दानी बंगर में मिली यह अद्भुत वनस्पति।
शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में गुजरती वह खूबसूरत सड़क जो उत्तराखण्ड वन प्रभाग की नांधौर रेंज से होकर गुज़रती है जिसे हम चोरगलिया कहते हैं, पहाड़ों में जगह जगह वनदेवी ग्रामदेवी की संस्कृति अभी भी चटक है बजाए किसी और भूभाग है, ऐसे ही एक नदी के पास सुरम्य वन में एक वनदेवी के स्थान से एक महिला को घूमते देखा, पहली नज़र में वह विछिप्त सी लगी, दरअसल विक्षिप्तता का क्या वह तो सभी पर विराजमान है, कुछ की नज़र आती है कुछ की नही, परन्तु व्यक्ति तो व्यक्ति है और उसके जीवन के संस्कार प्रकृति से सीखा हुआ ज्ञान तो उसके साथ ही चलता है वह किसी भी अवस्था मे क्यों न हो...मेरा यही नज़रिया है और इसी के चलते उन माता जी को हमने देखना ए शुरू किया कि आखिर वह अब क्या करती है, एक गन्दी सी हाथ मे थर्माकोल की प्लेट और एक गिलास उनके पास था, तभी वह सड़क के किनारे जंगल मे दाखिल हुई, मैंने कार उनके करीब ले जाकर रोकी, और पूंछा अम्मा क्या कर रही हैं, वह बोली सब समय का फेर है, सब समय का फेर है....फिर देखा उनकी तश्तरी में कुछ कोमल पत्तियों वाली वनस्पति थी, मैंने नाम पूछा कि क्या है, क्या खाई जाती है? ये.... उन्होंने सिर हिलाया, और कुछ नाम भी बताया जो अब मुझे याद नही, माँ के नाम पर कुछ न्योछावर करते हुए मैं आगे बढ़ गया, ओर नजराने में उन अम्मा से हमने उस वनस्पति का एक पौधा मांग लिया था.....
जानने की उत्कंठा ने उस बेशकीमती घास से मेरा परिचय करवा ही दिया...यह पेपेरोमिया पेलुसीडा है, पाइपिरेसी कुल की यह वनस्पति मूलतः एशिया और अमरीकी महाद्वीप में पाई जाती है, अफ्रीका में भी यह मौजूद है, यह रेडिएटर प्लांट के अंतर्गत है, मांसल पत्तियां व डंठल, जड़ बहुत ही नाज़ुक तथा भुरभुरी नम मिट्टी में छायादार जंगलों के नीचे उगती है, इसे लिटिल हार्ट भी कहते हैं चूंकि इसकी पत्तियों की बनावट दिल के आकार की होती है, रैट ईयर भी इसका एक नाम है क्योंकि छोटे दिल के आकार की पत्तियों की बनावट चूहें के कान की बनावट का आभास कराती है, बंगाली में लूची पत्ता, और अमरीका में इसे मैन टू मैन, पेपर एल्डर व शाइनिंग बुश भी कहते है। हिंदी में मैं इसे दानी बंगर साग या घास कहूंगा क्योंकि यह वनस्पति मुझे पहली बार वहां मिली।
यह वनस्पति औषधीय गुणों से भरपूर है, यह पूरा पौधा खाने योग्य है, इसे साग के रूप में सब्जी बनाकर या कच्चा भी खाया जाता है, इसकी पत्तियों जड़ व तने से सरसों सी महक आती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह दर्दनिवारक, एंटीबायोटिक, एंटी अमीबिक आदि गुणों से युक्त है, इंडियन ट्राइब इस वनस्पति को हैमरेज रक्त स्राव व घाव ठीक करने के लिए इसकी पत्ती तने के रस का इस्तेमाल करती रही है, पेट की बीमारियों, डायबिटीज, गठिया जैसे रोगों में भी इसका प्रयोग होता रहा है, घरों के भीतर इस वनस्पति को सुंदरता के लिए छायादार स्थानों पर भी सजावट के लिए उगाया जाता है। इसके पुष्पगुच्छ लंबे स्पाइकनुमा जिनमे नुक़्ता नुमा नन्हे दाने होते है।
एक और खूबसूरत बात ये रेडिएटर प्लांट बोले जाते है, यानी जो प्रकाश पड़ने पर चमकते है, ऐसी प्रजातियों के बड़े झाड़ीदार पौधों का रोपड़ यदि सड़कों के किनारे किया जाए तो यातायात में वाहन चालकों को बहुत ही सुविधा रहेगी।
अंततः यह उत्तराखण्ड के शाखू सागौन के जंगलों की दानी बंगर घास स्वास्थ्य के लिए बहुत ही मुफ़ीद है आप चाहे तो इसे पकाकर खाए या कच्चा यह शरीर के रोगों को दूर भगाने में एक सक्षम वनस्पति है।
उन माता जी को धन्यवाद जिनकी नज़र से यह दिव्य वनस्पति से मैं रूबरू हो सका।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-खीरी
भारत वर्ष
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