दरिया के फूल जी हां दरिया के फूल यही नाम कहकर वह बुढ़िया बेच रही थी यह लकड़ीनुमा चीज़, पहली नज़र में तो रुद्राक्ष का धोका हो सकता है, दरियाओं का क्या वो तो सब बहा ले आती है अपने साथ, कंकड़-पत्थर, हीरे-मोती, फूल-पत्ती, दरख़्त और इंसान के पाप भी, बहुत सी चीजें बहती हैं मुसलसल जिन्होंने अपनी जड़ें खों दीं, और बहुत सी चीजें इंसान नाम का जीव इरादतन अपने पाप-पुण्य दरिया में बहाकर फ़ारिग़ हो लेता है खुद से, किंतु दरिया किसी के साथ भेद नही करती न हीरे और कंकड़ में न ही पाप-पुण्य में, बस वह साथ ले लेती है अपनी निरन्तरता के....! खैर ये दरिया के फूल इन बूढ़ी माता जी को दरिया में मिले या दरख़्त में यह अलाहिदा बात है, अभी तो इन्होंने इस नायाब चीज से हमें मुत्तहिद किया इसके लिए इन्हें प्रणाम...दरअसल उनके मुताबिक़ यह दरियाई फूल अगर आप अपने पास रख लें तो लक्ष्मी का भंडार कभी खाली नही होगा, पैसों की भरमार हो जाएगी, और अगर आपको पैसेवाला बनना हैं तो सिर्फ़ 250 रुपए की कीमत अदा करके आप भी दुनिया के बड़े आदमियों के फ़ेहरिस्त में होगें! सवाल महज़ 250 रुपयों का, अब बाक़ी सोचना आपका का काम हैं!
कैजरीना के वृक्ष। फ़ोटो साभार: विकिपीडिया |
कैजरीना की पत्तियां। फोटो साभार: विकिपीडिया |
चलिए हम लिए चलते हैं इस दरिया के फूल के देश मे, इसके घर मे और इसके रिश्तेदारों के पास, वे सब बताएंगे इसकी कहानी, और कहानी सुनने के बाद यक़ीनन आप को इससे और इसकी सिफ़त से इश्क़ हो जाएगा।
ये फूल Casuarinaceae कैजरिनेसी ख़ानदान से है, आस्ट्रेलिया, साउथएशिया, सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में यह पाया जाता है, अमरीका के तमाम देशों में यह इनवैसिव यानी आक्रमणकारी प्रजाति के तौर पर बताया गया है, यहां तक कि भारत में भी इसे इनवैसिव स्पेशीज़ के तहत रखा गया, पर धरती का क्या वह तो हर बीज़ को अपनी गोद मे जगह देती है, और वह बीज़ पनपता भी है वहीं और बढ़ा लेता है तादाद, वह उस बीज़ की सिफ़त है कूबत है ...दरअसल यह दरिया का फूल और कुछ नही बल्कि कैजरीना है Casuarina equisetifolia
कैजरीना इक्वीसेटिफोलिया समुंद्री किनारों पर अधिकता में है सो इसे शी ओक या कास्टल शी ओक भी कहते हैं, बीच पाइन, आस्ट्रेलियन पाइन भी इसके नाम हैं, लीनियस ने जब 1759 में कैजरीना का डाक्यूमेंटेशन किया तो इसका नाम इस वृक्ष की पतली पतली बेलनाकार मांसल पत्तियां (सह-शाखाएं) जिनके छोर पर घोड़े की पूंछ की तरह रोएं मौजूद होने की वजह से, जिसे हॉर्स हेयर कहते हैं और लैटिन में equisetum.
यह वृक्ष 100 फ़ीट से भी अधिक ऊंचाई तक बढ़ सकता है, और इसकी खासियत यह है कि इसकी जड़ों में फ़्रांकिया बैक्टीरिया पाए जाते हैं जैसे फेबीएसी कुल के चना अरहर आदि की जड़ों में राइजोबियम, कैजरीना की जड़ों में मौजूद फ़्रांकिया इसकी जड़ों में गांठे बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, और यह बैक्टीरिया नाइट्रोजन फिक्सेशन का कार्य करता है, और जहां यह दरख़्त होते हैं वहां की जमीन खुद ब खुद उपजाऊ हो जाती है, तो फ़ायदे का सौदा भी रखता है कैजरीना वृक्ष फ़्रांकिया जैसे नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया से दोस्ती करके।
जो सबसे चौकाने वाली बात है कि इसे पाइन Pine भी कहते हैं लोग, आखिर क्यों? यह तो इंजियोस्पर्म हुआ, जबकि पाइन ट्री जिम्नोस्पर्म ठहरा, यानी आदि वृक्ष जिसमे बीज नग्न व कोन के आकार के होते हैं, वजह है इसकी पुष्पगुच्छ का जिम्नोस्पर्म के वृक्षों के बीजों की तरह कठोर लकड़ीनुमा की संरचना और पुष्पगुच्छो का कोनदार होना...साथ ही चीड़ जैसे जिम्नोस्पर्म अपनी जड़ों में माइकोराइजा जैसे फंगस से सहजीविता रखते हैं जो चीड़ को पानी और मिनरल्स देतें है और चीड़ बदले में उस फंगस को सुगर....और कैजरीना जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया रखता है....अब सवाल यह खड़ा होता है की कैजरीना जैसे मोस्ट एडवांस एंजियोस्पर्म में जिमनोस्पर्म के वृक्षों में समानता कैसे? तो यह है प्रकृति की बड़ी सुंदर कहानी जिसे रेट्रोग्रेस्सिव एवोल्यूशन Retrogressive evolution कहते हैं , यानी नवीनता का पुरातन सम्बंध! जैसे समंदर में जब जीवन बना तो एम्फिबियन और रेप्टाइल्स धरती पर आ गए, फिर मैमल्स बने जिनमे आदमी भी एक था, व्हेल भी मैमल है पर वह अब भी पानी मे रहती है उसने सदियों पुराना घर और अपनी वृत्ति नही छोड़ी...तो ये हुआ retrogressive evolution का फ़लसफ़ा!
इस कैजरीना कि लकड़ी का प्रयोग टिम्बर के तौर पर, जलौनी लकड़ी के तौर पर किया जाता है इसकी तने की खाल का प्रयोग सूजन व कैंसर के अलावा अर्थराइटिस में भी होता है, मृदा अपरदन को रोकने के लिए भी समुंद्री व नदियों के किनारे ये वृक्ष मुफ़ीद हैं।
चलिए अब दरिया की भी बात कर ली जाए इस दरिया के फूल के बहाने, दरिया के मायने ही है करुणा, सह्रदय, जो बहा ले जाए अपने सँग, जो बहा दे स्वयं सबके लिए वही दरिया है....परन्तु जिन दरियाओं के किनारे आदम जात ने अपने कुटुंब बसाए, सभ्यताएं बनी बिगड़ी, खेती-बाड़ी का विकास हुआ, उन्ही दरियाओं को गन्दला कर दिया आदमी ने, अपने सारे पाप इन्ही नदियों में बहाकर वह मुक्त हो जाना चाहता है, बजाए इसके की वह इन्हें सदानीरा रहने दे, इनके किनारों के जंगलों दरख्तों को न काटता, इंसान ने नदियों को जो जंगलों की हरी धानी और सुवापंखी रँग की चुनरियाँ ढकती थी आदम जात ने उन्हें भी दुस्सासन बनाकर लूट लिया, नही तो यह नदियां जो अब इंसानी कचरा धोने पर मजबूर है, कभी हमारे लिए मोती माणिक, सीपें, शंख, फल -फूल सब बहाकर लाती थी और ले आती थी खेतों में खुशहाली भी अपनी उर्वरा मिट्टी और पानी के संग, अब यक़ीनन किसी कृष्ण की ज़रूरत है जो उस दुस्सासन को ख़त्म कर सके जिसने नदियों की हरी ओढ़नी जबरियन छीन ली, जब तक वह ओढ़नी इन नदियों को वापस नही मिलती तब तक दरिया के फूलों से हम महरूम रहेंगे।
कृष्ण कुमार मिश्र
(आजकल फूलों से वाबस्ता हूँ)
Email: krishna.manhan@gmail.com
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