फ़ूलदेई...
छम्मा देई
सूरज मीन राशि में प्रवेश कर गया यह संक्रान्ति है खगोल व ज्योतिष विद्या में और इसी संक्रान्ति में उत्तर भारत के खासतौर से कुमाऊँ में फ़ूलदेई का त्योहार मनाया जाता है चैत के इस महीने में, चैत्र या चैत चटक धूप चटक फूलों के संग सप्तरंगी आभा बिखेरती है, बगीचों, झुरमुटों, जंगलों और खेतों में न जाने कितनी जानी अनजानी वनस्पतियां खिला देती हैं अनगिनित पुष्प, नए जीवन के द्योतक होते हैं यह पुष्प, नए जीवन की उमंग में मानव समाज के नए जीवन यानी बच्चे प्रकृति की इस नवीनता को बिखेर आते हैं गांव की हर चौखट पर और दे आते हैं जीवन की नवीनता का संदेश, अपनी और प्रकृति की इन वनस्पतियों दोनों की, यह त्यौहार नौजीवन का संदेश है, नवीनता के मध्य संचार का भी, और प्रकृति और मनुष्य के नौजीवन के मध्य समरसता का भी, एक जान पहचान अपने आसपास की हरियाली से और उसका वंदन भी, गांव के घरों बुजुर्गों से परिचय भी, गांव की गलियों, पगडंडियों, खेतों से राब्ता भी, कुल मिलाकर बच्चों को गांव का जुग्राफिया, समाजशास्त्र और वनस्पत्ति विद्या से रूबरू कराने की यह परम्परा है हमारे पुरखों की फ़ूलदेई...
फूलदेई, छम्मा देई,
दैंणी द्वार, भर भकार,
य देई में हो, खुशी अपार,
जुतक देला, उतुक पाला,
य देई कैं, बारम्बार नमस्कार.
फूलदेई, छम्मा देई....इस गीत का कोई उत्तराखंड वासी अनुवाद कर सके तो ज़रूर करे...सादर
फूल देने लेने की परम्पराएं जगत में हमेशा जीवित रहें इसी अभिलाषा के साथ...कृष्ण
हमेशा की तरह नयनाभिराम और जानकारी से पूर्ण एक मुकम्मल पोस्ट | मैं आपके ब्लॉग के प्रशंसकों में से एक हूँ
ReplyDeleteशुक्रिया बन्धु। हमारा बहुत पुराना परिचय है ब्लॉगिंग के उस दौर से, और उन सभी से जिन्होंने हिंदी लेखन की शुरुवात की थी यूनीकोड में।
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