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Jun 23, 2020

19वीं सदी में प्लेग, दिमागी बुखार, कालरा से थर्राया था शाहजहांपुर


Female patient with bubonic plague in Karachi, India. Photograph, 1897. 

Image courtesy: welcome collection.org


=शाहजहांपुर जिले में 1902 में पहली बार हुआ आइसोलेशन
=बाहर से आए एक व्यक्ति से फैले प्लेग से मरे थे 1279 लोग

शाहजहांपुर से विवेक सेंगर की रिपोर्ट 

चूहों से फैलने वाली प्लेग बीमारी ने भी कोरोना की तरह महामारी का रूप अख्तियार किया था। तब 1902 में शाहजहांपुर में एक व्यक्ति की वजह से प्लेग बीमारी फैली। इससे करीब 1279 लोगों की मौत हुई थी। तब पहली बार आइसोलेशन किया गया। जिस किसी को प्लेग की बीमारी होती थी, उसे अलग कर दिया जाता था। शाहजहांपुर में 1902 से लेकर 1907 तक प्लेग का प्रकोप रहा। इसके बीमारी के निवारण के लिए सेनेटाजेशन, आइसोलेशन, जिला बदर, टीकाकरण किया जाता था। ऐसे ही कोरोना बीमारी है। शाहजहांपुर में पहला कोरोना मरीज भी बाहर से जमाती थाईलैंड निवासी आया था। शाहजहांपुर में जितने भी कोरोना मरीज मिल रहे हैं, उनमें अधिकांश बाहर से आए हुए हैं, लोकल लोगों में कोरोना संक्रमण तो बाहरी लोगों के टच के कारण हो रहा है।
शाहजहांपुर 1902 में प्लेग तब फैला जब बाहर से एक संक्रमित व्यक्ति यहां आया।1903 में प्लेग से 6 मौते हुईं, किन्तु 1904 आते आते प्लेग ने पूरे शाहजहांपुर जिले को अपने प्रभाव में ले लिया। 1907 तक प्लेग से मरने वाले लोगों की संख्या 1279 हो गई थी। प्लेग के निवारण के लिए सेनेटाइजेशन,आइसोलेशन, जिला बदर, टीकाकरण लागू किए गए। जागरुकता का अभाव बना रहा, इस कारण संक्रमित लोग सामने नहीं आए, जिसके कारण 1908 में कठोर नीति लागू की गई, तब जाकर हालात पर नियंत्रण हो सका। अगर इस कालावधि में अन्य रोगों की बात करें तो शाहजहांपुर जिले में 1881 में 459 कुष्ठ रोगी थे। 1907 में 240 कुष्ठ रोगी थे। यद्यपि यह आंकड़ा कम है, किंतु रुहलेखण्ड के अन्य जिलो की तुलना में यह आंकड़ा सर्वाधिक था। एसएस कालेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डा. विकास खुराना ने पुराने गजेटियर से तैयार किए गए शोध पत्रों के तथ्यों को उजागर करते हुए बताया कि 1902 से 1907 के बीच 124 मानसिक रोगी, 300 बोलने सुनने में अक्षम लोग, 3903 शारीरिक दिव्यांग का जिक्र गजेटियर में मिलता है। उन्होंने बताया कि उस कालखंड में शाहजहांपुर जिले के उत्तर में घेंघा का भी प्रकोप भी ज्यादा रहा,उस समय तक इस बीमारी के मूल कारण भी अज्ञात थे तथा इसे नदियों के पानी से जोड़कर देखा जाता था।
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कब किस बीमारी से कितने लोगों की मौत हुई
=1878 के अकाल वर्ष में आंतो के विकार से 14 हजार 711 लोगों की मौत हुईं
=1902 से 1907 के बीच प्लेग से 1279 लोग मरे
=1900 से 1908 के बीच दिमागी बुखार से 49 हजार 331 लोगों की मौत हुई
=1908 से 1918 के बीच दिमागी बुखार से 96 हजार 427 लोगों की मौत हुई
=1918 से 1921 के बीच स्पेनिश फ्लू से शाहजहांपुर में 35 हजार 409 की मौत
=1915 कालरा से शाहजहांपुर में 5 हजार 605 लोगों की मौत हुई थी
=1929 कालरा से शाहजहांपुर में 2 हजार 802 लोगों की मौत हुई थी

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1865 में बीमारियों, मौतों का आंकड़ा जुटाना शुरू हुआ
=ब्रिटिश राज में वर्ष 1865 में पहली बार बीमारियों तथा उनसे फलस्वरूप होने वाली मृत्यु के आंकड़े जुटाने का काम प्रारम्भ हुआ, यद्यपि यह व्यवस्था दोषपूर्ण किन्तु बाद के सालों में भी जारी रही। एसएस कालेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डा. विकास खुराना बताते हैं कि सन 1872 में पहली बार पुलिस विभाग के साथ मिलकर आंकड़े जुटाने की नई प्रणाली शुरू की गई, किन्तु कुछ ही समय बाद रद हो गई। सन 1880 से ही कहीं जाकर आंकड़े ठीक ठाक ढंग से जुटाए जाने लगे, हालांकि उनकी सही संख्या जानने के लिये उनमे सन्ननिकट जोड़ किया जाना जरूरी है। 
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अकाल में मौतों का आंकड़ा छिपाया गया
=डा. विकास खुराना बताते हैं कि 1878 के अकाल के बाद फैली भुखमरी तथा बीमारियों से जो मौतें हुई, उन्हें सरकार द्वारा कम प्रदर्शित किया गया, किन्तु आंकलन है कि सिर्फ बीमारियों से ही सन 1880 पूर्ण होने तक पांच वर्षीय औसत में 38 हजार 343 मौतें हुई थीं, यह 40.9 प्रति वर्ग मील बनता है। 
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1896 में मृत्युदर ने जन्मदर को पीछे छोड़ा
=डा. खुराना बताते हैं कि 1896 में जलवायु अजीब तरह से प्रतिकूल थी, इस वर्ष मृत्युदर ने जन्मदर को भी पीछे छोड़ दिया। ज्यादातर मौतें बुखार से दर्शाई गई। 1891 से ही बुखार मृत्यु के कारको में चौथे स्थान पर था, यह तीन चौथाई मौतों के लिए उत्तरदायी ठहराया गया। तब मौतों कब, कारण बताने की जिम्मेदारी गांव के चौकीदारों की थी। 
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पुवायां और जलालाबाद में मलेरिया का था प्रकोप
=डा. विकास खुराना ने बताया कि 1891 के आसपास निमोनिया, मलेरिया, इंफ्लेनजुआ बड़ी बीमारियां थीं। मलेरिया का ज्यादातर प्रकोप पुवायां के उत्तर तथा जलालाबाद के तराई क्षेत्र में था। लगातार प्रयासों यथा आर्थिक सहायता, कुनैन के वितरण इत्यादि से इस पर नियंत्रण पाया जा सका। तब शाहजहांपुर को महामारी का घर कहा जाने लगा था।
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चेचक ने लील ली थी 3835 लोगों की जिंदगी
=1878 के अकाल में चेचक ने 3 हजार 835 लोगों को अपना शिकार बनाया था। 1883 में चेचक पुन: तेजी से प्रस्सफुटित हुई। उस वर्ष चेचक के साथ ज्वर न आना विशेष था। 1897 में पुन: इस बीमारी से 2 हजार 705 लोग मरे। चेचक को रोकने के लिए जिले में टीकाकरण की शुरुआत 1865 से हुई थी। 1907 तक सात लाख लोगों को विभिन्न बीमारियों के टीके लागये गए। इसके लिए एक सर्जन तथा 20 व्यक्ति नियुक्त थे, शाहजहांपुर तथा तिलहर नगरपालिका में टीका लगवाना अनिवार्य था।



                                 
विवेक सेंगर (वरिष्ठ पत्रकार)


viveksainger1@gmail.com

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