जल क्षेत्रों में प्रस्तावित 170 गिगावाट कोयला प्लांट्स से बढ़ सकती है किसानों की जल समस्या
नई दिल्ली। 22 मार्च 2016। यदि सैकड़ों कोयला पावर प्लांट्स की योजना को हरी झंडी मिल जाती है तो भारत में पहले से ही घटते जल संसाधनों पर गंभीर संकट उत्पन्न हो जाएगा। इस योजना की वजह से सूखे की स्थिति पैदा हो सकती है और विदर्भ, मराठवाड़ा तथा उत्तरी कर्नाटक में पहले से ही पानी को लेकर कृषि और उद्योग के बीच चल रहे संघर्ष बढ़ने की आंशका है। देश में अभी 10 राज्यों ने सूखा घोषित कर रखा है और महाराष्ट्र व कर्नाटक में पानी की कमी की वजह से कुछ पावर प्लांट्स को बंद भी कर दिया गया है।
ग्रीनपीस इंटरनेशनल द्वारा जारी रिपोर्ट ‘द ग्रेट वाटर ग्रैवः हाउ द कोल इंडस्ट्री इड डिपेनिंग द ग्लोबल वाटर क्राइसिस’ से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर प्रस्तावित नये कोयला प्लांट्स का एक चौथाई हिस्सा उन क्षेत्रों में स्थापित करने की योजना है जहां पहले से ही पानी का संकट है।(रेड-लिस्ट एरिया) चीन इस लिस्ट में 237 गिगावाट के साथ सबसे उपर है जबकि दूसरे नंबर पर भारत है जहां 52 गिगावाट थर्मल पावर प्लांट्स रेड-लिस्ट क्षेत्र में है और 122 गिगावाट गंभीर जल क्षेत्र में प्रस्तावित है। कुल मिलाकर लगभग 40 प्रतिशत कोयला प्लांट्स गंभीर जल क्षेत्र में लगाए जाने की योजना है। यदि सभी प्रस्तावित कोयला प्लांट्स का निर्माण हो जाता है तो भारत के कोयला उद्योग में पानी की खपत वर्तमान से दोगुनी, लगभग 15.33 दस लाख एम 3 प्रतिवर्ष हो जायेगी, जो चीन सहित दूसरे सभी देशों से सबसे अधिक होगा।
यह पहली रिपोर्ट है जिसमें पहली बार वैश्विक स्तर पर अध्ययन करके बताया गया है कि जिसमें प्रत्येक संयंत्रों का अध्य्यन करके कोयला उद्योग के वर्तमान और भविष्य में पानी की मांग को शामिल किया गया है। इसके अलावा उसमें उन देशों तथा क्षेत्रों को भी चिन्हित किया गया है जो जल संकट से सबसे अधिक प्रभावित होगा। भारत में कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बड़े हिस्से में पानी की माँग उपलब्ध पानी से 100 प्रतिशत अधिक हो गयी है। इसका मतलब यह हुआ कि भूजल लगातार खत्म हो रहा है या अंतर-बेसिन स्थानान्तरण का सहारा लिया जा रहा है।
इसके अलावा, लगभग सभी प्रमुख राज्यों का बड़ा भूभाग जल संकट से जूझ रहा है। इनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडू, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य भी शामिल हैं। यह क्षेत्र गंभीर रुप से सूखे की चपेट में हैं फिर भी इन इलाकों में थर्मल पावर प्लांट्स प्रस्तावित किये गए हैं जिसमें भारी मात्रा में पानी की जरुरत होगी, जबकि पहले से चालू पावर प्लांट्स जल संकट का सामना कर रहे हैं। महाराष्ट्र का परली पावर प्लांट को जुलाई 2015 से बंद कर दिया गया है और कर्नाटक में रायचुर पावर प्लांट को भी हाल ही में पानी की वजह से बंद किया गया है। एनटीपीसी सोलापुर बिजली संयंत्र पानी की आपूर्ति के मुद्दों के कारण देरी का सामना कर रहा है।
ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर हरी लैमी ने कहा, “मानवता के लिए अपने खतरे के संदर्भ में, कोयला एक विनाशकारी हैट्रिक को हासिल कर चुका है। जलते कोयले, न केवल जलवायु और हमारे बच्चों के स्वास्थ्य के लिये खतरा है। बल्कि यह हमारे उस पानी पर भी खतरा है जो हमारे जीवन को बचाये रखने के लिये जरुरी है”।
विश्व स्तर पर, 8359 मौजूदा कोयला विद्युत संयंत्र पहले से ही पर्याप्त पानी की खपत कर रहे हैं जिससे 1.2 अरब लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी की कमी हो रही है।
ग्रीनपीस इंटरनेशनल रिपोर्ट की समीक्षा करने वाली संस्था टिकाऊ ऊर्जा परामर्श की संस्था इकोफिस के विशेषज्ञ डॉ जोरिस कूरनीफ ने कहा, “इस रिपोर्ट में उन क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है जहां कोयले के उपयोग की वजह से पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही इसमें यह भी बताया गया है कि कैसे ऊर्जा और पानी का मुद्दा जुड़ा हुआ है। खासकर, कोयले की आपूर्ति और उपयोग के लिहाज से”।
कोयला से बिजली पैदा करने में पानी की सबसे अहम भूमिका है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार अगले 20 सालों में कोयला उर्जा के लिये इस्तेमाल की जाने वाली जल की मात्रा का 50 प्रतिशत अकेले खपत करेगा। इस हिसाब से, हजारों नये कोयला प्लांट्स की कल्पना करना भी अविश्वसनीय है। ग्रीनपीस तत्काल उच्च जल क्षेत्र में कोयला विस्तार की योजना को स्थगित करने की मांग करती है। साथ ही, सभी प्रस्तावित नये कोयला प्लांट्स को उपलब्ध पानी का विश्लेषण करने तथा कोयला से इतर सोलर और वायु ऊर्जा की तरफ बढ़ने की मांग करती है जिसमें पानी की जरुरत नहीं है।
ग्रीनपीस कैंपेनर जय कृष्णा कहते हैं, “कोयला प्लांट्स से धीरे-धीरे वापसी करके ही भारत भारी मात्रा में पानी को बचा सकता है। अगर प्रस्तावित 52 गीगावॉट कोयला संयंत्र बनाने की योजना को खत्म कर दिया जाता है तो इससे 1.1 मिलियन एम 3 पानी प्रति साल हम बचा सकते हैं”।
पेरिस जलवायु समझौता 2015 के बाद, जब सभी देश जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और सौ प्रतिशत अक्षय ऊर्जा का तरफ बढ़ रहे हैं, भारत को यह तय करना होगा कि वह कोयला आधारित बिजली को बढ़ावा देगा या फिर देशवासियों और किसानों की जल संकट को दूर करने का प्रयास करेगा।
[1]‘The Great Water Grab: How the coal industry is deepening the global water crisis’ is available here: http://www.greenpeace.org/ international/Global/ international/publications/ climate/2016/The-Great-Water- Grab.pdf
Avinash Kumar
avinash.kumar@greenpeace.org
Celluar: 8882153664
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