बुंदेलखंड का पन्ना जिला अतीत की यादों को संजोय ऐसा जिला है जो मध्य प्रदेश में सबसे उपेक्षित है । इसी नगर में एक नदी बहती है किलकिला , जिसका उदगम भी इसी जिले से होता है और विलीन भी इसी जिले में होती है । दुनिया भर में फैले प्रणामी सम्प्रदाय के लोगों के लिए किलकिला नदी गंगा की तरह पूज्य है । कुछ माह पहले इस नदी पर समाज सेवियों का बड़ा तामझाम दिखा नदी बचाने की मुहीम शुरू की । नदी की जलकुम्भी भी साफ़ की फोटो भी खिचाई पर उसके बाद ना तो इसमें मिलने वाले गटर रोके गए और ना ही गंदगी साफ़ हुई ।
पन्ना जिले के बहेरा के समीप छापर टेक पहाड़ी से निकलने वाली यह किलकिला नदी पन्ना टाइगर रिजर्व से होती हुई सलैया भापत पुर के मध्य केन नदी में विलीन हो जाती है । जिले में ४५ किमी बहने वाली यह नदी केन नदी पहले (5 किमी पूर्व ) यह अपना नाम भी बदल लेती है । वहां लोग इसे माहौर नदी नाम से जानते हैं । एक नदी के दो नाम प्रायः कहीं सुनने में नहीं मिलते । सदियों से बाह रही इस नदी को लेकर तरह तरह की किवदंतियाँ भी यहां खूब प्रचलित हैं । कहते हैं की जब घोड़ा इस नदी का पानी पी लेता तो घुड़सवार , और घुड़ सवार के पीने पर घोड़ा मर जाता था । स्वामी लाल दास ने अपने एक लेख में लिखा है की किलकिला नदी को कुढ़िया नदी भी कहते हैं , क्योंकि इस जल के उपयोग करने से कोढ़ हो जाता था । एक और किवदंती यह भी है की यह नदी इतनी विषैली थी की जब कोई पक्षी इसके ऊपर से निकलता था तो वह मर जाता था ।
388 वर्ष पूर्व नदी का जल बना अमृत :
मान्यता है की किकिला के इस विषैले जल को अमृत बनाया निजानन्द सम्प्रदाय के प्राणनाथ जी ने । संवत 1684 में वे इसी किलकिला नदी के तट पर आये थे । यहाँ जब उन्हें स्नान करने की इक्षा हुई तो स्थानीय आदिवासियों ने उन्हें इससे रोका था । उनके अंगूठे के स्पर्श मात्र से यह विषाक्त जल अमृत हो गया । वह स्थान आज भी अमराई घाट के नाम से जाना जाता है । यह स्थान निजानन्द सम्प्रदाय में पवित्र स्थल माना जाता है । प्राण नाथ यही बस गए उनका प्राणनाथ मंदिर निजानन्द सम्प्रदाय के लोगों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है , और किलकिला नदी उनके लिए गंगा की तरह पूज्यनीय है । इस सम्प्रदाय को मानने वाले दुनिया भर में फैले लोग इस नदी का जल ले जाते हैं । आज भी इस सम्प्रदाय से जुड़े लोगों की मृत्यु के बाद उनकी अस्थियो को नदी किनारे बने मुक्ति धाम में ही दफ़नाया जाता हैं । मान्यता है की इससे जीव को मुक्ति मिलती है ।
पन्ना की इस किलकिला नदी के उद्धार के लिए नगर पालिका के तत्कालीन अध्यक्ष ब्रजेंद्र सिंह बुंदेला ने प्रयास किये थे । उनके जाने के बाद इस ओर कोई प्रशासनिक प्रयास नहीं हुए । इस वर्ष कुछ स्वयं सेवी संघठनो ने नदी को जीवंत बनाने का प्रयास अवश्य किया । नदी की जलकुम्भी साफ़ की खूब प्रचार प्रसार भी किया पर नदी के हाल आज भी जस के तस बने हुए हैं । नदी में आज भी नगर की गन्दी नालियों का पानी मिल रहा है । जगह जगह कीचड़ के कारण आज यह दम तोड़ती नदी बन कर रह गई है । पिछले दिनों हमें मिले एक स्वयं सेवी संघटन के कर्ता धर्ता ने जरूर बतया था की इस नदी के कायाकल्प के लिए राजेन्द्र सिंह आएंगे , उनके नेतृत्व में इस नदी को साफ़ सुथरा किया जाएगा ।
देश में संस्कृतियों और नगरों का विकाश भले ही सरोवरों और नदियों के तट पर हुआ हो किन्तु आज के दौर में बोतल बंद पानी की संस्कृति ने वीराने में भी नगर बसा दिए और सरोवरों और नदियों को मारने का सिलसिला शुरू कर दिया । किलकिला नदी जिसके तट पर ही पन्ना नगर की संस्कृति रची बसी है उसे ही समाप्त करने का सिलसिला जाने अनजाने बदस्तूर जारी है ।
रवीन्द्र व्यास
vyasmedia@gmail.com
I dont what the hell going on.. One side Government said "Ganga Safari Abhiyan" and other hand the situation like this as describe in the post here at Dudhwa Live. Really i heart the news like these...
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