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नई दिल्ली, 24 सितंबर (इंडिया साइंस वायर): बीमारियों के लिए जिम्मेदार वायरस अलग-अलग क्लैड या अनुवांशिक समूह से संबंधित होते हैं। इसीलिए, वायरस के विभिन्न अनुवांशिक समूहों को निशाना बनाने के लिए अलग-अलग दवाओं अथवा वैक्सीन की जरूरत पड़ती है। कोरोना वायरस के मामले में भी स्थिति अलग नहीं है। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए नए तरीके खोज रहे वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिए दिन-रात अध्ययन कर रहे हैं कि इस वायरस के कितने अनुवांशिक समूह भारत में सक्रिय हो सकते हैं।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के वैज्ञानिकों ने कहा है कि भारत का कोरोना क्लैड दुनिया में फैल रहे कोरोना रूपों से 70 प्रतिशत तक मिलता-जुलता है। हैदराबाद स्थित सीएसआईआर की घटक प्रयोगशाला सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे एक अद्यतन अध्ययन में यह बात उभरकर आई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनियाभर में फैले वायरस की अनुवांशिक संरचना में समानता का अर्थ है कि इस वायरस के नियंत्रण के लिए अलग-अलग दवाओं या फिर वैक्सीन की जरूरत नहीं होगी। ऐसी स्थिति में एक ही वैक्सीन या दवा इस वायरस से लड़ने के लिए पर्याप्त हो सकती है।
भारत में कोरोना वायरस का A2a क्लैड सबसे अधिक हावी है, जिसमें दुनियाभर में अब तक अध्ययन किए गए जीनोम से 70 प्रतिशत तक समानता पायी गई है। इससे पहले, भारत में व्याप्त A3i क्लैड में आई गिरावट के बाद महामारी के लिए जिम्मेदार A2a क्लैड में वृद्धि देखी गई है।
कोरोना वायरस के जीनोम का अध्ययन कर रहे सीसीएमबी के वैज्ञानिकों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर वायरल जीनोम में समानता का मतलब है कि A2a क्लैड में रूपांतरण को लक्षित करने वाली कोई एक वैक्सीन या दवा पूरे विश्व में समान प्रभाव के साथ काम करेगी। वर्तमान में, नये कोरोना वायरस के सभी भारतीय जीनोम सहित वैश्विक स्तर पर चिह्नित किए गए लगभग 70% जीनोम इसी क्लैड (A2a) के अंतर्गत आते हैं।
सीसीएमबी के निदेशक डॉ. राकेश के मिश्रा ने कहा है कि “जैसा कि इस क्लैड के अधिक संक्रामक होने की आशंका थी, A2a जल्दी ही हर जगह की तरह भारत में भी प्रमुख रूप से फैलने वाला क्लैड बन गया। वैश्विक स्तर पर वायरल जीनोम में समानता को एक सकारात्मक खबर माना जाना चाहिए, क्योंकि इस रूपांतरण को लक्षित करने वाली एक वैक्सीन या एक दवा पूरी दुनिया में समान प्रभाव के साथ काम करेगी।”
हालांकि, डॉ मिश्रा ने यह भी कहा है कि अभी इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि यह रूपांतरण चिकित्सीय रूप से कितना जटिल हो सकता है। वर्तमान में किसी भी क्लैड का संबंध निर्णायक रूप से कोविड-19 के अधिक गंभीर या मृत्यु के जोखिम में वृद्धि के साथ जुड़ा नहीं पाया गया है।
नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर-जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी) और सीसीएमबी के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन के नतीजे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की शोध पत्रिका ओपेन फोरम इन्फेक्शियस डीजीज में प्रकाशित किए गए हैं।
इससे पहले जून में, शोधकर्ताओं ने भारतीय आबादी में एक अलग वायरस की मौजूदगी का खुलासा किया था। इसे क्लैड I/A3i नाम दिया गया था। इस वायरस को उसकी आनुवंशिक बनावट में चार विशिष्ट भिन्नताओं की उपस्थिति से पहचाना जाता है। उल्लेखनीय है कि सीएसआईआर-(सीसीएमबी) के वैज्ञानिक भारतीय आबादी में फैल रहे कोरोना वायरस के दो हजार से अधिक जीनोम का विश्लेषण कर चुके हैं। (इंडिया साइंस वायर)
ISW/USM/24-09-2020
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