कुमायूँ के पंत नौला का तारीख़ी तज़किरा
ज्योत्सना खत्री
दिनांक 07, 2019 जनवरी को परियोजना द्वारा चयनित वन पंचायत स्यूंनराकोट में मत्स्य विभाग व सुधा संस्था, अल्मोड़ा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित गोष्ठी में जाने का अवसर मिला। इस दौरान पुन: पंत नौला का भी निरीक्षण किया। पूर्व में भी मैंने कवि सुमित्रानंदन पंत जी के इस पैतृक गांव व पंत नौले का अपनी एक पोस्ट में उल्लेख किया है। पंत जी के पारिवारिक सदस्य श्री ललित प्रसाद पंत जी द्वारा सुमित्रानंदन पंत जी की याद में स्मारक व संग्रहालय निर्माण हेतु एक नाली भूमि का दान किया गया है जिस पर सोमेश्वर के तत्कालीन विधायक श्री अजय टम्टा जी (वर्तमान में कपड़ा राज्य मंत्री) द्वारा वर्ष 2011-12 में रु० पिचत्तर हजार की धनराशि विधायक निधि से स्वीकृत कर इसकी आधारशिला रखी गई है, किन्तु छ:- सात वर्ष बीत जाने के बाद भी ये कार्य धनाभाव में अपूर्ण ही है।
इस भूमि के नीचे ऐतिहासिक व कुमाऊं की बेजोड़ शिल्पकला का प्रतीक पंत्यौरा नौला या पंत नौला की स्थिति भी पूर्व की भांति जीर्ण शीर्ण अवस्था में ही है।
सोशल मीडिया पर वर्तमान विधायक श्रीमती रेखा आर्य जी व अन्य मंत्रीगणों को मेरे द्वारा इसकी जानकारी भी दी गई थी, तब के तत्कालीन माननीय मंत्री जी स्वर्गीय श्री प्रकाश पंत जी, Prakash Pant जी के द्वारा इस प्रकरण को संस्कृति निदेशक को संदर्भित करने की बात 31 मार्च 2018 को की गई थी। समय-समय पर मेरे द्वारा इस संबंध में जानकारी ली जाती रही व 7 जनवरी को वन पंचायत सरपंच जी को पुन: एक पत्र ग्रामीणों के द्वारा माननीय मुख्य मंत्री जी व अन्य स्थानीय जन प्रतिनिधियों को भी प्रतिलिपि करने को कहा गया।
पंत्यौरा नौला में इस वर्ष विकासखण्ड हवालबाग की तरफ से पिचत्तर हजार की धनराशि मरम्मत हेतु दी गई किन्तु मात्र एक पुस्ता बनाकर इतिश्री कर ली गई।
ऐतिहासिक स्थलों व कला का संरक्षण कर इनको ईको टूरिज्म से जोड़कर स्थानीय लोगों की आजीविका को बढ़ाया जा सकता है। वर्तमान स्थिति इन तस्वीरों में देखकर इनके ऐतिहासिक महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है जो कि संभवत चौदहवीं सदी के आस पास निर्मित संरचनायें प्रतीत होती हैं।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों व पत्रकारिता से जुड़े मित्रों से भी अनुरोध है कि इस विषय को सरकार व संबंधित विभागों के संज्ञान में लायें जिससे कवि सुमित्रानंदन पंत जी का ये उपेक्षित गांव अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के स्थल के रुप में अपनी पहचान बना सके...!!!
2017 में गणानाथ वन रेंज अन्तर्गत परियोजना हेतु चयनित वन पंचायत स्यूंनरा कोट में अपने सहयोगियों भुवन चन्द्र पांडे, पंकज सिंह कपकोटि व वन बीट अधिकारी गणेश आर्य के साथ पुन: बैठक हेतु जाने का मौका मिला। बैठक में दो नये महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन करने व माइक्रोप्लान हेतु आवश्यक सूचनायें एकत्रित करने के उपरांत ग्राम में ट्रांजेक्ट वॉक किया।
जैसा कि विदित है मेरी पूर्व में भी मैंने इस गांव का उल्लेख किया है। यह गांव प्रकृति के सुकुमार कवि श्री सुमित्रानंदन पंत जी का पैतृक गांव है। जन्म के समय माताजी की मृत्यु उपरांत उनका लालन-पालन कौसानी, उनके ननिहाल में हुआ जिसका हर साहित्य में उल्लेख मिलता है लेकिन पैतृक गांव स्यूंनरा कोट आज भी उपेक्षित है।
इसके साथ ही गांव में गुप्त व कत्यूरी शासकों के समय के अवशेष हैं जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी पुरातत्व विभाग द्वारा कोई सुध नहीं ली गई है जबकि इसके लिए ग्रामीणों द्वारा कई बार पत्र भी लिखा जा चुका है।
गांव में पंत जी के पारिवारिक सदस्य श्री ललित प्रसाद पंत जी के प्रयासों से स्मारक हेतु एक नाली भूमि का दान किया गया है व वर्ष २०११-१२ में सोमेश्वर के तत्कालीन विधायक श्री अजय टम्टा जी (वर्तमान में केन्द्रीय कपड़ा राज्य मंत्री) द्वारा स्वीकृत विधायक निधि ७५००० रु० से स्मारक की आधारशिला रखी गई है किन्तु धनाभाव से इसका काम रूका हुआ है। श्री ललित प्रसाद पंत जी द्वारा बताया गया कि इस स्मारक स्थल पर एक पुस्तकालय भी पंतजी की स्मृति में बनाया जाना है जिसके लिए वो प्रयासरत हैं।
स्मारक स्थल से नीचे प्राचीन शिल्पकला को दर्शाता पंत नौला भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में मिला जो एक विशेष शैली से निर्मित ऐतिहासिक नौला है। तस्वीरों से स्पष्ट इस शैली को जाना जा सकता है जो कि आज दुर्लभ हैं।
सरकार से व स्थानीय जनप्रतिनिधियों से निवेदन है कि पहाड़ की इस पुरातन व ऐतिहासिक कलाओं के संरक्षण हेतु प्रयास किया जाये जिससे आने वाली पीढ़ियों को अपनी परंपरा व ऐतिहासिक संस्कृति पर गर्व हो।
ज्योत्सना खत्री- लेखिका देहरादून की रहने वाली हैं दो दशकों से अधिक समय से सामाजिक व पर्यावरणीय विषयों पर कार्य कर रही हैं, राष्ट्रीय व अंर्तराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ कार्यानुभव, कुमायूँ में खासतौर से अल्मोड़ा जनपद में जायका प्रोजेक्ट में वन विभाग उत्तराखण्ड के साथ कई वर्षों का कार्यानुभव, लेखन, फोटोग्राफी और कविताओं में विशेष अभिरुचियाँ, दुधवा लाइव पत्रिका में जल व वन से सम्बंधित तथा कुमायूँ के इतिहास पर इनके लेख भविष्य में पढ़े जा सकेंगे।
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