कृष्ण कुमार मिश्र की #CoronaDiary कोरोना डायरी- 2
कोरोना अब जवाहरात वाला ताज़ पहन चुका है!
हमारा अपना कोरोना...
कोरोना डायरी की इन कहानियों अपनी खूबसूरत आवाज़ से सजाया है डिकोड एक्ज़ाम स्टूडियो से अमित वर्मा ने इस कहानी को सुनने के लिए रेडियो दुधवा लाइव के इस लिंक पर जा सकते हैं
कोरोना ने समंदर लांघे, सीमाएं लांघी और अदृश्य होकर वह शहर फिर भारत के गांवों में दाख़िल हो चुका है, बस यहीं चूक हुई कोरोना से, उसने पानी के जहाजों पर चढ़ सात समंदर पार किए, हवाई यात्राएं की, भारतीय रेल और रोडवेज की बसों पर भी बिना टिकट सवारी की कुल मिला कर दुनिया के टूर पर निकला यह इब्लीस बिना बीजा पासपोर्ट धरती के चक्कर लगा रहा है, अश्वमेघ यज्ञ जैसा माहौल बनाकर जब इसने भारत के सरकारी और प्राइवेट एयरलाइंस की भी सवारी की, लेकिन जिस दिन इसने राजमार्ग छोड़ ग्रामीण भारत की सड़कों पर डग्गामार वाहनों पर सवारी की और गांवों की तरफ रूख़ किया उस दिन से इसके बुरे दिन शुरू हो गए, क्योंकि भारत के गांव चीजों का बिना भारतीय करण किए हुए नही मानते चाहे वह भाषा हो, धर्म हो, संस्कृति हो या फिर व्यक्ति, इतिहास गवाह है हमने हर उस वस्तु संस्कृति भाषा और व्यक्ति को सम्मलियन कर लिया जो अलाहिदा सी लगी हमें, अब इस करोना की भी हालत क्या है इसकी कहानी भी सुन लीजिए....
कोरोना का भारतीयकरण-
अभी पिछले दिनों हमारे गांव के लोग खेतों में गन्ना काटने गए, मीडिया और सरकारों के प्रयासों से जो सन्नाटा पसरा है, इंसानी जमात में दरअसल वह मनुष्य के अंतर्मन में पसर गया, मन सन्नाटे में है अब, प्रकृति तो चहचहा रही है चिड़ियों के मार्फ़त और बिखेर रही है रंग नन्हे नन्हे तमाम किस्मों के फूलों के जरिए, गांव में सियार भी शाम होते वैसे ही हुक रहे हैं जैसे सदियों पहले हूकते थे, कोई तब्दीली नही है, बस इंसानी जमात को छोड़कर!! लेकिन अथाह कल्पनाओं के सागर में डुबकी लगाए हुए यह आदम जात की अपनी अदाएं हैं, हां तो हमारे गांव के लोग जब हंसिया बांका लिए खेतों की जानिब बढ़े तो उनके सन्नाटे से भरे मन मस्तिष्क ने जब चिड़ियों की आवाज़ सुनी और हवाओं की सरसराहट तो रोज घटने वाली इन प्राकृतिक हलचलों में उन्हें कोरोना का एहसास होने लगा, और फिर कुछ क़दम आगे बढ़ने पर हवाओं के झोंके ने गन्ने के खेतों में हलचल कर दी, और फिर क्या हंसिया बांका छोड़ वे भागे गांव की तरफ, कोरोना आई गवा...कोरोना गन्ना महिआ बैठो है....तब से कोरोना हमारे गांव के गन्ने के खेतों में रह रहा है...एक अदृश्य भय....इंसानी दिमाग़ की कल्पनाशक्तियों को इतना उद्देलित करता है कि उससे मील का पत्थर साबित होने वाला साहित्य उपज आता है...आगे देखिएगा की कोरोना कैसे मुकुट लगाए था उसमें कितने हीरे मोती जड़े थे, वह घोड़े पर सवार था और उसके पास भाला था या तलवार....हम भारतीयकरण किए बिना नही मानने वाले...हमने प्लेग और हैजे को भी न जाने क्या क्या बनाया है अतीत में...वह भी स्तब्ध होंगे कि हम क्या से क्या हो गए इस देश में आकर....आज बस इतना ही आगे कोरोना को मारने के तमाम तरीकों की चर्चा करेंगे जो आजमाएं जा रहे हैं हमारे जनमानस में, हमने मानवता को आशा दिखाई है हमेशा, डर में भी हमने कहानियां रची हैं, और टोटके भी...वक़्त के साथ ये कोरोना भी गुज़र जाएगा एक दिन और पीछे छोड़ जाएगा अनगिनित कहानियां.... ग्रीक कहानियों में कहते है जब प्रोमेथियस ने स्वर्ग सेअग्नि चुराई तो ज्यूज जो की इंद्र की तरह देवताओं का राजा था, उसने प्रोमेथियस से बदला लेने के लिए उसके भाई को पेंडोरा सौंप दी और उसे दे दिया एक बक्सा की इसे कभी मत खोलना लेकिन उत्सुकता में पेंडोरा का जादुई बक्सा जब खोल दिया गया तो उसमें से बहुत शैतानी ताकते बाहर आई, जिन्होंने धरती पर तबाही मचा दी, फिर अचानक भय में उसने उस बक्से को बन्द कर दिया, कहते हैं कि उसमें अब जो बचा हुआ है वह है आशा....बस हम पेंडोरा के उस बक्से की उस आशा को बचाए हुए हैं, फिर उस आशा में हम कोरोना से लड़ने के लिए, चाहे कुएं में पानी डालते हों, या फिर रामचरितमानस के बालकाण्ड में बाल मिलने की एक कथा रचते हैं, या दरवाजे पर दीपक जलाते हों या फिर तीन कनस्तर पीट कर स्वयं की एकता और उस शोर में स्वयं में सदियों पुरानी अपनी शिकारी प्रवत्ति का भाव लिए दुश्मन कोरोना को घेरने और मारने के लिए हांका लगाते हो, इन सब के पीछे वह पेंडोरा के बक्से में बची हुई आस ही है हमारी मानवता के पास और वह आस ही हमें इस शैतान से जीत दिलाएंगी...
कृष्ण कुमार मिश्र
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