ड्रम सीडर से धान की सीधी बुवााई की उन्नत तकनीक
धान हमारे देश एवं प्रदेश की प्रमुख फसल है। किसानों को धान के उत्पादन में लागत अधिक होने एवं बहुत सारी समस्याओं जैसे-पानी की कमी, खरपतवार की अधिकता, श्रमिकों की अनुपलब्धता आदि का सामना करना पड़ता है। जिससे किसानों को उचित लाभ नहीं मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में रोपित धान की खेती के अतिरिक्त कई अन्य विधियां विकसित हो गयी हैं। जिनमें प्रमुख रूप से जीरोटिल धान, बेड प्लान्टेड, धान की सीधी सूखी बुवाई, श्री विधि, छिटकवां विधि, ड्रम सीडर विधि इत्यादि।
धान की खेती के लिये ड्रम सीडर एक एैसा यंत्र है जिसे अन्य विधियों की तुलना में किसान भाई आसानी से प्रयोग कर सकते हंै एवं लाभ कमा सकता है। यह यंत्र एक लम्बे राड पर छोटे ड्रम जिसमें 20 सेमी. पर छेद बने होते हैं लगा होता है। इसके दोनों किनारों पर सहारा देने के लिये पहिया लगी होती है। इस यंत्र को प्रयोग करने के लिये सबसे पहले खेत में लेव (पडलिंग)लगाते हैं। उसके बाद खेत से पानी निकालकर एक व्यक्ति मशीन में लगे हुए हैंडिल राड को पकड़ कर खींचते हुए खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक चलाया जाता है। जिससे बीज 20 सेमी. की दूरी पर कतारों में गिरते रहते हैं। ड्रम सीडर के द्वारा 6 कतारों में एक बार में बुवाई हो जाती है। एक ड्रम सीडर की बाजार कीमत लगभग रू.5000 से रू.6000 आती है।
ड्रम सीडर
अंकुरित धान बीज को ड्रम में डालते हुए
ड्रम सीडर से बुवाई हेतु तकनीकी एवं तैयारी
ड्रम सीडर से धान की बुवाई के लिये एक हेक्टेअर क्षेेत्र के लिये लगभग 40 किलोग्राम बीज की आवष्यकता होती है। जिसको 10-12 घंटे पानी में भिगोकर फिर बीज शोधन कर बीज को छाया एवं हवादार स्थान पर गीले बोरे से ढक दिया जाता है। बीज अंकुरित हो जाने पर एवं सतह से पानी निकल जाने पर बुवाई की जाती है। एक एकड़ खेत की बुवाई में लगभग 3-4 घंटे का समय लगता है। जिसमें दो श्रमिकों की आवष्यकता पड़ती है। धान की बुवाई करते समय अंकुरित बीज ड्रम सीडर में किसी भी हालत में 3/4 भाग से अधिक नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही यह ध्यान रखना होता है कि ड्रम खेत में पानी के सम्पर्क में न आने पाये। खरपतवार के नियंत्रण के लिये बुवाई के लगभग 15-20 दिन पर बिसपायररीबैक स¨डियम नामक खरपतवारनाषी का प्रयोग 200-250 मिली. प्रति हे. की दर से करना चाहिए।
ड्रम सीडर से बुवाई में सावधानियां
धान की बुवाई से पूर्व मशीन को अच्छी तरह निरीक्षण कर लेना चाहिए। जो कि निम्न हैं-
यंत्र के ड्रम पर बने हुए छेद अच्छी तरह खुले होने चाहिए।
छेद बीज के आकार से थोडे़ बडे होने चाहिए।
बुवाई के समय खेत में पानी बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
खेत पूरी तरह समतल होना चाहिए।
बुवाई के समय खेत में खरपतवार या पूर्व में उगाई गई फसल के अवषेष सतह पर नहीं होने चाहिए।
बुवाई के समय बीज का अंकुर बड़ा नहीं होना चाहिए।
बुवाई करते समय बीच-बीच में ड्रम पर बने छेदों को देखते रहना चाहिए, जिससे बन्द छेद को साफ करके खोला जा सके।
बोते समय बीज बहुत गीला न हो।
ड्रम सीडर से धान की सीधी बुवााई के प्रभाव
ड्रम सीडर सेे बुवाई के लाभ
इस विधि से कृषक धान की खेती अपने सुविधानुसार किसी भी समय कर सकते हैं जिसमें उनको धान की नर्सरी का इन्तजार नहीं करना पड़ता है।
धान की छिटकवां विधि की तुलना में बीज की मात्रा कम लगती है।
नर्सरी पौध उगाने में लगने वाला समय एवं खर्च बच जाता है।
नर्सरी पौध उखाड़ने तथा उन्हे रोपाई के खेत तक ले जाने का खर्च बच जाता है।
इस विधि में पौधों की जड़ों को क्षति (जैसे कि रोपित पौधों में) नहीं होती है।
इसमें पौधों में अधिक कल्ले बनते हैं।
पौधों के कतारों में उगने के कारण खरपतवार का नियंत्रण कोनोवीडर या पैडीवीडर से आसानी से कर सकते हैं।
इस विधि में कल्ले बनने तथा उनके विकसित होने में अधिक समय मिलता है। जिससे उत्पादकता अधिक होती है।
ड्रम सीडर से धान उगाने की लागत में लगभग रू. 8000 से 10000 प्रति हे. बचत होती है।
ड्रम सीडर यंत्र को एक आदमी आसानी से खींच सकता है और बैल या ट्रैक्टर की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
डा0 आर0 के0 कनौजिया
वैैज्ञानिक (सस्य विज्ञान)
कृषि विज्ञान केन्द्र, दरियापुर
रायबरेली
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