फोटो साभार- विकीपीडिया |
लेखक: अरुण तिवारी
पक्षी बन उड़ती फिरूं मैं मस्त गगन में,
आज मैं आज़ाद हूं दुनिया के चमन में.....
आसमान में उड़ते परिंदों को देखकर हसरत जयपुरी ने फिल्म चोरी-चोरी के लिए यह गीत लिखा। लता मंगेश्कर की आवाज़, शंकर जयकिशन के संगीत तथा अनंत ठाकुर के निर्देशन ने इस गीत को लोगों के दिल में बैठा दिया। परिंदों को देखकर ऐसी अनेक कवि कल्पनायें हैं; ''पिय सों कह्ये संदेसड़ा, हे भौंरा, हे काग्..'' - मलिक मोहम्म्द जायसी द्वारा पद्मावत की नायिका नागमती से कहे इन शब्दों से लेकर हसरत जयपुरी के एक और गीत ''पंख होते तो उड़ आती रे, रसिया ओ जालिमा..'' (फिल्म सेहरा) तक। परिंदों को देखकर आसमान में उड़ने के ख्याल ने ही कभी अमेरिका के राइट बंधुओं से पहले हवाई जहाज का निर्माण कराया।
अनेक दिवस, पक्षियों के नाम
यह भूलने की बात नहीं कि अमेरिका के पेनसेल्वानिया स्कूल के सुपरिटेंडेंट अल्मनज़ो बेबकाॅक ने चार मई को स्कूल की छुट्टी सिर्फ इसलिए घोषित की, ताकि उनके स्कूल के बच्चे, परिदों के साथ उत्सव मनाते हुए उन्हे संरक्षित करने हेतु प्रेरित हो सकें। अमेरिका में पक्षी उत्सव के नाम पर दिया गया यह अपने तरह की पहला अवकाश था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 13 अप्रैल को 'अंतर्राष्ट्रीय पक्षी दिवस' घोषित किया और मई के दूसरे सप्ताह के अंतिम दिन को 'विश्व प्रवासी पक्षी दिवस'। अमेरिका ने 05 जनवरी को अपना 'राष्ट्रीय पक्षी दिवस' घोषित किया और भारत ने 12 नवंबर को। दुनिया के अलग-अलग देशों ने अलग-अलग तारीखों को अपने-अपने देश का 'अंतराष्ट्रीय प्रवासी पक्षी दिवस' बनाया है।
एक शख्स, जो था पक्षी मानव
कहना न होगा कि पक्षियों से प्रेरित ऐसे ख्याल मन में लाने वाले अरबों होंगे, परिंदों को दाना-पानी देने वालों की संख्या भी करोड़ों में तो होगी ही। परिदों के डाॅक्टर लाखों में होंगे, तो परिंदों पर अध्ययन करने वाले हज़ारों में। किंतु परिंदों को दीवानगी की हद तक चाहने वाले लोग, दुनिया में कुछ चुनिंदा ही होंगे। ऐसे लोगों में से एक थे, भारत के विरले पक्षी विशेषज्ञ जनाब श्री सालिम अली।
1896 में जन्मे श्री सालिम अली ने अपना जीवन, भारतीय मानस में पक्षियों की महत्ता स्थापित करने में लगाया। उनकी लिखी अनेक पुस्तकों में 'बर्ड्स आॅफ इंडिया' ने सबसे अधिक लोकप्रियता पाई। बुद्धिजीवियों ने सालिम अली को ’पक्षी मानव’ के संबोधन से नवाजा। भारत सरकार ने श्री सालिम अली को पद्मभूषण (1958) और पद्मविभूषण (1976) से नवाजा। श्री सालिम अली की स्मृति में डाक टिकट जारी किया। श्री सालिम अली को सबसे अनोखा सम्मान तो तब हासिल हुआ, जब भारत सरकार ने सालिम अली की जन्म तिथि ( 12 नवम्बर ) को ही भारत का 'राष्ट्रीय पक्षी दिवस' घोषित कर दिया।
संगत ने सुबोध को बनाया पक्षी प्रेमी
इन्ही सालिम अली की संगत के एक मौके ने अलीगढ़ के रहने वाले सुबोधनंदन शर्मा की ज़िंदगी का रास्ता बदल दिया। श्री सुबोधनंदन शर्मा, आज आज़ाद परिंदों को देख खुश होते हैं; कैद परिंदों को देख उन्हे आज़ाद कराने की जुगत में लग जाते हैं। बीमार परिंदा, जब तक अच्छा न हो जाये; सुबोध जी को चैन नहीं आता। परिंदों को पीने के लिए साफ पानी मिले। परिदों को खाने के लिए बिना उर्वरक और कीटनाशक वाले अनाज मिले। परिंदों को रहने के लिए सुरक्षित दरख्त... सुरक्षित घोसला मिले। सुबोध जी और उनकी पेंशन, हमेशा इसी की चिंता में रहते हैं।
सुबोध जी, 'हमारी धरती' पत्रिका के संपादक हैं। 'हमारी धरती', पहले एक साहित्यिक पत्रिका थी। परिदों और उनकी ज़रूरत के विषयों ने 'हमारी धरती' को पूरी तरह पानी, पर्यावरण और परिंदों की पत्रिका में तब्दील कर दिए। 'हमारी धरती' के कई अंक, परिंदों पर विशेष जानकारियों से भरे पड़े हैं।
शेखा झील बनी, पक्षियों का भयरहित आवास
उत्तर प्रदेश स्थित ज़िला अलीगढ़ की 200 साल से अधिक पुरानी शेखा झील, विदेश से आने वाले 166 प्रवासी मेहमान परिंदों की पसंद का ख़ास आवास है। 25 हेक्टेयर के रकबे वाली शेखा झील, अलीगढ़ के पूर्व में जीटी रोड से पांच किलोमीटर दूर गंगनहर के नजदीक स्थित है। 2013 में जब शेखा झील पर जब संकट आया, तो सबसे पुरजोर आवाज़ श्री सुबोधनंदन शर्मा ने ही उठाई। शेखा झील को पक्षी अभयारण्य घोषित करने की मांग उठाई। शेखा झील और परिंदों के गहरे रिश्ते पर एक संग्रहणीय किताब लिखी। परिणामस्वरूप शेखा झील को बचाने की शासकीय पहल शुरु हुई। शासन ने शेखा झील को वापस पानीदार बनाने के लिए दो करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया। शेखा झील को पक्षी अभ्यारण्य के रूप में विकसित करने हेतु एक करोड़ रुपये अतिरिक्त घोषित किए। श्री सुबोधनंदन ने झील को उसका स्वरूप दिलाने के काम की खुद निगरानी की। समाज को झील के परिंदों से जोड़ा। विशेषकर अलीगढ़ के स्कूली बच्चों में परिंदों के प्रति स्नेह का संस्कार विकसित करने की मुहिम चलाई। इसके लिए हरीतिमा पर्यावरण सुरक्षा समिति बनाई।
शेखा पर लगेगा बच्चों संग पक्षी मेला
इसी हरीतिमा पर्यावरण सुरक्षा समिति ने आगामी 09 जनवरी, 2018 को शेखा झील पर परिंदों का मेला लगाना तय किया है। सुनिश्चित किया है कि 09 जनवरी को लगने वाले इस पक्षी मेले में अलीगढ़ के कम से कम 400 बच्चे शामिल हों। उन्हे कोई तकलीफ न हो, इसके लिए उनके नाश्ते की व्यवस्था की है।
गौरतलब है कि यूनाइटेड किंग्डम की 'राॅयल सोसाइटी फाॅर द प्रोटेक्शन आॅफ बर्ड्स' ने परिंदों की गिनती करने के लिए एक दिन तय किया है। 09 जनवरी के शेखा झील के पक्षी मेले में भी परिंदों की गिनती का काम होगा। यह काम, अलीगढ़ के बच्चे करेंगे। गिनती के बहाने परिंदों से जान-पहचान भी कराई जायेगी। परिंदों की पहचान करने में सहयोग के लिए, समिति ने चार ऐसे लोगों का चुना है, जो परिंदों पर पीएच.डी कर रहे हैं। अच्छा मेला होगा। पक्षियों के साथ-साथ बच्चे भी चहकेंगे। बनाने वाले, परिंदों के चित्र बनायेंगे। कोई कैमरे से फोटो खींचेगा। कोई परिंदों के करीब जाना चाहेगा। किंतु इस सभी से परिंदे असुरक्षित महसूस न करें; इसका ख्याल खुद श्री सुबोधनंदन और उनकी समिति रखेगी।
यह जानकारी लिखते वक्त 05 जनवरी की सुबह-सुबह खबर मिली कि बहराइच की महसी झील पहुंचे चार प्रवासी पक्षियों ने दम तोड़ दिया। काश ! महसी झील को भी मिले कोई पक्षी प्रेमी सुबोधनंदन सा; ताकि सुरक्षित रहे झील और सुरक्षित रहें मेहमान परिंदे।
No comments:
Post a Comment
आप के विचार!