मानसून एक्सप्रेस : 2
मुझे तुमसे फिर शिकायत हो गई है...
तेरा यूं आना, कतई अच्छा नहीं था, आंधी की तरह आए, तूफान की तरह चले गए, ऐसा क्यों करते हो, चाहत तुम्हे गले लगाने की थी, पर तुमकों छू भी न सके, धूल लेकर आए, आंखें भी नहीं खुल पाईं, कि तुम्हे कायदे से देख पाता, यही कोई 22 किलोमीटर की रफ्तार थी तुम्हारी, दरवाजे के पीछे खड़े थे हम, शीशे के पार देखने की कोशिश कर रहे थे, लोग आंखें मिचमिचया रहे थे, बीच में लगा कि तुम धूल को शांत कर दोगे, वह दो-चार-पांच बूंदों से क्या भला होता है। सुना है तुमने खुदागंज में बड़ा गदर काटा। पहले आंधी भेजी, उस कारण दीवार गिरी, दो गरीब मर गए, उनके घर की महिलाओं की रोने की आवाज आंधी के साथ बह कर शाहजहांपुर तक मेरे कानों में पड़ गई थी, मुझे पता है कि तुम्हारी सारी हरकतें, हमेशा यही करते हो, जब जरूरत होती है तो आते नहीं, अगर आ गए तो तबाही मचा देते हो, तुमने द्वापर में भी यही किया था, जब नंदगांव के लोग तुम्हारी राह देख रहे थे, लेकिन तब कान्हा ने बढ़िया सबक सिखाया था, तुम्हारी सारी ऐंठ निकल गई थी, हाथ जोड़ कर माफी मांगनी पड़ी थी, अब तुम फिर से ढीठ हो गए हो, तुम्हे मालूम है कि अब कलियुग में कोई कान्हा नहीं आने वाला, कंस ज्यादा दिखते हैं, इसलिए हर जगह लोग पेड़ काटे जा रहे हैं, रोकना वन विभाग को चाहिए, ठेकेदार बने फिरते हैं पुलिस वाले, पेड़ लगाने वाले कम हैं, इसलिए तुम आते ही चले जाते हो, वैसे मैं इंतजाम कर रहा हूं, पौधे रोपने की तैयारी कर रहा हूं, बहुत लोगों को लगाऊंगा, फिर आज से दस साल बाद देखूंगा, तुम कैसे आते ही जाओगे, मेरे लगाए पौधे पेड़ बन चुके होंगे, तब तो तुम्हें रुकना ही होगा....वैसे आज जिस तरह से तुम आए थे उस तरीके से मुझे शिकायत है।
धन्यवाद
विवेक सेंगर
हिन्दुस्तान दैनिक में शाहजहांपुर जनपद के प्रमुख, खोजी पत्रकार, इनसे viveksainger1@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
No comments:
Post a Comment
आप के विचार!