ग्रीनपीस ने इससे निपटने के लिए तत्काल राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर पर कार्यनीति बनाने की मांग की
नई दिल्ली। 16 नवंबर 2016। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज प्रोजेक्ट के एक विश्लेषण में चिंताजनक नतीजे सामने आये हैं। इसके अनुसार, 2015 में बाहरी वायु प्रदूषण से सबसे अधिक मौत भारत में हुई है जो चीन से भी अधिक है। इस अध्ययन से पता चलता है कि 1990 से अबतक लगातार भारत में होने वाले असामायिक मौत की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। हाल के आंकड़े बताते हैं कि 2015 में भारत में 1640 लोगों की प्रतिदिन असामयिक मौत हुई जबकि इसकी तुलना में चीन में 1620 लोगों की मौत हुई थी।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजिज (जी बी डी) एक क्षेत्रीय और वैश्विक शोध कार्यक्रम है जो गंभीर बीमारियों, चोटों और जोखिम कारकों से होने वाले मौत और विकलांगता का आकलन करता है। जीबीडी की यह रिपोर्ट ग्रीनपीस के इस साल की शुरुआत में जारी की गयी उस रिपोर्ट को पुख्ता करती है जिसमें बताया गया था कि इस शताब्दी में पहली बार भारतीय नागरिकों को चीन के नागरिकों की तुलना में औसत रूप से अधिक कण (पार्टिकुलर मैटर) या वायु प्रदूषण का दंश झेलना पड़ा है। ग्रीनपीस के कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, “चीन एक उदाहरण है जहां सरकार द्वारा मजबूत नियम लागू करके लोगों के हित में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सका है। जबकि भारत में साल दर साल लगातार वायु प्रदूषण बढ़ता ही गया है। हमें इस अध्ययन को गंभीरता से लेने की जरुरत है। यह इस बात को भी दर्शाता है कि हमारी हवा कितनी प्रदूषित हो गयी है। सरकार को इससे निपटने के लिये तत्काल कदम उठाने ही होंगे।”
इस अध्ययन का विश्लेषण करते हुए सुनील ने आगे कहा, “चीन में जिवाश्म ईंधन पर जरुरत से अधिक बढ़ते निर्भरता की वजह से हवा की स्थिति बहुत खराब हो गयी थी। 2005 से 2011 के बीच, पार्टिकुलेट प्रदूषण स्तर 20 प्रतिशत तक बढ़ गया था। 2011 में चीन में सबसे ज्यादा बाहरी वायु प्रदूषण रिकॉर्ड किया गया, लेकिन उसके बाद 2015 तक आते-आते चीन के वायु प्रदूषण में सुधार होता गया। जबकि भारत की हवा लगातार खराब होती गयी और वर्ष 2015 का साल सबसे अधिक वायु प्रदूषित साल रिकॉर्ड किया गया। अगर बढ़ते प्रदूषण स्तर को बढ़ते असामायिक मृत्यु की संख्या से मिलाकर देखा जाये तो स्पष्ट है कि चीन से उलट भारत ने कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है जिससे कि वायु प्रदूषण के स्तर में सुधार लाया जा सके।”
ऐसे समय में, भारत का कोयला पावर प्लांट के उत्सर्जन मानकों को लागू करने के लिये तय समयसीमा में छूट देने की योजना चौंकाने वाली है। बहुत सारे ऐसे वैज्ञानिक अध्ययन मौजूद हैं जो बताते हैं कि वायु प्रदूषण में थर्मल पावर प्लांट का भी योगदान है। लेकिन सरकार बड़े आराम से लोगों के स्वास्थ्य की चिंताओं को नजरअंदाज कर रही है और प्रदूषण फैलानेवाले मानकों में छूट दिये जा रहे हैं। दुनिया का सबसे प्रदूषित देश होने के बावजूद चीन ने 2011 में थर्मल पावर प्लांट के उत्सर्जन मानकों को कठोर बनाया और 2013 में एक एकीकृत योजना बनाकर लागू किया जिससे प्रदूषण स्तर में कमी आयी और परिणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी भी आई है।
अंत में सुनिल ने कहा, “हाल ही में यूनिसेफ ने वायु प्रदूषण से होने वाले असमायिक मृत्यु और बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव की तरफ ध्यान दिलाया था। अब ग्लोबल बर्डन के आंकड़े बता रहे हैं कि स्थिति चिंताजनक है और भारत को समय-सीमा तय करके वायु प्रदूषण स्तर को कम करने का लक्ष्य रखना होगा, कठोर कदम नीतियों को लागू करते हुए जिवाश्म ईंधन की खपत को कम करने की नीति बनानी होगी और एक एकीकृत राष्ट्रीय-क्षेत्रीय कार्ययोजना बनानी होगी।”
अविनाश कुमार
ग्रीनपीस भारत
avinash.kumar@greenpeace.org
Ah!! this is very sad after reading this post, Modi Government must focus this problem. Humanity is going to be danger mode. even wildlife will affect in always. so we all must give a good and hard focus on this piece..
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