दीमक की बांबी पर उगता है ये मशरूम
धरती के फूल वाक़ई ये नाम बहुत ही मुनासिब है इस फंगस के लिए, जो बारिश के मौसम में उगती है जमीन को तोड़ कर, और इंसानी जमातें टूट पड़ती है इसे पाने के लिए, कुछ तो अपनी बुनियादी जरूरत को पूरा करने के लिए जंगलों सड़क के किनारों व नहरों की तलहटी में इसे तलाशती हैं और फिर सड़कों के किनारे या बाज़ार में जाकर बेचती है, खनिज तत्वों से भरपूर एक अच्छी प्रोटीन का स्रोत है यह मशरूम, डायबिटीज व दिल के मरीजों के लिए तो बहुत ही मुफ़ीद है यह फंगस।
इस फंगस का वैज्ञानिक नाम टरमिटोमायसीज Termitomyces है यह Lyophyllaceae परिवार से ताल्लुक रखता है, दुनिया मे इसकी तकरीबन 40 प्रजातियां ज्ञात है जो खाने योग्य होती हैं, हालांकि इससे मिलती जुलती किस्में भी है जिनका इस फंगस के परिवार से कोई रिश्ता नही लेकिन यदि आप उन्हें पहचानने में सक्षम नही हैं और उसका इस्तेमाल खाने में करते हैं, तो यकीनन वह मशरूम जहरीला हो सकता है जो किसी भी जीव की मौत का कारण बन सकता है।
इस फंगस की एक सबसे बड़ी किस्म अफ्रीका में मिलती है जिसका कैप तकरीबन तीन फुट गोलाई में मोटा होता है, युगांडा की आदिवासी जातियों के पास इस मशरूम का बहुत उम्दा पारम्परिक ज्ञान रहा है जिनसे योरोप के वैज्ञानिक ने यह सीखा की यह मशरूम वहां उगती है जहां दीमक की मौजूदगी हो और दीमक के द्वारा स्रावित मल आदि से यह पोषण लेती है तथा यह दीमक को भोजन उपलब्ध कराती है कुल मिलाकर यह सहजीविता का मसला है जिसे symbiosis कहते है।
गौरतलब ये है कि आदमी को यह मशरूम तो खाने के लिए चाहिए, किन्तु आदमी ने इस फंगस के उगने वाले सभी हैबिटेट यानी पर्यावासों को नष्ट कर दिया, जमीन के हर हिस्से को फसल उगाने के लिए जोत डाला और उसमे छिड़क रहा है कोराजेन फर्टेरा, एंडोसल्फान, फोरेट, जैसे कीटनाशक जो दीमक को नष्ट करते है, ऐसे में यह धरती का फूल पनप ही नही सकता बिना दीमक के, अब हमारे मुल्क में एक दो जगह ही बचती हैं जहां ये खूबसूरत स्वास्थ्यवर्धक मशरूम उग सकता है वह है पी डब्ल्यू डी की सड़कों के किनारे, और नहर की पगडंडियों की जमीन, और सरंक्षित जंगल जहां जहरीले रसायन नही होते क्योंकि इंसान उन सरकारी जगहों का इस्तेमाल कृषि या अन्य कार्यों में नही कर पाता, नतीजतन वहां दीमक अपने घर बनाती है और वहां उग आते हैं धरती के फूल...
विज्ञान की दुनिया बहुत बाद में लगभग 19वीं सदी में जान पाई की दीमक और धरती के फूल की सहजीविता का राज, जबकि इस फंगस का खाने में सदियों से इस्तेमाल कर रही हैं मानव सभ्यताएं, और पारम्परिक ज्ञान के तौर पर समुदायों और खासकर जनजातियों को यह इल्म बहुत पहले से रहा, प्रकृति के नज़दीक रहते हुए जो ज्ञान परम्परा में रहा विज्ञान ने वही सीखा सबकुछ, धरती के फूल और दीमक का यह ताना बाना उसकी एक बानगी भर है
तो आइंदा से अगर इस पौष्टिक मशरूम धरती के फूल के स्वाद की बेइंतहा जरूरत है आप सब को तो धरती में जहर डालना छोड़ दीजिए और छोड़ दीजिए कुछ जमीनें इन फूलों के लिए जो धरती अपने गर्भ से तुम्हे यूँ ही मुफ़्त में दे दे रही है....
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
खीरी
भारत वर्ष
बस्तर में स्थानीय लोग इसे दशहरा फूटू के नाम से जानते हैं । मधुमेह और मोटापे के अतिरिक्त कैंसर, लाइपोमा और रक्त में बढ़ी हुई ट्राइग्लिसराइड की स्थिति में भी इसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है । दशहरा के आसपास पाए जाने के कारण इसका नाम दशहरा फ़ूटू पड़ गया । अपने गुणों और स्वाद के कारण यह बस्तर में बहुत महंगा बिकता है यानी पचास रुपये से लेकर एक सौ रु. प्रति जूरी तक, एक जूरी में इनकी संख्या 8-10 ही होती है, इसके बाद भी यहाँ के लोगों में यह बहुत लोकप्रिय है ।
ReplyDeletelakhimpur me yeh iss saal 400 se 1000 rupye kilo tak me bika hai
ReplyDeleteकिस मौसम में पाई जाती है
ReplyDeleteसावन से कार्तिक मास तक
Deleteहमारे यहां यह 300 से 1000 रुपये किलो तक बिकता है..
ReplyDeleteइस वर्ष जंगल मे बाघो की संख्या बढ़ने के कारण विशेष मनाही के चलते अधिक महंगा है..
ReplyDeleteसावन से कार्तिक तक
ReplyDeleteThis article is entirely dedicated to our mother earth.
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