वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Oct 4, 2015

आप देखना चाहेंगे जिजीविषा को....


गाँव और इनकी सदियों पुरानी परम्परायें सरक रही है, बचा सकते हो तो बचा लीजिए इन सदियों पुरानी परम्पराओं को और उस सदियों पुराने आदमी को भी जो सरलता से जीवन जीना सिखाता आया है अपनी पीढ़ियों को, देखिएगा और विचारिएगा इस आदमी की जिजीविषा को यकीनन संवेदनाओं का ज्वार आपकी आँखों से बेसाख्ता आशुओं की बारिश करवा देगी और रूह तो इंतजामियां की भी कांपनी चाहिए इस किसान की मुक़द्दस मेहनत को देखकर...

"बुंदेलखंड के बांदा जिला की बबेरू तहसील की  पतवन  ग्राम पंचायत का मजरा है एम् पी का पुरवा जहां  यह  किसान देवराज यादव पिछले चालीस वर्ष से एक पैर में लाठी बांधकर जिन्दगी की तमाम दुश्वारियों  को  कड़ी मेहनत और अपने पहाड़ से हौसले से मात देते आ रहे है, बीस वर्ष की उम्र में देवराज के पैर में हल की नोक लग जाने से सेप्टीसीमिया हुआ और गरीबी के चलते इलाज न करवा पाने से अंतत: देवराज को पैर कटवाना पडा , और अब देवराज के पास कुछ नहीं बचा की वह कैसे खेतों में काम कर सकेंगे एक पैर से जिससे उनकी जीविका चल सके, आखिर प्रकृति प्रदत्त जीवन जीने की महान प्रवृत्तियां पुलकित हो उठी देव राज के मन में और खेत में बैलों और हल के साथ पैर में लाठी बांधकर खेत जोतने की कोशिश करने लगें आखिर कार कई निष्फल प्रयासों के बाद देवराज अभ्यस्त हो गए इस तकनीक के जिसे उन्होंने खुद ईजाद किया और जिन्दगी की तमाम दिक्कतों को ठेंगा दिखाते हुए काम कर रहे है अपने खेतों में और पाल रहे हैं अपने परिवार को और साहूकार के कर्ज  को भी भर रहे है वह साथ ही सन्देश भी दे रहे है उन सभी को जो हार जाते है तनिक सी दिक्कतों में जिन्दगी की जंग ......अब यह मिसाल है हम सब के बीच ज़िंदा जिजीविषा की ...."




जिन्दगी जीने का हौसला, मुफलिसी में भी कड़ी मेहनत, हर दर्द को झेलता हुआ ये इंसान, जिसे कभी मौसम की मार ने बेहाल किया, तो कभी समाज के ठेकेदारों ने, कुल मिलाकर भारतीय किसान जो आधार है किसी भी देश का या यूं कह ले कि पूरी इंसानियत का, यही किसान और इसकी खेती जिसने जन्म दिया इंसानी सभ्यताओं को और आज हम खुद को अगर सभ्यता में रहना कह पा रहें है, तो यही वो अन्न दाता है जो स्वयं में तो दरिद्र नारायण है पर पेट हम सब के भरता है अपनी कड़ी मेहनत से बिना बारिश, जाड़ा और धूप की परवाह किए, वह जुटा रहता है १२ महीने आधे पेट भोजन के साथ...

इतने परिश्रम के बाद वह ठगा जाता है बाजारों में जब वह अपने परिश्रम की फसल बेचने जाता है, फिर ठगा जाता है देशी विदेशी कंपनियों से जो उसे नकली व् नपुंसक बीज बेंचती है उच्च गुणवता वाले बीजों के नाम पर, नकली खाद और कीटनाशक भी उसे बेच दिए जाते है उसकी महान मेहनत के पैसे लेकर...बचा खुचा सरकार के कारिंदे उसे बेहाल कर देते है लगान, सिचाई और न जाने कितने सरकारी दस्तावेजों की हनक से वह किसान बेसुध सा हो जाता है, गाँवों में विकास की गंगा खूब बहाई गयी विगत दशकों में नतीजतन प्राकृतिक तालाब ख़त्म हो गए, स्थानीय नदियाँ नालों में तब्दील हो गयी, चारागाह अवैध कब्जो में आ गए और बाग़ बगीचों को काट कर अब हाइब्रिड बीजों की खेती होने लगी, पशुपालन की पारम्परिक व्यवस्था भी चरमरा गयी, अब पशु खूटे पर बधे बधे सूखे भूसे से गुजारा करते हैं, क्योंकि चारागाह नष्ट होना इन पशुओं की स्वतंत्रता के सबसे बड़े बाधक बने... रहा सहा नरेगा में कुँए की शक्ल में खोद दिए गए तालाब जहां न तो आस पास का पानी आकर उसमे संचित हो सकता है और न ही किसी जानवर के उस तालाब में घुस कर पानी पीने की गुंजाइश...गाँव बदल दिए गए और किसान अभी भी उसी बदले हुए हालात में सदियों पुरानी परम्पराओं का डंका पीट रहा है और बड़ी शिद्दत से, देख सकते है तो देखिये इस तस्वीर में उस किसान ने तमाम बाधाओं के बाद भी हार नही मानी ...




...आशीष सागर बांदा नगर के एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, कम उम्र में सामाजिक समझ की विशालता ने आशीष को बुनियादी मसलो पर संघर्ष करना सिखा दिया आशीष ने बुन्देलखंड में जल जंगल जमीन की लड़ाई का मोर्चा पिछले एक दशक से खोल रखा है और अब सरकारें भी कान लगाकर आशीष सागर के जमीनी मुद्दों को सुनने लगी हैं, इन्ही आशीष ने कल ही बाँदा जनपद के एक गाँव से गुजरते वक्त एक तस्वीर खींची, हल चलाते हुए किसान की, यकीनन आप सब ने ऐसी तमाम तस्वीरें देखी होंगी पर यह तस्वीर इतर है जो संवेदनाओं की पराकाष्ठा की चौकठ पर हथोड़े मार रही है और आप की वैचारिक अवधारणाओं के क्षितिजों के उस पार चीरते हुए भयंकर अनुनाद के साथ ब्रह्मांडों में दाखिल होने की विभीषिका को जन्म देती है...

यह खालिस तस्वीरें नहीं है, बल्कि यह अतीत है मानव का, जो बतलाता है की कैसे कंदराओं से निकल कर आदमी घने जंगलों से गुजरता हुआ प्रकृति की हर विभीषिका को झेलता हुआ, नदियों की गोद से समंदर की छाती पर सवार होकर सारी पृथ्वी पर अपनी सभ्यता कायम करने में सफल हुआ, ये तस्वीर बताती है की हौसला मत हारिये, और साहस देती है जीने का इन कठिन भ्रष्ट परिस्थितियों में, ये तस्वीर मिसाल है उन सबके लिए जो किसान तंगहाली में हिम्मत छोड़ रहे है जीने की, ये तस्वीर साक्षात स्वरूप है जिजीविषा का.........(सभी तस्वीरें साभार- आशीष दीक्षित सागर -बांदा)

कृष्ण कुमार मिश्र 
संस्थापक सम्पादक- दुधवा लाइव पत्रिका 
लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश, भारत गणराज्य 
editor.dudhwalive@gmail.com 





2 comments:

  1. Aapko is lekh k lieye Baht Dhanyawaad Krishna Kumar Ji!!...main jaanti hoon bundelkhand mein Saamanti Vyavastha aaj bhi 30-40 saal peechhe jaise ghar kiye baithi hai k Kisan, Dalit va Aaadivasi ko panapane hi nhi deti hai...Aur us par aaj k is Thathaakathit Vikas k daur mein is tarah k Maulik Vikas ki baat hi kaun karta!!??....Aap, Ashish Sagar Ji aur Dudhwalive ko Sadhuwaad is mahatvapoorna khabar se humein rubaru karwaane k liye!!...sach mein Jeejivisha ki paribhasha ko saakaar hote hue to Bharat k Gaon mein hi dekha ja sakta hai!!....

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  2. aapka ye lekh do pairo wale kisano ke liye nai rah jaroor ban sakta hai

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