इंतज़ार ख़त्म कहानी तो नही पर कहानी हाज़िर है..
कोरोना डायरी- कृष्ण कुमार मिश्र
आज की कथा- कोरोना अब बीड़ी पी रहा है!
(एक व्यंग कोरोना के लिए हम सबके लिए!
कोरोना डायरी की इन कहानियों अपनी खूबसूरत आवाज़ से सजाया है डिकोड एक्ज़ाम स्टूडियो से अमित वर्मा ने इस कहानी को सुनने के लिए रेडियो दुधवा लाइव के इस लिंक पर जा सकते हैं
कथित उच्च वर्ग यानी बिजनेस और इकोनॉमी क्लास से निकल कर कोरोना अब साइकल पर सवार है वह भी बिना मडगार्ड वाली और उस साइकल में सब बजता है सिवाय घण्टी के, कोरोना अब गरीब हो चुका है, कोरोना जो जहाजों और एसी बोगियों में सफर करता था तमाम तरह के रेस्त्रां में खाना खाता था, अब वह नरेगा की रक़म और कोटे के चावल पर निर्भर है, किसी वायरस की इतनी दयनीय स्थिति हमने नही देखी, इतना स्तरहीन तो एचआईवी, डेंगू और रैबीज कभी नही हुआ, वह आज भी अपने कद को संभाले हुए सेलिब्रिटी बना हुआ, प्रत्येक वर्ष सरकार इनके लिये वजट तय करती है सुंदर वार्ड बनाए जाते है, पर इस कोरोना की तक़दीर खराब हो गई भारतीय उपमहाद्वीप में आकर वार्ड डाक्टर तो छोड़ो पुलिस लट्ठ लिए पड़ी है करोनाओं के लिए, और गांवो में कमीशन से बनाए गए पंचायत घर व स्कूलों में कैद कर दिए जा रहे है कोरोना! सीलन भरे दरारों वाली बिल्डिंग्स में, हालांकि इसके लिए कोरोना स्वयं जिम्मेदार है..
.रोम, पेरिस, न्यूयार्क तक तो ठीक था, भारत आकर खासतौर से दिल्ली की झुग्गियों में, उसने खुद का क्लास ही बदल डाला, अब वह कैटल क्लास में बदल गया, अब वह खदेड़ा जा रहा है एक राज्य से दूसरे राज्य में, कई दिनों तक उसे चिलचिलाती धूप में राजमार्गों पर पैदल चलना होता है, भूखे और प्यासे, मार्गों के किनारे लगाए गए सरकारी नल भी बिल्कुल सरकारी हैं उनमें से कुछ नही निकलता और निकलता भी है तो आर्सेनिक फ्लोराइड वगैरह वग़ैरह जहर कह सकते हो आप, और चूंकि करोना गरीब हो चुका है इस सवा करोड़ की आबादी में तो वह मिनरल वाटर की बोतल भी नही खरीद सकता, कोरोना के प्रति दया दिखाने वालों पर भी लाठियां भांजी जा रही है सो कोरोना अब लावारिश है या सरकारी इमदाद पर...इमदाद में लाठियां जेल यानी क्वारनटाइन अथवा पूड़ी सब्जी भी मिल सकती है! कोरोना खुद अज़ाब फील कर रहा है उसे कुछ भी जेब नही दिख रहा भारत मे, उसकी उसकी तकदीर ने उसकी तदबीरों को लाचार बना दिया, चुनांचे अब वह गन्ना गोड़ रहा है, सरसों काट रहा। है, गेहूं की कटाई में लगा है, और खाने में वही राशन की दुकान का गेहूं चावल जिसे बेंच भी लेता है कोरोना कभी कभी जब पीने के लिए जेब मे चवन्नी नही होती है, स्कॉच से कच्ची पर उतर आया है और कोरियन सिगरेट से बीड़ी पर, जी हां अब कोरोना बीड़ी पी रहा है....
कोरोना में वैसे विविधिता आ गई है जैविक स्तर पर नही सामाजिक स्तर पर, भारत विविधिताओं का देश है कोरोना हवन में भी शामिल है तो नमाज़ी भी हो गया है, गिरिजाघरों मस्जिदों मंदिरों गुरुद्वारों प्रत्येक जगह पहुंच बना ली कोरोना ने, कोरोना दरअसल सेकुलर हो चुका है!? बस यही बात वे नही चाहते! मीडिया और बड़े घरों में लोगों के जिस्म में न सही दिमाग मे पैबस्त है कोरोना, लेकिन कोरोना का कैटल क्लास में आना दुनिया भर के बिज़नेस क्लास, पोलटिकल, इंटेलेक्चुअल क्लास सभी मे चर्चा का विषय है, कोरोना गुनहगार बन गया, इन उपरोक्त क्लास वाले लोगों को कतई गंवारा नही की यह इन गरीबों मजदूरों में कैसे पहुंच गया, इस पर तो हमारी बपौती थी, बहुत दुःखी और सहमे हुए है ये बड़े क्लास वाले लोग और शायद ख़ुद को कमतर आंकना भी शुरू ए कर दिया, उनकी गाड़िया, बंगले, स्कॉच और सभी ऐशोआराम छोड़ कोरोना बीड़ी पीने लगा, साइकिल चलाने लगा, फावड़ा चलाने लगा, बिना जीएसटी वाली पहले फूल की निकली गन्ने वाली शराब पीने लगा, कुल मिलाकर कोरोना व्याप्त हो गया भारत के इस जनमानस में जसके कंधे पर असलियत में पूरे देश का बोझ है मजदूरी किसानी करते हुए कोरोना से दहशत होने लगी उन्हें, सत्ताएं लड़खड़ाने लगी ...दरअसल कोरोना को दहशतशुदा बनाकर उन्होंने जो अज़ाब खड़ा किया उसकी चाबी उनके हातथ से खिसकते हुए दिखाई दे रही है, वे दहशतजदा हैं अब! क्योंकि कोरोना खुलेआम बीड़ी पी रहा है गांव की चौपाल में, और इस देश की आत्मा गांवों में बसती है, उन्हें डर है कोरोना अगर इस देश की आत्मा में बस गया तो उसे कैद कर पाना और अपने मनमाफ़िक नचा पाना मुश्किल हो जाएगा....
अब वे दूसरा रास्ता तलाशे गे, वो रास्ता होगा वो पिंजड़ा जिसमे सदियों तक कोरोना को कैद कर दिया जाएगा जहां से वह कभी आज़ाद नही हो सकता, जानते हैं वो पिजड़ा क्या होगा? वो पिजड़ा होगें हमारे आप के जिस्म...धरती पर कोई इंसान नही बचेगा और पैदा होने वाली पीढियां भी सबमे पैबस्त कर दिया जाएगा कोरोना एक वैक्सीन में बांधकर...इतना ही नही आने वाली पीढ़ियों में भी यह कोरोना डाला जाएगा, तमाम विदेशी कम्पनियों के पास इसका पेटेंट होगा, पहले इमदाद में मिलेंगे ये पिजड़े और फिर मार्केट में आ जाएंगे विथ जीएसटी.....उन्हें कतई पसंद नही इस बीड़ी पीते हुए कोरोना की जिजीविषा और न ही आज़ादी, वे हर इंसान में कोरोना को क्वारनटाइन कर देंगे, ताकि सब एक तरह हो जाए, उस कोरोना का अलाहिदा अस्तित्व हो न बचे, नही तो बीड़ी वाला कोरोना न जाने कब इंकलाब कर दें, क्योंकि सभ्यता में जो कुछ सुंदर भव्य और निर्मल दिख रहा है, उस सुंदरता, भव्यता और निर्मलता के पीछे यही लोग खड़े है रोके हुए वह सारा भार अपने बिना सैनेटाइज़ किए हुए मैले हाथों से.....
कृष्ण कुमार मिश्र
संस्थापक शिव कुमारी देवी मेमोरियल ट्रस्ट एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल दुधवा लाइव
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