Photo courtsey: Wikipedia, Karthik Easvur |
मेरा ठौर ठिकाना छीना
दाना पानी खाना छीना
रैन बसेरा कहाँ बनाऊं
धरती अम्बर जंगल छीना
कलरव को ही दूर भगाया
घर पिंजरा जैसा बनवाया
पिंजरे में तो हम रहते थे
अब पिंजरे में खुद बंद कराया
आले ताखे में रहती थी
था वह मेरा रैन बसेरा
खिड़की से आती जाती थी
नही किसी ने मुझको घेरा
दादी नानी दाना देकर
मुझे बुलाती रहती थी
अम्माँ चावल बिखराती थी
हम दिनभर खाती रहती थी
अम्माँ रंग में मुझे थी रंगती
यह कहती जा फिर से आना
दादी दाना मुझे खिलाकर
पानी भी भरपेट पिलाती
अब भय्या ने ए सी लगवाया
खिड़की को दीवाल बनाया
छत पर टावर लगा हुआ है
जान का दुश्मन बना हुआ है
बेटे के हाथों में गन देकर
बेटे के आंसू पोंछ दिए
मेरे बेटे की बलि लेकर
मुझको आँसू सौप दिए
मैं शाप भी दे दूं कैसे तुमको
तेरा दाना खाया है
अपने बेटे की बलि देकर
पन्ना का धर्म निभाया है
रमा शंकर मिश्र "मृदुल"
हिंदी सभा सीतापुर
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