कृष्ण कुमार मिश्र की कोरोना डायरी में आज फिर नई कहानी हाज़िर है...
तो सुनिएगा...
कोरोना डायरी की इन कहानियों अपनी खूबसूरत आवाज़ से सजाया है डिकोड एक्ज़ाम स्टूडियो से अमित वर्मा ने इस कहानी को सुनने के लिए रेडियो दुधवा लाइव के इस लिंक पर जा सकते हैं
कहानी में कहानी का होना, या फिर तमाम कहानियों का होना ही कहानी को गम्भीर और रोचक बना देता है, ऐसी ही एक लोककथा से शुरू करता हूँ आज का किस्सा, पुरानी बात है किसी गांव में आग लग गई, पूरा गांव बाल्टियां रस्सी लेकर कुओं तालाबों पर इकट्ठा हुआ, सभी पानी भर भर कर जलते हुए घरों दरख्तों पर डालते, तभी एक चिड़िया वहां आई जिसका घर भी गांव के ही एक नीम के पेड़ पर था, उस चिड़िया ने भी अपनी चोंच में तालाब से पानी भर भर कर गांव के जलते घरों पर छिड़कने लगी, गांव के लोगों में कौतूहल हुआ, हंसे भी वे, की यह चिड़िया पागल हो गई है...कहीं इसकी चोंच भर पानी से ये आग का दावानल बुझेगा, चिड़िया मुस्कराई! और बोली जब भी कभी इस गांव की आग बुझाने वालों का ज़िक्र कहां सुना और लिखा जाएगा तो उसमें मेरा भी नाम दर्ज होगा....
उस चिड़िया के यह वाक्य सभी को मौन करा गए....कुछ ऐसी ही तो जिंदगी है, लगी हुई आग में जल की एक बूंद भी उस आग के ह्रदय पर वज्र की तरह चोट करती है, जल विलोम है अग्नि का, शत्रु भी, और एंटीडोट भी, इस लिए आपने समंदर उड़ेला या बून्द तासीर एक ही हुई न और क्या हुई तासीर बून्द में भी जल है घड़े में भी और दोनों शांत करने की वृत्ति रखते हैं, बून्द भी शांत ही करेगी क्योंकि जल की बूंद और जल की तासीर ही है शांत करना, सो सूक्ष्मता को दरकिनार कर देना बुद्धिमानों का काम नही जाहिलों का होता है, अब कोरोना का ही ज़िक्र कर लें तो उसकी सूक्ष्मता को नजरंदाज करना और कमतर आँकना किटने बड़े अज़ाब को जन्म दे गया, उस सूक्ष्मता की तीव्रता कितनी घातक है...यही रहस्य तो छुपा है उस चिड़िया के मुस्कराने में...ख़ैर, दुनिया दुबकी हुई है इस सूक्ष्मता के खौफ़ में, और प्रकृति विस्तार कर रही है, सड़कों पर पौधे उग आए हैं, गाड़ियों में जीवों ने अपना घर बना लिया, ओवरब्रिज और हाइवे अब पूरी तरह से फाख्ता कबूतर जैसी चिड़ियों के घर बन चुके हैं, मधुमक्खियां भी बढ़ा रही हैं जहां तहां अपनी तादाद, क्योंकि फूलों पर जहर डालने वाली जात खुद को सैनेटाइज़ करने में व्यस्त हैं!
गरीबों इक्कों व बैलगाड़ियों के दुश्मन ये फ्लाईओवर अब रैनबसेरा है उन पशुओं के जिन्हें आवारा कहकर दुकानदार उन पर गर्म पानी छोड़ते थे, लाठियां मारते थे, अब यहां इंसानी दुकानदारों का अतिक्रमण ख़त्म, अब सकूँ से रहती हैं वह बछड़े की माँ वे कुत्ते वह हड़प्पा की खुदाई में मिला भित्ति चित्र वाला साँड़, लाठियां अब आदमी खा रहा है और गर्म पानी से नहा भी रहा है, कोरोना की मग़ज़मारी के आलम में बहुत मंजर नाज़िर हुए हैं,
अब ले चलते हैं आपको गांव की ज़ानिब, वहां एआम के पुराने बगीचे राहत की सांस लिए हुए है, कोरौना न होता तो कोई ठेकेदार चंद रूपए में गांव के किसी किसान की गरीबी दूर करने का स्वप्न दिखाकर कटवा चुका होता, हमारे गांव के मगरिब में बहने वाली नदी भी साफ हो गई है, क्योंकि प्रदूषण बोर्ड को मैनेज करके इन बहती जलधाराओं में जहर बहाने वाले कारखाने बन्द हैं, जमीन को भी कुछ राहत मिली वह पहियो वाली बड़ी बड़ी मशीनों की वजह से थर्रा जाती थी, कृषि कार्य भी अब जरूरत भर हो रहा है सो जिन खेतों में स्वार्थी आदमी के शब्दों में खरपतवार रूपी पौधे झाड़ियां और लताएं उग आई हैं उन पर भौरे तितलियां और चिड़ियां परवाज भर रही हैं, जिन जीवों को आवारा कहकर लोग खेतों में कंटीली बाड़ लगाते थे, वे सहमे हुए लोग कंटीले तारों और बल्लियों से अपने घर और गांव को घेर रहा है, इंसान इंसान से फासला कर रहा हैं, क्या विडंम्बना है ज़हनी फासले तो थे ही अब जिस्मों के फ़ासलात मौजू हो गए!
लोगों को अचरज है कि परिंदे उनके घर के पास दिखने लगे चिड़ियां चहचहा रही हैं, कोयल कूक रही है, अब सूरज भी पूरब से ही उग रहा हैं, क्योंकि अब कोरौना ने इंसान की जैविक घड़ी भी दुरुस्त कर दी, और कानों के मैल भी साफ कर दिए, दरअसल सच्चाई तो ये है कि कोरौना ने दिमाग को असलियत दिखा दी सोना चांदी के बाज़ाए आलू टमाटर और गेहूं धान प्रासंगिक हो उठे, वे थे ही बुनियादी पर आप हमने अपनी प्रसंगिकताएँ तब्दील कर ली थी, चिड़िया कहीं गई नही थी वह तो रोज आपकी मुडेर से आपको आवाज़ लगाती थी, आप के पास फुर्सत नही थी, और आपने अपने मगज़ में इतने शोर पहले से बनाए थे कि प्रकृति की आवाज़ आपको सुनाई नही देती थी, क्योंकि सिक्कों की खनक ज्यादा ध्वनित हो गई थी।
फिर भी अब ये चिड़िया के बच्चे अपनी तादाद बढाएंगे, तितलियां मधुमख्खी, हिरन बाघ सभी इस विस्तारित प्रकृति में आनन्दित हो रहे, उनके खाने वाले पुष्पों के परागरस पर जहर जो नही छिड़क रहा आदमी, दरख्तों और पौधों की पत्तियाँ अब पेट्रोलियम प्रदूषण से मुक्त जो हैं, और मानव जनित मशीनों की घातक ध्वनि तरंगे जो खामोश हो चुकी हैं, इन सब ने बहुत राहत पहुंचाई है प्रकृति को, कोरौना ने जता दिया है चुपके से की इंसान प्रकृति का बहुत मामूली हिस्सा है शायद चींटी से भी कमजोर, पर खुरापाती दिमाग ने उसे प्रकृति पर राज करने की वृत्ति पैदा कर दी और आदमी की इसी इम्पीरियल अवधारणा ने उसे प्रकृति का विनाशक बना दिया....
चूंकि बात चिड़िया से शुरू हुई और उसकी भावना से, बड़ा पवित्र और रहस्यमयी शब्द है ये, भावना तासीर यानी वृत्ति से जुड़ी हुई है, जैसे कटोरे भर दाल में एक चुटकी हींग की छौंक देना, वह छौंक भावना है, उस मटके भर दाल पर उस चुटकी भर भावना का असर तो देखे ही होंगे, अब समझ जाइएगा की भावना का लघुता और विराटता से कोई ताल्लुक नही, भावना सुंदर ही होती है और समेट लेती है उस वस्तु को अपनी सुंदर तासीर से, खुद की तरह बना देती है, समाहित कर लेती है।
चलो अब उस चिड़िया के पास चलते हैं वह जरूर कोई गीत गा रही होगी. .
कोरौना की मेहरबानी से, खाने वाले अनाजों की, फलों की सबसे ज्यादा उत्पादन में परागण करके मदद करने वाली हमारी मधुमख्खी ने हमारे घर के पास के शहतूत पर अपना आशियाना बना लिया है, एक विशाल घर, जहां वह लाखो की तादाद में है, जानते हो अब वह चिड़िया अकेली नही रह गई, उसके सहजीवी आ चुके हैं, अब इस शहतूत की डालियों को आदमजात भी छूने से डरेगा और उस चिड़िया के दुश्मन भी, उसका नीड अब सुरक्षित है.
.वह मुस्करा रही है उस आग बुझाने की सुंदर भावना के साथ अपनी चोंच में लिए हुए पानी की चंद बूंदें।
कृष्ण कुमार मिश्र ऑफ मैनहन
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