ऩई दिल्ली। 6 सितंबर 2016। आज दिल्ली के होटल ले मेरिडियन में हो रहे ‘इंडियन कोल - सस्टेनिंग द मोमेंटम’ नामक एक कॉन्फ्रेंस में, जहाँ कोयला और ऊर्जा मंत्रालय ने हिस्सा लिया, वहीं ग्रीनपीस इंडिया ने भी अपना प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित किया। ग्रीनपीस ने प्रदूषण फैलाने, व वैश्विक जलवायु परिवर्तन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले, इस कोयला उद्योग को जारी रखने पर सवाल उठाए, और ऊर्जा मंत्रालय को याद दिलाया कि अक्षय ऊर्जा ही भविष्य के लिये सबसे टिकाऊ और स्वच्छ माध्यम है, जिसमें देश की ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने की क्षमता है।
ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर सुनिल दहिया ने कहा, “इस समय हमें एक असफल इंडस्ट्री को बचाने की कोशिश करने के बजाय, भविष्य के लिये नयी संभावनाओं को तलाशने में ध्यान देना चाहिए। यदि ऊर्जा सेक्टर विकास के साथ अपनी गति बनाए रखना चाहे, तो इसे खुद को बदलना होगा। प्रधानमंत्री ने देश के लिये महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को रखा है जिन्हें पाने के लिये ऊर्जा क्षेत्र में निवेश व ध्यान दोनों केंद्रित करना होगा। भविष्य के हिसाब से यही सुरक्षित उपाय है, न कि हर कीमत पर कोयले को जारी रखने की सोच, जो देश के वर्तमान और भविष्य दोनों के लिये एक खतरा बन चुका है।”
दिसंबर 2015 में, ग्रीनपीस इंडिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पेरिस जलवायु परिवर्तन कॉन्फ्रेंस में की गयी घोषणा का स्वागत किया था, जिसमें उन्होंने 2022 तक 175 गिगावाट ऊर्जा अक्षय स्रोतों से हासिल करने का लक्ष्य रखा था। इस आईएनडीसी घोषणा से पहले भी, प्रेस सूचना ब्यूरो से जारी आधिकारिक विज्ञप्तियों में विभिन्न सरकारी संस्थाओं द्वारा अक्षय ऊर्जा के प्रति उत्साह दिखाया जाता रहा है। लेकिन एक विपरीत विंडबना में इसी सामानंतर सरकार कोयला में भी निवेश को प्रोत्साहित कर रही है और थर्मल पावर प्लांट को लगाने की योजना बना रही है।
दहिया आगे कहते हैं, “स्वयं ऊर्जा मंत्री पीयुष गोयल के अनुसार, हमारे पास कोयला और बिजली का पहले से ही सरप्लस है। ऐसे मे सरकार को कोयला आधारित बिजली परियजोनाओं की बजाय अपने प्रयास भारत के अक्षय ऊर्जा की संभावनाओं को बढ़ाने में लगाना चाहिए। यही एक मात्र रास्ता है जिससे हम लोगों के स्वास्थ्य को, खत्म होते जंगल को, वन्यजीव और जीविका के साधनों को बचाते हुए, देश की ऊर्जा जरुरतों को पूरा कर सकते है, और वैश्विक जलवायु परिवर्तन को रोकने की कोशिश में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।”
ग्रीनपीस इंडिया ने कोयला आधारित अर्थव्यवस्था से हटने की जरुरतों पर ध्यान आकर्षित करवाते हुए कोल सेक्टर से जुड़ी गंभीर चिंताओं की तरफ भी इशारा किया। उदाहरण के लिये सरकार को घने वन क्षेत्र वाले इलाके को कोयला खनन से बचाने के लिये एक पारदर्शी अक्षत नीति लाने की जरुरत है। आरटीआई से मिली सूचना के विश्लेषण के आधार पर ग्रीनपीस को पता चला है कि 825 में से 417 कोयला ब्लॉक नदी क्षेत्र में आते हैं। इन जगहों पर खनन से निश्चित ही देश के साफ जल स्रोत पर असर पड़ेगा।
ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट ‘ट्रेशिंग टाइगरलैंड’ में यह तथ्य भी सामने आया था कि कोयला खनन की वजह से हजारों हेक्टेयर जंगल, बाघ, हाथियों व अन्य जीवों के निवास पर खतरा मंडरा रहा है। वहीं एक और रिपोर्ट ‘आउट ऑफ साईट’ में दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में वायु प्रदुषण की एक बड़ी वजह थर्मल पावर प्लांट का होना पता चला था। कोयला पावर प्लांट से निकलने वाले वायु प्रदुषण से 2012 में भारत में 80000 से 1.15 लाख लोगों के समयपूर्व मृत्यु होने का आकलन किया गया है।
इसी साल जून में निवेशकों के लिये ग्रीनपीस द्वारा जारी एक ‘फाइनेंस ब्रिफिंग’ में यह बताया गया था कि पानी की कमी की वजह से कोल कंपनियों को 2,400 करोड़ का घाटा हुआ और कोयला में निवेश एक खराब सौदा साबित हो रहा है।
दहिया अंत में कहते हैं, “भारत में कोयला सेक्टर को बढ़ावा देना निरर्थक है और इसका असर समाज के कई हिस्सों पर होगा मसलन वन समुदाय और किसान से लेकर शहर में रहने वाले लोगों और उर्जा क्षेत्र में सक्रिय निवेशकों और अन्य साझेदारो तक।”
ग्रीनपीस इंडिया ने उर्जा मंत्रालय से यह मांग की है कि वह पेरिस समझौते में शामिल अक्षय ऊर्जा के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में ठोस पहल करे। संस्था ने पर्यावरण मंत्रालय से भी यह उम्मीद की है कि वह कोयला खनन और थर्मल पावर प्लांट्स को दिए जा रहे क्लियरेंस पर रोक लगाए, अक्षय श्रेणी के वन क्षेत्र की पहचान करे और वर्तमान में चल रहे पावर प्लांट्स पर वायु प्रदूषण को रोकने के लिये जारी मानकों का कठोरता से पालन करवाये।
अविनाश कुमार
avinash.kumar@greenpeace.org
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