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नई दिल्ली, 15 सितंबर (इंडिया साइंस वायर): शरीर में जब कोई संक्रमण होता है तो हमें रोगों से बचाने वाली हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा विशिष्ट प्रोटीन उत्पन्न किए जाते हैं, जिन्हें एंटीबॉडी कहा जाता है। यही एंटीबॉडी मानव शरीर को वायरस या बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं। कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर में उत्पन्न होने वाले एंटीबॉडीज की पहचान कोविड-19 के संक्रमण के बोझ को नियंत्रित करने के लिए अपनायी जाने वाली प्रमुख रणनीतियों में शामिल है।
एक नई परियोजना के तहत लखनऊ स्थित सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई) एक अध्ययन कर रहा है, जिसमें लोगों में SARS-CoV-2 के खिलाफ एंटीबॉडी की जाँच के लिए सीरोलॉजिकल परीक्षण किया जा रहा है। यहाँ यह स्पष्ट करना जरूरी है कि एंटीबॉडी परीक्षण को ही सीरोलॉजिकल परीक्षण कहा जाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, रक्त में मौजूद एंटीबॉडी से पता चलता है कि कोई व्यक्ति कोरोना या किसी अन्य वायरस से संक्रमित है या नहीं।
इस परियोजना से जुड़े सीएसआईआर-सीडीआरआई के नोडल वैज्ञानिक डॉ. सुशांत कार और डॉ. अमित लाहिड़ी ने बताया कि “SARS-CoV-2 नया वायरस है और इसकी प्रतिरोधी एंटीबॉडी से सुरक्षा की अवधि अभी ज्ञात नहीं है। इसलिए, सीरोलॉजिकल परीक्षण के जरिये लंबी अवधि की देशव्यापी निगरानी महत्वपूर्ण हो सकती है।”
शोधकर्ता बताते हैं कि सीरोलॉजी-आधारित जाँच से न केवल संक्रमण के बोझ का अनुमान लगाया जा सकता है, बल्कि निश्चित अंतराल पर नमूने एकत्र करके एंटीबॉडी की मात्रा (टाइटर) का भी आकलन किया जा सकता है। इस प्रकार ऐसे एंटीबॉडीज युक्त लोगों की पहचान की जा सकती है, जिनके प्लाज्मा से कोरोना रोगियों के इलाज में मदद मिल सकती है।
सीएसआईआर-सीडीआरआई की इस पहल के अंतर्गत हाल में सीरोलॉजिकल परीक्षण की तीन दिवसीय मुहिम चलायी गई है। यह सीरोलॉजिकल परीक्षण सीएसआईआर कर्मचारियों और छात्रों के लिए निशुल्क एवं स्वैच्छिक था। सीडीआरआई औषधालय के डॉक्टरों डॉ शालिनी गुप्ता और डॉ विवेक भोसले की देखरेख में स्वेच्छा से इस अध्ययन में भाग लेने वाले व्यक्तियों से रक्त के नमूने एकत्र किए गए हैं।
SARS-CoV-2 प्रतिरोधी एंटीबॉडी टाइटर्स की उपस्थिति का पता लगाने के लिए इन नमूनों को नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर की एक अन्य प्रयोगशाला - इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स ऐंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) में एलिसा आधारित जाँच के लिए भेजा गया है।
आमतौर पर कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए अनुवांशिक परीक्षण (RT-PCR) किया जाता है, जिसमें रूई के फाहे की मदद से मुंह के रास्ते से श्वासनली के निचले हिस्सा में मौजूद तरल पदार्थ का नमूना लिया जाता है। पर, एंटीबॉडी परीक्षण में व्यक्ति के रक्त के नमूने लिये जाते हैं।
सीएसआईआर-सीडीआरआई के निदेशक प्रोफेसर तपस के. कुंडू ने कहा है कि “पूरे देश में जैविक नमूनों के अध्ययन से प्राप्त इस प्रकार की समेकित जानकारी बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संरचना के अनुरूप नैदानिक निर्णय लेने में सहायता के लिए राष्ट्रीय संदर्भ मानकों के विकास की सुविधा प्रदान करेगी। इससे राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के निर्धारण में भी मदद मिल सकती है। साथ ही, यह पहल नये कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण पर अनेक अनुत्तरित प्रश्नों के समाधान खोजने में भी मदद करेगी।”
इस पहल के तहत अन्य जैव-रासायनिक मापदंडों का अध्ययन भी किया जाएगा। इससे कार्डियोमेटाबोलिक रिस्क फैक्टर (जोखिम कारकों) और संक्रमण की पुनरावृत्ति की संभावना के बीच परस्पर संबंधों का पता लगाया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि कोविड-19 के कई ठीक हो चुके मरीज बाद में हार्टअटैक से मृत्यु का शिकार होते देखे गए हैं।
डॉ. कार और डॉ. लाहिड़ी के अनुसार - भारत में किए गए नैदानिक परीक्षण काफी हद तक लक्षणों को दिखाने वाले लोगों और उन लोगों के साथ निकट संपर्क में आने वाले व्यक्तियों तक सीमित रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सामुदायिक परीक्षण अभी तक शुरू नहीं किया गया है। विभिन्न देशों से उपलब्ध रिपोर्टों के आधार पर यह माना जा सकता है कि अभी अनेक लक्षण-विहीन मामले हैं, जिनका परीक्षण नहीं किया गया है। अतः बीमारी का बोझ भीषण हो सकता है। (इंडिया साइंस वायर)
ISW/USM/15-09-2020
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