चम्पावत जनपद के लोहाघाट क़स्बे से कुछ दूर एक ऊंची चोटी पर इम्पेरियल दौर की एक अंग्रेजी बसाहट हुआ करती थी जिसे एक अंग्रेज ने उन्नीसवीं सदी की शुरुवात में बसाया, उस अंग्रेज का नाम था जॉन हेराल्ड एबट, और उसी के नाम से यह पहाड़ी एबट माउंट के नाम से मशहूर हो गई, यह जगह स्वतंत्र भारत में अब रायकोट ग्राम पंचायत के अन्तर्गत है, देवदार, बांज, काफ़ल, और बुरांस जैसे वृक्षों से सजी सुरम्य वादियों से घिरी हुई यह पहाड़ी बरतानिया हुक़ूमत और उसके निशानों की निशानदेही आज भी बखूबी कराती है, मौत के डाक्टर यानी डाक्टर मोरिस का भुतहा अस्पताल व मौत की कोठरियां आज साम्राज्य वादी दौर की रोचक कहानियां बतला रही हैं...
लेकिन आज हम बात करेंगे उस कायनात बनाने वाले के उस सुंदर कृत्य की और उसे सजाने संवारने वाले हमारे कुमायूँ के लोगों की, यह वह निर्माण है जिसे साम्राज्यवादी ताक़ते नही गढ़ती बल्कि प्रकृति स्वयं रचती है, जी यकीनन हम बात कर रहे है, देवदार बांज आदि के जंगलों से रिसते हुए उस पवित्र जल की जिसे इंसान एक जगह इकट्ठा करने के लिए जल कुंड व मंदिर बनाता है... इसे जल मंदिर, जिसे नौला कहते हैं कुमायूँ में, यह वह इंसानी रचनाएं है पहाड़ में जैसे मैदानी इलाकों के समाज मे लोग तालाबों को पक्का कर वहां देवताओं की मूर्ति अथवा मंदिर निर्माण कर तीर्थ बनाते है, हिंदुस्तानी सामाज में सभी धार्मिक कार्यों की यह पवित्र और निहायत जरूरी स्थान माना जाता है, जल तो यूँ ही सर्वोत्तम है, हर सम्प्रदाय में इसकी धार्मिक महत्ता है इस बात से इतर की जीवन के लिए यह प्रमुख तत्व है, जल द्योतक है पवित्रता का और बुनियादी है जीवन के लिए, इसी लिए इंसान जल स्रोतों के निकट ही बसते रहे और देवता भी वही स्थापित होते रहे, पहाड़ में जंगलों से रिसते इस पानी की तन मन और धर्म से ताबेदारी करना और वहां देवताओं को स्थापित कर इंसानी समाज की सभी परम्पराओं, मान्यताओं को इन्ही जल स्रोतों के पास आकर इंतखाब करना, मानव विकास में पारम्परिक तौर पर पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया है, कहीं न कहीं यह इंसानी समझ का नतीजा है, उसकी जरूरत के मुताबिक प्रकृति की इन पवित्र बहुमूल्य चीजों को समेट व सरंक्षित कर लेने की तह ए दिल से, अपनी आने वाली पुश्तों के लिए ताकि ये जीवन अनवरत चलता रहे इस ग्रह पर और वसुंधरा शस्य स्यामल रहे...परन्तु अब इंसानी मिज़ाज बदला है, पूंजीवाद और पूँजीतन्त्र ने संवेदनाओं को रौंद डाला है, बस वे ख़ूबसूरत इबारतें जो प्रकृति और इंसान की साझा बेमोल अमानतें रही वह मात्र परंपरा ने हमारे बीच जिंदा रखा है।
यह जो नौला है रहस्यमयी भुतहा कहानियों से मशहूर हुए एबट माउंट का, इसके तीन हिस्से है, एक कपड़े धोने के लिए, दूसरा हिस्सा नहाने के लिए, जिसके करीब में गुसलखाना भी मौजूद है, और तीसरा हिस्सा पीने के पानी के लिए....
इसका जीर्णोद्धार भी उत्तराखण्ड सरकार द्वारा कराया गया, और एबट माउंट अभी भी इसी नौले पर निर्भर है अपनी प्यास बुझाने के लिए।
एबट माउंट के प्ले ग्राउंड से नीचे उतरते हुए एक पतली पगडण्डी जो पहाड़ी पुष्पों की झाड़ियों और देवदार से घिरी है, आप को एबट माउंट के इस नौले तक ले जाएगी तकरीबन एक किलोमीटर फिसलते हुए आप इस नम व स्याह हरियाली वाली पगडण्डी से गुजरते हुए नौले की ज़ानिब बढ़ेंगे, तो एबट माउंट के कुख्यात डाक्टर मोरिस व उनके मौत को जानने वाले खतरनाक प्रयोगों में मर चुके मरीजों की आत्माओं का रूहानी एहसास जरूर हो सकता है, एक सुनसान डरावनी पगडण्डी जो आप को पहुंचाएगी एबट माउंट के इस जल मंदिर तक जो आज भी हरा है भरा है....
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-खीरी 262701
उत्तर प्रदेश
भारत गणराज्य
Email: krishna.manhan@gmail.com
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