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May 4, 2020

पर्यावरण संरक्षण में विशेषज्ञता - ग्रीन जॉब्स


Photo courtesy: UN Page 

- डॉ दीपक कोहली -

ग्रीन जॉब्स, कार्य की ऐसी विधियां हैं, जहां पर्यावरण की सुरक्षा का ध्यान में रखते हुए वस्तुओं का उत्पादन और उसका उपयोग किया जाता है। बिजली की बचत और सौर तथा पवन ऊर्जा आदि अधिक से अधिक इस्तेमाल करने वाली बिल्डिंग का निर्माण करने वाला आर्किटेक्ट, वॉटर रीसाइकल सिस्टम लगाने वाला प्लंबर, विभिन्न कंपनियों में पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित शोध कार्य और सलाह देने वाले लोग, ऊर्जा की खपत कम करने की दिशा में काम करने वाले विशेषज्ञ, पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को कायम करने के गुर सिखाने वाले विशेषज्ञ, प्रदूषण की मात्रा और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के तरीके बताने वाले एक्सपर्ट आदि के काम ग्रीन जॉब्स की श्रेणी में आते हैं।
 विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले वक्त में हर नौकरी में यह क्षमता होगी कि वह ग्रीन जॉब में तब्दील हो सके। इस सेक्टर में धीरे-धीरे विस्तार हो रहा है और साथ ही साथ नौकरी की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। कई विशेषज्ञों की यह भी राय है कि जिस तरह सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक जमाने में भारी उछाल आया था, वैसा ही आने वाले वक्त में ग्रीन जॉब्स के क्षेत्र में होगा। भारत तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है। हमारे यहां नए भवनों का निर्माण हो रहा है और ऊर्जा की मांग भी बढ़ रही है। आनेवाले समय में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में नियम-कायदे और भी स्पष्ट व कड़े होंगे और पर्यावरण सुरक्षा के साथ-साथ विकास के फॉर्मूले को हर जगह मान्यता मिलेगी। हर साल ग्रीन जॉब के क्षेत्र में होने वाले शोध की मांगों को पूरा करने के लिए 5000 प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी। आनेवाले समय में देश के सभी छह लाख गांवों को पानी और कचरा प्रबंधक की जरूरत होगी और इस जरूरत को पूरा करने के लिए 1.2 करोड़ प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी। आप अगर ग्रीन जॉब्स कर रहे हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप नौकरी के साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आजकल कई क्षेत्रों में ग्रीन जॉब्स की डिमांड है: 
*कृषि:
भारत में करीब 60 फीसदी लोग कृषि के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटते हुए अनाज के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए अब ग्रीन स्किल्स की जरूरत बढ़ गई है। कृषि में उत्पादन को बढ़ाने के लिए मौसम विज्ञान का उपयोग करना एक ऐसा ही क्षेत्र है। कृषि मौसम विज्ञानी मौसम और जलवायु परिवर्तन की जानकारी के अनुसार अनाज उगाने का सुझाव देता है जिससे कम लागत में ज्यादा उत्पादन किया जा सके और किसान को मौसम के दुष्प्रभाव भी न झेलने पड़े। वहीं, एग्रीकल्चरल टेक्निशियन वे होते हैं जो वनस्पति पालन, पशुपालन, सिंचाई प्रणाली, मृदा संरक्षण, कृषि यंत्रीकरण, मशीनों और बिजली का उपयोग, मिट्टी के अनुसार कीटनाशकों का प्रयोग, उत्पादन की मैपिंग, पानी का कुशल प्रयोग और बीजों एवं उर्वरकों की जानकारी दे सके।
*क्लाइमेट रिस्क मैनेजर:

बदलती जलवायु की हर जानकारी का पूर्वानुमान लगाकर उस हिसाब से कार्य करने वाले को क्लाइमेट रिस्क मैनेजर कहते हैं। इनका काम बाढ़, सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति का विश्लेषण कर उनके दुष्प्रभावों को कम करना और अच्छे मौसम के दौरान जल जैसे संसाधनों को बेहतरीन प्रबंधन कर उसका उपयोग करना होता है। ऐसे कार्य से किसानों, कृषि कार्यों में लगे मजदूरों को लाभ मिलता है। साथ ही देश की खाद्य सुरक्षा की स्थिति को भी मजबूती मिलती है।
*वानिकी:

नेशनल मिशन फॉर ए ग्रीन इंडिया के तहत लोगों को पेड़ लगाने और उनके संरक्षण के हर गुण सिखाए जाते हैं। जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है हरियाली को बढ़ाना। ऐसे में पेड़ लगाने से ज्यादा ग्रीन जॉब कोई और नहीं हो सकता। इस मिशन के साथ सैकड़ों पुरुष और महिलाएं काम कर रही हैं जो पौधरोपण में मदद करती हैं और साथ ही उनका संरक्षण कर रोजगार भी अर्जित कर लेती है।
*ऊर्जा -

नेशनल सोलर मिशन अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रही है। इस मिशन का उद्देश्य अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के साथ ही एक लाख रोजगारों का सृजन करना भी है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में इंजीनियर, तकनीशियन और प्रोडक्शन मैनेजरों के पद सृजित होंगे। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ ही इस क्षेत्र में मैनेजर, प्रोजेक्ट मैनेजर, इंजीनियर और हर स्तर पर तकनीशियनों की भारी मांग है।
*निर्माण-

ब्यूरो ऑफ इनर्जी इंफिशिएंसी ऐसी कमर्शियल इमारतों के निर्माण में जुटी है जो ज्यादा ऊर्जा कुशल हों। एक ग्रीन इमारत वो होती है जो निर्माण के वक्त ज्यादा से ज्यादा अक्षय संसाधनों का प्रयोग करें। इमारत का इंटीरियर ऐसा हो कि वहां रहने वालों के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े और पानी व ऊर्जा की खपत कम से कम हो। एक ऐसे ग्रीन इमारत के निर्माण के लिए इस क्षेत्र में इनर्जी इंजीनियरों और ग्रीन आर्किटेक्टों की मांग बढ़ गई है। ऐसी इमारतों के निर्माण के लिए वैज्ञानिक ज्ञान, आर्कि टेक्चरल स्किल, तकनीकी ज्ञान और ऊर्जा के उपयोग के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
*उत्पादन -

उत्पादन करने वाली इकाइयां प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण होती हैं। इन इकाइयों में बनाए गए ज्यादातर उत्पाद भी इको फ्रेंडली नहीं होते हैं। अब इन इकाइयों में भी पर्यावरणीय मानकों का उपयोग करने की शुरुआत हो गई है। ऐसे में ग्रीन टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर इको-फ्रेंडली उत्पादों का उत्पादन करना समय की मांग बन गई है। इस क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए बॉयोेकेमिकल इंजीनियरिंग एक महत्वपूर्ण रोजगार के रूप में तेजी से उभर रहा है। इस क्षेत्र में प्रोफेशनल बायोलॉजी, केमिस्ट्री और इंजीनियरिंग तकनीकों का इस्तेमाल कर बेहतर और इको फ्रेंडली उत्पाद बनाने की कोशिश करते हैं।
*सेवाएं-

पर्यावरण संरक्षण के ख्याल से कई क्षेत्र में इनर्जी इफिशिएंट तकनीक और प्रणालियां का प्रयोग किया जा रहा है। ऐसे में इनकी मॉनिटरिंग और ऑडिट के लिए इनर्जी ऑडिटरों की मांग भी बढ़ गई है। इनर्जी ऑडिटरों को ऐसी तकनीकों और प्रणालियों की मॉनिटरिंग और ऑडिट कर रिपोर्ट बनानी होती है। इन रिपोर्टों के आधार पर ही इन तकनीकों में मौजूद खामियों को दूर किया जाता है और नए व बेहतर इनर्जी इफिशिएंट तकनीकों का विकास करने में मदद मिलती है। इनर्जी ऑडिटरों को इनर्जी इफिशिएंसी के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के आधार पर यूजीसी ने ग्रेजुएशन के स्तर पर पर्यावरण विज्ञान की पढ़ाई को अनिवार्य बना दिया है। स्कूल और टेक्निकल पाठ्यक्रमों के स्तर पर यह जिम्मेदारी एनसीईआरटी और एआईसीटीई को सौंपी गई है। पर्यावरण विज्ञान बेसिक साइंस और सोशल साइंस दोनों का मिश्रित रूप है। रिसोर्स मैनेजमेंट और रिसोर्स टेक्नोलॉजी भी पर्यावरण विज्ञान का एक महत्वपूर्ण अंग है। पर्यावरण से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में अपना कॅरियर बनाने के लिए पढ़ाई बारहवीं के बाद शुरू की जा सकती है, पर इस स्तर पर संस्थानों की संख्या कम है। ग्रीन जॉब्स के क्षेत्र में बेहतर कॅरियर बनान के लिए पर्यावरण विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त करना आपके भविष्य के लिए अच्छा होगा। पर्यावरण विज्ञान में बीटेक का कोर्स भी कई संस्थानों में उपलब्ध है।
सेंटर फॉर साइंस ऐंड इनवायर्नमेंट, दिल्ली में पर्यावरण विज्ञान से जुड़े विषयों में इंटर्नशिप और सर्टिफिकेट कोर्स करवाए जाते है। देश में पर्यावरण विज्ञान को समर्पित दिल्ली स्थित एकमात्र संस्थान दी एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानी टेरी में इनवायर्नमेंटल साइंस से संबंधित विषयों में पोस्ट-ग्रेजुएट और डॉक्टेरल स्तर के पाठ्यक्रमों की पढ़ाई होती है। टेरी पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में स्कॉलरशिप भी देती है। इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स, धनबाद में इनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग में बी-टेक की पढ़ाई होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज, देहरादून में इनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग में बीई का कोर्स उपलब्ध है। इग्नू में इनवायर्नमेंटल स्टडीज में छह माह का सर्टीफिकेट कोर्स उपलब्ध है। इसके अलावा कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ट्रेनिंग दे रही हैं। इनमें अल्मोड़ा स्थित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान, देहरादून स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन, इलाहाबाद स्थित सेंटर फॉर सोशियल फॉरेस्ट्री एंड इको-रीहैबिलिटेशन, बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर इनवायर्नमेंटल एजुकेशन और चेन्नई स्थित सीपीआई इनवायर्नमेंटल एजुकेशन प्रमुख हैं।
इनवायर्नमेंटल साइंस में पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद विकल्पों की भरमार है। सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में इनवायर्नमेंटल बायोलॉजिस्ट, इनवायर्नमेंटल ऑफिसर, इनवायर्नमेंटल मैनेजर, इनवायर्नमेंटल साइंटिस्ट, इनवायर्नमेंटल कंसल्टेंट, इनवायर्नमेंटल एक्सटेंशन ऑफिसर, इनवायर्नमेंटल लॉ ऑफिसर आदि पद उपलब्ध हैं। वर्तमान समय में प्रशिक्षित पर्यावरणव्दिों की देश-विदेश में काफी मांग है। प्राइवेट सेक्टर में भी ग्रीन जॉब्स के भरपूर मौके मौजूद हैं। पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए स्कूल और कॉलेज के स्तर पर शिक्षकों की भी मांग बढ़ती जा रही है। कुल मिलाकर ग्रीन जॉब्स को भविष्य काफी उज्जवल है।
पर्यावरण के प्रति लोगों की बढ़ रही जागरूकता और उसे अब तक पहुंचाए गए नुकसान के प्रभाव को महसूस करने के बाद यह तय है कि आने वाले वक्त में विश्व के सभी देशों की सरकारें और उद्योग-जगत अपनी नीतियों और कार्यशैली को पर्यावरण के अनुकूल रखने की कोशिश करेंगे। ऐसे में अमूमन हर सेक्टर में ग्रीन जॉब्स का निर्माण होगा। ग्रीन जॉब्स की अवधारणा सिर्फ सौर या पवन ऊर्जा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह डेवलपमेंटल सेक्टर, कंसल्टेंसी से लेकर सीमेंट कंपनी आदि से भी जुड़ी हुई है। आने वाले वक्त में कोई भी सेक्टर ऐसा नहीं होगा, जहां ग्रीन जॉब्स के अवसर न हों। ग्रीन जॉब्स के क्षेत्र में बेहतरीन काम के साथ सैलरी भी अच्छी है। टेरी से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्रों को औसतन चार से साढ़े चार लाख सालाना आय वाली नौकरियां मिल जाती हैं।
पर्यावरण विज्ञान में स्नातक एवं परास्नातक एवं अन्य कोर्सेज हेतु कई प्रतिष्ठान हैं।  जिनमें से प्रमुख निम्नवत हैं:
- इनवायर्नमेंटल साइंस, जेएनयू, नई दिल्ली

-दी एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी), नई दिल्ली
-सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु
-डिपार्टमेंट ऑफ इनवायर्नमेंटल साइंसेज, श्रीनगर, गढ़वाल
-डिपार्टमेंट ऑफ इनवायर्नमेंटल बायोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली
-स्कूल ऑफ इनवायर्नमेंटल साइंसेज, रायबरेली रोड, लखनऊ
-डिपार्टमेंट ऑफ इनवायर्नमेंटल साइंसेज, जंभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार
-इग्नू, नई दिल्ली
-900,000 नौकरियों के अवसर पैदा होंगे 2025 तक भारत में जैव ईंधन निर्माण के क्षेत्र में (संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार)
-300,000 नौकरियां स्टोव निर्माण के क्षेत्र में उत्पन्न होंगी।
600,000 से ज्यादा लोगों को ईंधन आपूर्ति और इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों में नौकरियां मिलेंगी
2025 में पर्यावरण और उससे जुड़े उत्पादों और सेवाओं का वैश्विक बाजार  2,740 अरब डॉलर का हो जाएगा।

इनवायर्नमेंटल साइंस और इससे जुड़ी नौकरियों के प्रति भारत में जागरूकता का स्तर अभी काफी कम है। पहली समस्या तो यह है कि छात्र जब किसी कोर्स का चुनाव करते हैं, तो उस दौरान वे किसी सेक्टर विशेष पर अपना ध्यान नहीं केंद्रित करते। दूसरी समस्या यह है कि भारत में इनवायर्नमेंटल साइंस की विशेष तौर पर पढ़ाई कराने वाले संस्थान और इस विषय को पढ़ने वाले छात्र, दोनों की संख्या कम है। आनेवाले वक्त में पर्यावरण के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों की मांग में बड़ी संख्या में इजाफा होगा। ये नौकरियां नीति निर्माण, ठोस कचरा प्रबंधन, इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन, इकोटूरिज्म, इनवायर्नमेंटल एजुकेशन, इनवायर्नमेंटल जर्नलिज्म, इनवायर्नमेंटल सुरक्षा और शोध आदि क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर उपलब्ध होंगी।
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 प्रेषक : डॉ दीपक कोहली,  ‌5/104,  विपुल खंडगोमती नगर , लखनऊ  - 226010 ( मोबाइल- 9454410037)


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