, विटामिन एवं खनिजों का भंडार है। मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की कम खपत होती है। कम कार्बन उत्सर्जन होता है। इसे शुष्क क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। इनकी खेती सस्ती होती है। मोटे अनाजों का भंडारण आसान है। लंबे समय तक संग्रहण योग बने रहते हैं। मोटे अनाज की फसल में कीड़े के आक्रमण का असर नहीं होता।
खेती से ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में लोग मोटे अनाज की खेती करना धीरे-धीरे बंद करने लगे जबकि हम बचपन से ही मोटा अनाज खाते आ रहे हैं। अभी मोटा अनाज उत्पादन में छत्तीसगढ़ पहले और मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर है। इसमें आदिवासी इलाकों का ही योगदान है वरना ज्यादा मुनाफे के चक्कर में लोग सोयाबीन, तिलहन और हाइब्रिड अनाज बोने में लग गए और अपने परंपरागत अनाज को भूल गए। मोटे अनाज देश की खाद और पोषण सुरक्षा में बड़े पैमाने पर योगदान करते हैं। पोषक अनाजों की श्रेणी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, चीना, कोदो, चीलाई, कुटकी, काकुन, सावा और अन्य प्रमुख है।
भारत में ब्रिटिश राज्य के आगमन के साथ हमें अंग्रेजों ने एक खोखली औपनिवेशिक विरासत दी और उसी के परिणाम स्वरूप मोटे अनाजों को गरीबी और विफलता का प्रतीक मान लिया गया। अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से हम पर वे खाद्य और पेय लाद दिए, जो न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक बल्कि भारतीय मिट्टी में उनकी उपज और गुणवत्ता वैसी नहीं थी। फलस्वरूप भारत में मधुमेह, मोटापा, अपच और कब्ज जैसी तमाम बिन बुलाए बीमारियां सर्वव्यापी हो गई। अपने को अमीर, संपन्न और आधुनिक दिखाने के चक्कर में हमने इन अनाजों को खेतों और थाली दोनों से बहिष्कृत कर दिया ।
मोटे अनाजों को पोषण का शक्ति केंद्र कहा जाता है। पौष्टिकता से भरपूर मोटा अनाज सेहत के लिए रामबाण है। रेशे और कई पौष्टिक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज शुगर, हार्ट, लिवर, ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए रामबाण साबित हो रहा है। कोलेस्ट्रॉल स्तर सुधारते हैं। मोटा अनाज सूक्ष्म पोषक तत्व, विटामिन और खनिजों का भंडार है। छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं की पोषण में विशेष लाभप्रद है। सप्ताह में 4 दिन गेहूं चावल और 3 दिन मोटा अनाज का उपयोग करना चाहिए। मिलेट्स के उपयोग से दलिया, खीर, रोटी, कुकीज, पुलाव, डोसा, पास्ता आदि कई प्रकार की चीजें बनाई जा सकती हैं। निःसंदेह मोटे अनाज एक कारगर औषधि साबित हो सकती है। शाकाहारी खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के दौर में मोटा अनाज वैकल्पिक स्थान प्रणाली प्रदान करता है। इन खूबियों के कारण सरकार अब इसकी पैदावार पर जोर भी दे रही है। मोटे अनाज की मांग तेजी से बढ़ने के कारण कंपनियां भी इसके फायदे बताकर उनकी अच्छी कीमतों पर बिक्री कर रही है।
भारत में सदियों से मोटे अनाज का उत्पादन होता रहा है। इसकी वजह यह है कि इसकी उत्पादन लागत कम होती है। अधिक तापमान में खेती संभव है। मोटे अनाज किसान हितैषी फसल हैं। इसके उत्पादन में पानी की कम खपत और कम कार्बन उत्सर्जन होता है। इससे उन जगहों का बढ़ावा दिया जाएगा, जहां पानी का संकट है, जिससे कि भूजल का दोहन कम हो और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल भी रुके। साथ ही कम उपजाऊ भूमि में इसका उत्पादन हो सकता है। इसके अलावा कीटनाशकों की कम जरूरत होती है और किसान रासायनिक खादों से परहेज करते हुए कंपोस्ट खाद से बीज का उत्पादन कर सकते हैं। कृषि विभाग किसानों को उपज की बिक्री में भी सहयोग करेगा। इसके तहत किसानों को निःशुल्क और अनुदान पर फसलों के बीज वितरित किए जाएंगे। खरीफ सीजन में इसकी बुवाई होगी। अक्टूबर तक फसल तैयार हो जाएगी।
भारत के अधिकांश राज्य एक या अधिक मोटे अनाजों उगाते हैं। अप्रैल 2018 से सरकार देश भर में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। मोटे अनाजों के उत्पादन और निर्यात में पूरी दुनिया में भारत पहले क्रम पर है। बाजरा भारत मे सबसे ज्यादा उगाया जाने वाला मिलेट्स है। इसमे चावल की अपेक्षा 8 गुना अधिक आयरन पाया जाता है। बाजरे की तासीर गरम होती है। इसे सर्दी के मौसम मे खाया जाता है। यह पोटेशियम, मेग्नीशियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, कॉपर तथा विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। साथ ही इसका स्वाद भी अच्छा होता है। उन्हें सप्ताह मे तीन दिन अपने भोजन मे जरूर शामिल करना चाहिए। यह घास की प्रजाति का अनाज होता है।
मिलेट्स अत्यंत पोषक, पचने मे आसान तथा उगाने मे भी आसान होते हैं। इनका सही तरीके से उपयोग कई प्रकार की बीमारी से बचाव कर सकता है। अधिक उत्पादन भूख और कुपोषण की समस्या हल करने मे बहुत सहायक हो सकता है। अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूं-चावल के बजाय मोटा अनाज देने की जरूरत है। इससे पोषण सुधारने के साथ-साथ मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
डॉ नन्द किशोर साहराष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े हैं।
समसामयिक मुद्दों पर लेखन में रुचि रखते हैं।
ईमेल : nandkishorsah59@gmail.com मोबाईल : 9934797610
ग्राम+पोस्ट-बनकटवा,
भाया- घोड़ासहन,
जिला- पूर्वी चम्पारण
बिहार-845303
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