बंगाल में कालरा की महामारी के दौर में लकड़ी के टब में सैनीटाइज़ करते हुकूमत के लोग |
शाहजहांपुर के एसएस कालेज में इतिहास विभाग के हेड डा.विकास खुराना के जरिए भारत में महामारियों यह दस्तावेजीकरण किया है विवेक सेंगर ने.....पढिए यह ब्यौरेवार यह रिपोर्ट
1857 से अब तक 11 महामारियों में कोरोना ही सबसे घातक
=अन्य महामारियों में चिकित्सीय संसाधनों की कमी से मरे थे लाखों लोग
=कोरोना सबसे घातक, पर रोकथाम, जागरूकता से अब सबसे कम मौतें
शाहजहांपुर। विवेक सेंगर
अपने भारत ने 1857 से अब तक 11 खतरनाक महामारियों को झेला। तब भारत के पास बेहतर चिकित्सीय संसाधन नहीं थे। डाक्टर नहीं थे। शोध के लिए लैब नहीं थीं। कमी तो अब भी है। पर अब तक के सबसे घातक कोरोना वायरस से सबसे कम लोग प्रभावित और सबसे कम मौतें हुई हैं, जिसके पीछे संसाधनों का बेहतर जागरूकता के साथ इस्तेमाल करना है। 1857 से लेकर लेकर निपाह, हैपेटाइटिस बी, स्वाइन फ्लू के कारण अनगिनत लोग मरे, लेकिन सबसे खतरनाक कोरोना वायरस को बड़े स्तर पर फैलने से रोकने के लिए बड़े कदम उठाए गए। शाहजहांपुर में एसएस कालेज में इतिहास विभाग के हेड डा. विकास खुराना से महामारियों के इतिहास को लेकर लंबी बात हुई।
डा. विकास खुराना बताते हैं कि दिल्ली विश्व विद्यालय के हिन्दी क्रियान्वयन निदेशालय द्वारा प्रकाशित आधुनिक भारत का इतिहास पुस्तक में महामारियों का जिक्र मिलता है। बताया कि यशपाल ग्रोवर ने महामारियों के तमाम रिसर्च पेपरों को इस किताब में संग्रहित किया है। इसी तरह सतीश चंद्रा की आधुनिक भारत का इतिहास पुस्तक में महामारियों के बारे में जाना जा सकता है। डा. विकास खुराना ने बताया कि प्लेग और लैप्रेसी महामारियों के संबंध में नाथन.आर की प्लेग इन इंडिया और भारत सरकार की रिपोर्ट वॉल्यूम चार 1901, रिपोर्ट ऑन लैप्रोरेसी 1890 में भी काफी जानकारी मिलती है।
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1857 से 1994 तक कई बार फैला प्लेग
-भारत में महामारियों का इतिहास बहुत पुराना है, किंतु व्यवहारिक रूप से आधुनिक भारत के इतिहास में ही बीमारियों का क्रमबद्ध अध्ययन किया जा सका है। सन 1857 में जब पूरा देश विद्रोह की आग में झुलस रहा था, तब ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना के कैम्पों में प्लेग फैला था। तब दवाइयां तथा अन्य चिकित्सीय संसाधन उपलब्ध नहीं थे, लिहाजा कम्पनी ने प्लेग से पीड़ित सैनिकों में कइयों को गोली से मरवा दिया। तमाम सैनिकों को घर भेज दिया गया। कम्पनी ने इस सम्बंध में रिकार्ड भी कभी सार्वजनिक नहीं किए। वर्ष 1897 में भारत के सात प्रांत बिहार, मध्यप्रान्त, महाराष्ट्र, गुजरात, संयुक्त प्रान्त, बंगाल में प्लेग महाविभिषिका के रूप में सामने आया, यह यूरोप में फैली ब्लैक डेथ का ही विस्तार था, जिसकी वजह से इंग्लैंड की दो तिहाई जनसंख्या ही खत्म हो गई थी। भारत में सबसे पहले 1857 में महाराष्ट्र में प्लेग के लक्षण दिखे थे। सन 1901 तक इसकी वजह से दस लाख लोग मर गए। सरकार के कुत्सिक प्रयासों बीमार को गोली मारना, गांवों में आग लगाने की तीव्र प्रतिक्रिया हुई। यह वही समय था, जब लोक मान्य तिलक के सरकार पर लगाये गए अक्षेपों से चापेकर बन्धुओं दामोदर कृष्ण चापेकर और बाल कृष्ण चापेकर ने महराष्ट्र के प्लेग कमिश्नर आयस्टर्र को गोली मार दी, जिसकी वजह से उन्हें प्राणदण्ड मिला। प्लेग का प्रकोप भी पूरी तरह से शान्त नहीं हुआ, बल्कि 1931 तक अलग अलग क्षेत्रों में इसका उभार होता रहा। सन 1896 में बने प्लेग कमीशन के चेयरमैन फ्रेजर की अनुशंसा पर भारतीय प्लेग नियंत्रण कानून बनाया गया। 1994 में भारत के गुजरात मे प्लेग फैला। विभिन्न प्रान्तों में इससे पीड़ित लोग हुए। दिल्ली में 68, यूपी में 10, कर्नाटक में 46, महाराष्ट्र-में 488 लोग इससे पीड़ित मिले। सरकार ने इसकी रोकथाम पर सिफारिश करने के लिए प्रोफेसर रामलिंगम की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया।
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1918 में आया स्पेनिश फ्लू
-1918 में जब प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तो कई सैनिकों की स्वदेश वापसी हुई, जिसकी वजह से भारत मे स्पेनिश फ्लू फैला, इसकी चपेट में एक लाख वर्ग किमी का क्षेत्र और तकरीबन एक करोड़ लोग आए। सरकार द्वारा मौतों की संख्या कभी सार्वजनिक नहीं की।
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1876 में लेप्रोरेसी का प्रकोप
-क्षय रोग भी बड़ी विपदा बनी रही। सन 1876 में इसने महामारी का रूप ले लिया। सरकफ द्वारा मरीजो के अलगाव की व्यवस्था को अपनाया गया, किन्तु तरीका इतना निर्दयी था कि देश के अनेक क्षेत्रों में विद्रोह हुआ। एचबी कार्टर के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया गया, जिसकी अनुशंसा पर सन 1889 में कोढ़ एक्ट के प्रतिपादन हुआ। इससे प्रभावित लोगों की संख्या एक करोड़ पचास लाख थी।
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कालरा ने भी बहुतों की जान ली
-गरीब लोगों की बीमारी के नाम से मशहूर हुई इस बीमारी का प्रभाव पश्चिम भारत था। सन 1817 से 1821 तथा पुन: 1831, 1832, 1871 में इसका व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर हुआ। इस अवधि में कोई एक सौ पंदह लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित हुए, जिनमें मरने वालों की संख्या लाखों में थी, रॉयल इंडियन आर्मी के भी तीन सौ इक्यावन सैनिकों की मृत्यु के आंकड़े सरकार ने दिए। बाद में एए सिलवर की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया गया।
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मलेरिया की दवा खोजने वाले को नोबल मिला था
-सन 1840 में भारत में इस बीमारी का मुख्यता फैलाव रेल और नहर बनाने वाले श्रमिक वर्ग से फैला था। बहुत सारी मौतें रजिस्टर की गई। कम्पनी के एक चिकित्सक सर रोनाल्ड रास ने मलेरिया की दवाई की खोज की, जिसके कारण उन्हें चिकित्सा का नोबल पुरस्कार मिला।
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लंदन मिशनरी सोसायटी बिल्डिंग अल्मोड़ा (अल्मोड़ा का पहला टीबी सेनीटोरियम ) |
कालाजर ने भी बहुतों को मारा
-कालाजर, टीबी भी भयानक बीमारिया थीे। कालाजर सोने की बीमारी थी, जो पहले कभी भारत में नहीं थी, किन्तु विदेशियों के प्रभाव में आने से भारत मे फैली, सन 1900 से 1910 तक इस बीमारी से अनेक मौतें हुई, जिसके बाद सरकार ने एक आयोग नियुक्त किया। सन 1939 में टीबी का भी प्रकोप बढा, इसकी दवाई थीं नहीं। इसलिए मरीजों को इसमें अलग रखा जाता था।
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1974 की चेचक आई, 1980 में खत्म
-सन 1974 में भारत के अनेक प्रान्तों में चेचक का प्रस्फुटन हुआ। इस दौरान चेचक के कुल 61 हजार 482 केस रजिस्टर किये गए। भारत सरकार ने इसके नियंत्रण और उन्मूलन के लिये टारगेट जीरो अभियान चलाया। वर्ष 1980 में इस बीमारी के दुनिया से खात्मे का एलान किया गया।
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निपाह वायरस का केंद्र केरल था
-भारत में निपाह वायरस का केंद्र केरल था तथा यह वायरस चमगादड़ से फैला बताया गया था। कोझिकोड,मल्लपुरम जिले जो वायरस के आउट ब्रेक स्थान थे, यहां पहले हफ्ते में ही दस मौते हुईं। दो हजार लोग संक्रमित हुए ,केरल सरकार ने इससे निपटने के लिए व्यापक इंतेजाम किए।
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2009 का स्वाइनफ्लू
-2009 में स्वाइन फ्लू अमरीका और मैकिसको से भारत में आया। 13 मई 2010 को हैदराबाद एयरपोर्ट पर इसका पहला पेशेंट मिला और 24 मई को पुणे में पहली मौत हुई। आठ अगस्त 2010 तक पूरे भारत मे 1833 केस रजिस्टर किये गए। भारत ने इस बीमारी से लड़ने के लिये स्वदेशी टीके एचएनवीएसी को इजाद किया।
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हैपेटाइटिस बी के कारण दो डाक्टरों पर मुकदमे हुए
-प्रमुख रूप से गुजरात में 2009 में हैपेटाइटिस बी फैला। इससे 49 लोगों की मृत्यु हुई। दो डाक्टर गोविंद और चिन्तलाल पटेल को सिरिंज के बार बार प्रयोग करने का दोषी पाकर हत्या के प्रयास के मुक़दम्मे दर्ज हुए।
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ओडिसा का पीलिया
-2014 में उड़ीसा में पीलिया का प्रकोप हुआ। बलांगीर, कटक, खुर्दा जिले मुख्य रूप से प्रभावित थे। बीमारी फैलने का मुखय कारण दूषित जल था।
विवेक सेंगर: लेखक हिन्दुस्तान अखबार के जनपद शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश में ब्यूरो चीफ हैं, खोजी पत्रकारिता में महारथ, खबरों में भावनाओं को गूथ देने की प्रतिभा, समाज में जो हाशिएँ पर मौजूद हैं उनकी बात इंतजामिया तक खबरों के जरिए ले जाने के लिए जनमानस में प्रिय, इनसे viveksainger1@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं.
शोधपूर्ण जानकारी
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण जानकारी है। निश्चित रूप से इसके लिए पर्याप्त शोध और श्रम किया गया है। लेखक को मेरी हार्दिक बधाई।
ReplyDelete• प्रमोद दीक्षित 'मलय'
बांदा
लेखक एवं साहित्यकार
Enjoyed reading the content above, actually explains everything in detail, the article is extremely interesting and effective. Thank you and good luck in the articles.
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