नई दिल्ली। 3 जून 2016। भले ही भारत दशकों बाद सबसे भयानक जल-संकट से जूझ रहा है, 11 राज्यों [1] के 266 जिले इसकी चपेट में हैं, लेकिन इसके बावजूद सरकार देश के जल स्रोतों का प्रबंधन करने में अदूरदर्शी बनी हुई है। ग्रीनपीस इंडिया ने आज सात राज्यों: महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर-प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलगांना, व छत्तीसगढ़ में पावर प्लांटों के द्वारा किये जा रहे पानी के इस्तेमाल पर आंकड़े जारी किये हैं। सिर्फ इन सात राज्यों में थर्मल पावर प्लांट इतना पानी इस्तेमाल कर लेते हैं, जितना एक साल में 50 मिलियन लोगों की मूलभूत जरुरतों के लिये काफी है।[2]
मार्च में ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी एक विश्लेषण [3] में यह तथ्य सामने आया था कि प्रत्येक साल कोयला पावर प्लांट भारत में 4.6 अरब घन मीटर जल का इस्तेमाल प्रति वर्ष करते हैं। जल की यह मात्रा 25.1 करोड़ लोगों के मूलभूत पानी की जरुरत को पूरा करने में सक्षम है। अगर सभी प्रस्तावित पावर प्लांट को बनाया जाता है, तो diverted? पानी की यह मात्रा कई गुना अधिक हो सकती है।[4]
कोयला पावर प्लांट पानी का सबसे ज्यादा औद्योगिक उपयोगकर्ताओं में है।(5) देश में इस साल सूखे के बावजूद, कोयला पावर प्लांटों के द्वारा इस्तेमाल हो रहे पानी पर देश की सरकार और नीति निर्माताओं की नज़र नहीं गयी है।
ग्रीनपीस कैंपेनर जयकृष्णा कहते हैं, “हमारे देश के ज्यादातर जिले सूखे से प्रभावित हैं और लाखों लोगों का जीवन इसकी चपेट में है। इसके बावजूद भी हम कोयला पावर सेक्टर के द्वारा खपत किये जा रहे पानी की बड़ी मात्रा को नजरअंदाज कर रहे हैं। यहां तक कि सरकार सूखा प्रभावित इलाकों में भी कोयला पावर प्लांट को बढ़ाने की योजना बना रही है। अगर लोगों की जीविका और आधारभूत जरुरतों के लिये पानी और कोयला पावर प्लांट के लिये पानी के बीच में किसी को चुनना हो तो निश्चित रूप से आधारभूत जरुरतों के लिये पानी को चुनना ही होगा। सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पावर प्लांट को पानी देने की बजाय जरुरतमंद लोगों को पानी मुहैया कराया जाना चाहिए।”
ग्रीनपीस के विश्वलेषण के अनुसार अगर सभी सात राज्यों में प्रस्तावित पावर प्लांट में खपत होने वाले जल को जोड़े तो प्लांट में पानी की कुल खपत में तीगुना वृद्धि हो जायेगी।[6] जयकृष्णा कहते हैं, “यह वृद्धि अगली बार कम बारिश होने पर घी में तेल डालने का काम कर सकता है और जल-संकट बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।”
अगर यह जल संकट बढ़ता है तो पानी की आपूर्ति को संरक्षित करने के लिये पावर प्लांट को अक्सर बंद करने का भी खतरा बना रहेगा। इससे नये पावर प्लांट निवेशकों के लिये घाटे का सौदा साबित होंगे। इस साल एनटीपीसी, अडानी पावर, जीएमआई, महागैंसों, कर्नाटक पावर कॉर्प जैसी कंपनियों को जल संकट की वजह से अपने पावर प्लांट बंद करने पड़े हैं, जिससे उनके व्यापार को भी नुकसान पहुंचा है।
2016 में जारी जल-संकट ने भारत को मौका दिया है जब वो कोयला आधारित ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करके अक्षय ऊर्जा के दूसरे स्वच्छ स्रोतों की तरफ ध्यान दे। कोयला की तुलना में सोलर और वायु ऊर्जा में पानी की खपत न के बराबर है। सरकार अक्षय ऊर्जा से 175 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य मह्तवाकांक्षी है, लेकिन इसके साथ ही दूसरे नये कोयला पावर प्लांट और वह भी सूखा प्रभावित क्षेत्र में बनाने का प्रस्ताव खतरनाक साबित होगा। जयकृष्णा अंत में कहते हैं, “हमें ऊर्जा नीति में सकारात्मक बदलाव करने की जरुरत है, जिससे हमारे नल में पानी और तार में बिजली आती रहे।”
Notes to Editors:
[1] 13 मई 2016 को राज्यसभा में पूछे सवाल का जवाब http://164.100.47.234/ question/annex/239/Au2279.docx (कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेशस छत्तीसगढ़, ओडिशा,उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और गुजरात)
[2] सभी राज्यों के लिये, सिर्फ जल प्रभावित क्षेत्र में स्थित लोगों की जल जरुरत की गणना की गई।
[3] ग्रीनपीस की रिपोर्ट https://secured-static. greenpeace.org/india/Global/ india/cleanairnation/Reports/ Waterdemandsofcoalpowerplantsi ndroughtaffectedregionsofIndia FINAL.pdf
[4] यह आकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमानित प्रतिदिन 50 लीटर पानी प्रति व्यक्ति के आधार पर है जो लोगों के मूलभूत स्वस्थ्य के लिये जरुरी है। http://www.who.int/water_ sanitation_health/diseases/ WSH03.02.pdf (page 22)
[5] कोयला पावर प्लांट को चलाने के लिेये, उसे ठंडा करने के लिये और कोयला की राख में बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है।
[6] यह आकलन कोयला विद्युत संयंत्रों के लिए पानी की खपत के मानक आंकड़ों के आधार पर कर रहे है। साथ ही, बिजली संयंत्रों को ठंडा करने में शामिल पानी भी इसी अनुमान पर आधारित है। अधिक जानकारी के लिये विश्लेषण संलग्न किया गया है।
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