नदियों को जोडऩे की नहीं बल्कि नदियों से जुडऩे की जरूरत
जीवनदायिनी नदी के नैसर्गिक प्रवाह को रोकना खतरनाक
पन्ना,
बाघों से आबाद हो चुके म.प्र. के पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से उजाडऩे की तैयारियां चल रही हैं. जिस टाइगर रिजर्व के वजूद को कायम रखने के लिए पन्ना वासियों को प्रगति व आर्थिक समृद्धि से वंचित होना पड़ा है, अब उसे कहीं अन्यत्र खुशहाली लाने के लिए नष्ट किया जा रहा है. जंगल व वन्य प्रांणियों को सहेजने व उन्हें संरक्षित करने के लिए पन्ना के नागरिकों ने जो कुर्बानी दी है, उसके एवज में उन्हें पुरस्कार मिलना तो दूर उनकी राय जानने की भी जरूरत नहीं समझी गई. सरकार की इस हिटलरशाही से पन्ना जिले के लोग अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि लगभग 17 हजार करोड़ रू. की लागत वाली केन - बेतवा लिंक परियोजना को मूर्त रूप देने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार दोनों ही संकल्पित नजर आ रहे हैं, जिससे पन्ना जिले के नागरिक चिन्तित हैं. इस परियोजना के तहत निर्मित किये जाने वाला ढोढऩ बांध पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बनेगा, फलस्वरूप कोर क्षेत्र का 58 वर्ग किमी. डूब से नष्ट हो जायेगा. इसके अलावा पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का 105 वर्ग किमी. का किशनगढ, पलकोहा एवं भुसौर क्षेत्र अलग - थलग पड़ जायेगा. इतना ही नहीं बफर क्षेत्र का भी 34 वर्ग किमी. वन क्षेत्र डूब से प्रभावित होगा. इस तरह से पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का 163 वर्ग किमी. जिसमें घना जंगल है नष्ट हो जायेगा, परिणाम स्वरूप पन्ना टाइगर रिजर्व का वजूद ही नहीं बचेगा. जन समर्थन से बाघ संरक्षण के नारे को चरितार्थ करते हुए पन्ना वासियों ने जिस तरह से बाघों की उजड़ चुकी दुनिया को फिर से आबाद करने में कामयाबी पाई है, उससे पूरी दुनिया चमत्कृत है. यहां के अनूठे प्रयोग को देखने व समझने के लिए दुनिया भर के लोग टाइगर रिजर्व में आ रहे हैं, जिससे पर्यटन विकास की संभावनाओं को नई ऊर्जा मिली है. बाघ और वन्य प्रांणी अब यहां विकास में बाधक नहीं बल्कि विकास के वाहक बन रहे हैं. ऐसे में केन - बेतवा लिंक परियोजना के नाम पर पन्ना के बाघों व जंगल की कुर्बानी कहां तक न्यायोचित है.
शुरू से ही विवादों में घिरी रही यह परियोजना पन्ना जिले के लिए तो घातक है ही, यहां के अनगिनत वन्य जीवों, बाघों व जंगल के लिए भी विनाशकारी साबित होगी. देश की इकलौती प्रदूषण मुक्त जीवनदायिनी केन नदी का प्रवाह रूकने से वह भी मृतप्राय हो जायेगी. नदी के बहाव से छेड़छाड करना जीवन से छेड़छाड़ करने जैसा है. देश के ख्यातिलब्ध पर्यावरण विद एच.एस.पवांर (पद्मभूषण से सम्मानित) ने भी केन - बेतवा लिंक परियोजना के होने वाले घातक परिणामों से सरकार को सचेत किया है. जल बाबा के नाम से प्रसिद्ध मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त राजेन्द्र सिंह का भी यह कहना है कि केन - बेतवा लिंक परियोजना से पन्ना जिले को कोई लाभ नहीं होगा, यह परियोजना सिर्फ ठेकेदारों की जेब भरेगी. उन्होंने कहा कि केन - बेतवा को जोडऩे की नहीं बल्कि केन - बेतवा से लोगों को जोडऩे की जरूरत है. समाज पानी के व्यापार और कुदरत के साथ खिलवाड़ की साजिश को समझे और योजना बद्ध तरीके से इसका पुरजोर विरोध करे तभी प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा संभव है.
परियोजना पर पुर्नविचार जरूरी
भाजपा के जिलाध्यक्ष एवं पन्ना जिले के विचारशील युवा नेता सतानंद गौतम ने केन - बेतवा लिंक परियोजना पर पुर्नविचार किये जाने की आवश्यकता जताई है. पन्ना के बाघों की वापसी पुस्तक के विमोचन समारोह में उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि बाघ पुर्नस्थापना योजना की सफलता से पन्ना का गौरव बढ़ा है. पन्ना के विकास में पार्क सहभागी बने, इस दिशा में प्रयास होने चाहिए.
सदानंद गौतम
अरुण सिंह
पन्ना- मध्य प्रदेश
भारत
aruninfo.singh08@gmail.com
No comments:
Post a Comment
आप के विचार!