हाल ही में जारी किये गए यू.एन. रिपोर्ट के
अनुसार, मानव गतिविधियों के कारण दस लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का
खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मानव ने उन प्राकृतिक
संसाधनों को नष्ट किया है जिन पर हमारा अस्तित्व निर्भर करता है।रिपोर्ट के अनुसार, स्वच्छ वायु, पीने योग्य जल, कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले
वन, प्रोटीन से भरपूर मछलियाँ, तूफान-अवरोधी मैंग्रोव तथा परागण करने
वाले कीटों की कमी जैसे संकेत जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जैव विविधता की हानि और ग्लोबल वार्मिंग आदि
घटनाएँ निकटता से एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। 29 अप्रैल, 2019 को 130 देशों के प्रतिनिधियों की पेरिस में एक
बैठक हुई। बैठक की रिपोर्ट के अनुसार, हमें यह समझना होगा कि जलवायु परिवर्तन
और प्रकृति का नुकसान न केवल पर्यावरण के
लिये चिंता का विषय है बल्कि विकास और आर्थिक मुद्दों के संदर्भ में चिंतित करने वाला है। पशुधन के साथ निर्वनीकरण तथा कृषि, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग एक-चौथाई हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है तथा साथ-ही-साथ
प्राकृतिक पारिस्थितिकी पर भी कहर बरपाया है।
पारिस्थितिकविदों
ने चेतावनी दी है कि यदि वर्तमान रुझान जारी रहता है, तो अगले 100 वर्षों के भीतर पृथ्वी पर सभी प्रजातियों
में से लगभग आधी का सफाया हो सकता है।जैव
विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर-सरकारी विज्ञान नीति प्लेटफॉर्म रिपोर्ट ‘प्रजातियों के विलुप्त होने की वैश्विक दर में तेज़ी’ की चेतावनी देती है।
कई विशेषज्ञ इसे ‘सामूहिक विलुप्ति परिघटना’ (Mass Extinction Event) की आशंका व्यक्त कर रहे हैं। 66 मिलियन साल पहले क्रेटेशियस पीरियड का अंत
हुआ था, जब इस क्षुद्रग्रह से 80% जीवों का सफाया हो गया था जिसका कोई
स्पष्ट कारण ज्ञात नहीं है।वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्तमान में पृथ्वी पर लगभग
आठ मिलियन अलग-अलग प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से अधिकांश कीट हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रजातियों के नुकसान के प्रत्यक्ष
कारणों में निवास स्थान और भूमि उपयोग परिवर्तन, भोजन के लिये उनका शिकार या अवैध व्यापार के लिये शिकार, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और चूहों, मच्छरों तथा साँप जैसे प्रजातियों का शिकार करना शामिल है।जैव
विविधता की क्षति और जलवायु परिवर्तन के दो बड़े अप्रत्यक्ष कारक भी हैं जिसमें दुनिया
भर में बढ़ती जनसंख्या तथा
उपभोग की बढ़ती मांग शामिल है।ग्लोबल वार्मिंग के विघटनकारी प्रभाव में तेज़ी के कारण भविष्य में
जीवों तथा पौधों पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। उदाहरण के लिये यदि औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस तक ऊपर चला जाता है तो
प्रजातियों के वितरण में बदलाव की संभावना दोगुनी होगी।
रिपोर्ट के अन्य निष्कर्षों में शामिल हैं, तीन-चौथाई भूमि सतह, 40% समुद्री पर्यावरण और दुनिया भर में 50% अंतर्देशीय जलमार्ग ‘गंभीर रूप से परिवर्तित’ होंगे। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ मानव कल्याण के
लिये प्रकृति के साथ समझौता किया
जाएगा। इसमें मानव निवास स्थान और दुनिया के सबसे गरीब समुदाय (जो जलवायु परिवर्तन की चपेट में
हैं) शामिल होंगे। 2 बिलियन से अधिक लोग ऊर्जा के लिये लकड़ी जैसे ईंधन पर
निर्भर हैं, 4 बिलियन लोग प्राकृतिक दवाओं पर निर्भर हैं तथा 75% से अधिक वैश्विक खाद्य फसलों को पशु
परागण (Animal
Pollination) की आवश्यकता होती है। पिछले 50 वर्षों में मानवीय हस्तक्षेप के कारण
लगभग आधी भूमि तथा समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के साथ समझौता किया गया है।
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प्रेषक- डॉ दीपक कोहली, उपसचिव, पर्यावरण ,वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ,उत्तर प्रदेश शासन ,5 /104 ,विपुल खंड, गोमती नगर, लखनऊ- 226010 (मोबाइल 9454410037)
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