वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Oct 25, 2015

सरकती खामोश धीमी मौत की आहट !


                                     
  पर्यावरण व जीवन
पृथ्वी पर जीवन हवा,पानी,जमीन ,जन्तु व पौधों पर ही निर्भर हैं । ये सब शुद्ध व पर्याप्त मात्रा में होने चाहिये। अफसोस की बात है कि मानवआर्थिक  विकास व बढती जनसंख्या की समस्या का सामना करने  के लिये ऐसे -2 उपाय अपना रहा है,  इस पृथ्वी पर जीवन का मूल आधार ही नष्ट होने का खतरा हो गया है। जल,हवा ,अनाज, फल ,सब्जी  व अन्य खाद्य पदार्थ अधिकाधिक मात्रा में प्रदूषित हो रहे हैं।खेती योग्य जमीन घट रही है। जमीन का ताप बढ रहा है ध्रुवीय हिमखंड पिघल रहे है। ओजोन पर्त में छेद बढ रहा है जिस से विकीरण का दुष्प्रभाव बढ रहा है। इस तरीके से तो आगामी कुछ दशकों में मानव सभ्यता पृथ्वी से गायब हो जायेगी या विकृत हो जायेगी । संयुक्त राष्ट्रसंघ में इस पर विचार कर के 1972 में दुनियॉं में जागरूकता बढाने के लिये हर वर्ष 5 जून को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय किया ।

भारत सरकार ने 9 नव.1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू किया ।
पर्यावरण  को दूषित करने वाले बहुत से कारण हैं पर यहॉं सिर्फ कीटनाशकों के दुष्प्रभाव पर विचार कर रहे हैं ।
कीटनाशकों का जहर 
हाल ही में एक आॅन लाइन अखबार में खबर पढी ’’अब तो मां का दूध  भी जहरीला हो गया हैं।’’ जिसमें  बताया गया कि पशुओं के दूध में निकल ,सीसा व आइरन की मात्रा तय मानक से अधिक पाई गई । 
यह खबर वाकई में चिंता पैदा करने वाली है । मनुष्य अब कहॉ तक बचेगा? दूध तो सब को पीना पड़ता है बच्चों को बड़ों को।
 कीटनाशकों के बुरे प्रभाव के बारे में पत्र-पत्रिकाओं और अखबारों में खबरें अक्सर  आती रहती हैं पर इसे रोकने हेतु कोई बड़ा प्रेक्टिकल प्रभावी कदम अब तक नजर नहीं आया ।  क्या यह जहरीले रसायनों का बढता प्रयोग वाकई में गौर करने लायक नहीं है या इस पर तब ध्यान दिया जायेगा जब सारी धरती बंजर हो जायेगी , कृषि योग्य जमीन ‘शून्य  हो जायेगी ,अधिकांश जनसंख्या बीमार हो जायेगी ,कोई दवा स्वास्थ्य देने लायक नहीं बचेगी?  

प्रभावी कंट्रोलिंग अथोरिटी की जरूरत
 2015 में कई टीवी चैनलों ने बताया कि दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में पैदा होने वाली सब्जियों में बड़ी मात्रा में जहरीले रसायन, कीटनाशक व अवशिष्ट पाये गये हैं । दिल्ली के एक कोर्ट ने  सरकार से इस बारे में जबाब मांगा है। सरकार ने इस पर नियंत्रण के लिये यद्यपि कई वर्षों पूर्व से कई आथोरिटी बना रखी हैं। जैसे -सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एन्ड रजिस्ट्रेशन कमेटी,  फूड सेफ्टी एन्ड स्टेन्डर्ड आथॉरिटी ऑफ इन्डिया , एग्रीकल्चरल एन्ड प्रोशेस्ड फूड प्रॉडक्ट्स एक्स्पोर्ट डिवलपमेंट अथोरिटी  पर जमीन पर  कोई  फायदा नजर नहीं आया।
सब तरफ अधिक मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग

 2011 में कृषि विभाग की एक जारी की गई रिपोर्ट मे देश के विभिन्न खाद्यान्न नमूनों में डीडीटी,लिंडेन,मोनोक्रोटफोस जैसे खतरनाक रसायन अधिक मात्रा में पाये गये। इलाहबाद के टमाटर के एक नमूने में डीडीटी की मात्रा 108 गुना अधिक,गोरखपुर के एक नमूने में सेब में क्लोरडेन नामक घातक रसायन पाया गया । सन् 2014 - 15 में एक अन्य कमेटी केन्द्रीय कीटनाशक अवशिष्ठ निगरानी योजना  ने  देश के 20,678 नमूनों के  आठवें भाग में प्रतिबंधित कीटनाशक पाये गये ।

*  देश में 67 रसायनिक कीटनाशक पतिबंधित है पर काफी संख्या में लोग इनका अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं  या तो उन्हें  इसकी  जानकारी नहीं है  अगर है तो वे अधिक उत्पादन के लालच में इनका प्रयोग कर रहे हैं । कई   कृषक भ्रमवश इनका अधिक व बिना जरूरत ,पैदावार बढाने  के मकसद से इनका प्रयोग करते हैं।

* 13 रसायन नियंत्रित मात्रा के लिय प्रतिबंधित हैं पर इसका ध्यान रखने या चैक करने की जिम्मेदारी किस पर है पता ही नहीं चल रहा ?

* कई रसायन अन्य देशों में प्रतिबंधित कर दिये गये हैं जैसे मोनोक्रोटोफोस  जिस से बिहार के एक स्कूल में 20 बच्चे मर गये थे,इन्डोसल्फोन  जिसे 81 देश प्रतिबंधित कर चुके हैं,भारत में धड़ल्ले से बिक रहे हंै। डीडीटी को अब भी प्रतिबंधित नहीं किया है।

* अंधाधुंध प्रयोग के कारण औसत  भारतीय अपने भोजन में  12.8 से 31 पीपीएम डीडीटी, गैंहू में 1.6 से 17.4,चावल में 0.8 से 16.4,दालों में 2.9 से 16.9 ,मूंगफली में 3.0 से 19.1,साग सब्जी में 5.0,आलू में 68.5 पीपीएम कीटनाशक खा रहा है । यह मानक से काफी ज्यादा है। अनाज ,फल सब्जी को  पानी से धोने से भी अन्दर पहुचे जहर  को नहीं निकाला जा सकता । आल इन्डिया मेडिकल इन्स्टिीट्यूट आॅफ मेडीकल साइन्स्ेज  के एक  सर्वे के अनुसार एल्यूमीनियम फोसफोइड से रोहतक में 114,यूपी में 55,हिमाचल में 30 व्यक्ति मारे गये या बीमार हुए।

* हरियाणा के कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कपास के खेत की मिट्टी में मेटासिस्टोक्स,साइपरमैािरीन ,क्लोरोपाइरीफॉस,क्वीनलफोस,साइपरमैथरीन,ट्राइजोफॉस के अवशेष  पाये।

* 2005 में सेंटर फोर साइन्स एन्ड एनवायरमेंट  ने पंजाब में उगी कुछ फसलों में कीटनाशकों की मात्रा 15 गुना से 605 गुना तक पाई गई.

* मात्र कीटनाशकों  के  पैकेट्स पर बारीक अक्षरों में चेतावनी लिखी रहती है जिस से  उसका ना के बराबर असर होता है।

* भारत में खाद्य पदाथों में कीटनाशकों का अवशेष 20 प्रतिशत है जबकि विश्व में यह 2 प्रतिशत है। भारत में बिना अवशेषों के 49 प्रतिशत क्षाद्य पदार्थ हैं जबकि विश्व में यह संक्ष्या 80 प्रतिशत है।

न्यूनतम मात्रा कितनी हो?

वर्तमान हालात विभिन्न संचार साधनों में प्रकाशित खबरों के आधार पर इस प्रकार हैं 
भारत में कुल 40 हजार कीटों की पहचान की गई है इनमें 
1.1000 कीट लाभदायक माने गये हैं
2. 50 कीट साधारण है।
3. 70 कीट ही काफी नुकसानदायक हैं।

इन थोडे़ से कीटों के लिये  देश में सैंकडों की संख्या में घातक रसायनों का हल्ला बोल दिया गया है जैसे रोगोर,मैडा पराई,इमिडाक्लोराेिपअ,मैंकोजेब,सॉफ,प्रोफिजिफोस,साइप्रोसिन ,बीएचसी,एल्ड्रोन,मिथाइल पैराथियोन, टांक्साफेन ,हेप्टाक्लोरलिन्डेन ,एसिटामिप्रिड,फ्रैम  फिप्रोनल,एन्डोसल्फोन  आदि   । 
कीटनाशकों के प्रयोग से समस्या का हल नहीं
 एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियॉं में इतने कीटनाशकों के प्रयोग के बावजूद फसलों में नुकसान स्थिर ही है। 
कई जगह तो इनकी तनिक भी जरूरत नहीं है भारत में बिना इनके, कई स्थानों पर धान की अच्छी फसल ली गई है। 

प्रयोग के बढते खतरे
अतः इनके प्रयोग पर पुनः विचार करने की जरूरत है।  कीटनाशक पदार्थ कीटों को ही नुकसान नहीं पहुचाते वे -
* भूमि को बंजर बनाते  हैं।
* लम्बे समय तक जमीन को जहरीला रखते हैं। नदियों का,तालाब का पानी तक जहरीला हो गया है कई स्थानों पर ।
* जमीन से यह जहर नदियों व समुद्र में जा कर जैव श्रंखला को प्रभावित करता है। अंत में मनुष्य तक पहुचता है। 
* कई  प्रजातियों को तो गायब ही कर रहा है जैसे मोर,गिद्व,कौआ ,चील ,चिड़ियाऐं ,लाभदायक कीड़े-मकोड़े।स्थान-2 पर जनता ने यह महसूस भी किया हकि ये जीव अब नजर नहीं आते या इनकी सामूहिक मौत की खबर सामने आती है।
* खेत में काम करने वाले कृषक मजदूर  कई तरह की बीमारियों से पीडित हो जाते है । एक अखबार के अनुसार अबोहर से बीकानेर चलने वाली ट्रेन  न0 339 को कैंसर एक्सप्रेस नाम दे दिया है जिसमें बड़ी संख्या में बीमार  किसान मजदूर जाते है। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों के 2001 से 2009 तक 23007 लोग कैंसर से पीड़ित पाये गये।
* मनुष्यों में ये मितली,डायरिया,दमा,साइनस,एलर्जी,प्रतिरोधक क्षमता की कमी ,मातियाबिंद, कैंसर, लिवर -गुर्दे खराब,उल्टी ,सिरदर्द व मृत्यु तक देते हैं।

* इनके प्रयोग के  कुछ वर्षों बाद कम पैदावार से किसान को भयंकर नुकसान होने से आत्महत्याऐं होना  , उनका इस पेशे से पलायन  करना घटित होता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड बयूरो के  अनुसार 1997 से 2009 के बीच 1,99,132 किसानों ने आत्महत्या की है।

* भारत निर्यात के लिये बड़ी मात्रा में कीटनाशक का उत्पादन भी करता हैं । इस से भोपाल कांड जैसे कांड की संभावना  आशंका हरदम बनी रहती है।

*इनके प्रचार प्रसार में उद्योगपतियों के आर्थिक हित मुख्य कारक हैं।

कीटनाशकों के प्रयोग का विकल्प
यह विचारणीय है कि यह उत्पादन बढाने के  नाम पर हम हम प्रकृति को गम्भीर नुकसान तो नहीं पहुॅंचा रहे हैं ?कमाने के चक्कर में दूसरों को जबरदस्ती यह जहर क्यों बॉट रहे है ? जीने का अधिकार तो सब का है। जब सब अधिकांश अनाज ,फल सब्जी विक्रेता जहरीला पदार्थ बेचेंगे और राज्य सही ढ्रग से कंट्रोल नहीं करेगा तो एक आम नागरिक क्या कर सकता है ? मानवाधिकार आयोग को क्या यह बड़ा मुद्या अभी नहीं लगता ? आखिर पैदावार कब तक  बढाते  रहेंगे कम होती जमीन में  ? धरती के अनुपात में जनसंख्या  को सीमित रखने पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? पैदावार बढाने के लिये जैविक खाद ,उन्नत बीज, कम पानी वाली फसलें ,व अन्य वज्ञाानिक तरीके अपना कर खाद्य समस्या को हल करने की जरूरत है । जहर बना कर किसी देश को भी बेचो  शेष में वह मानव जाति को ही नुकसान पहुचायेगा । धरती को जीने लायक रहने दिया जाये तो बुद्धिमता है।

 सुश्री आकांक्षा
 एम.ए.,एम.एड,शोध छात्रा
सीकर, राजस्थान 
सेलुलर- 7891211170

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