ग्रीनपीस ने स्वच्छ वायु के लिए शुरू किया राष्ट्रीय अभियान
नई दिल्ली। 23 सिंतबर 2015। ग्रीनपीस ने आज स्वच्छ वायु के लिये एक राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की है। पर्यावरण समूह ने सरकार से उसके ‘स्वच्छ वायु जन्मसिद्ध अधिकार’ के वादे को पूरा करने के लिये पहले कदम के रूप में तत्काल राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (एनएक्यूआई) में सुधार करने की मांग की है। ग्रीनपीस के अनुसार वायु गुणवत्ता सूचकांक के वर्तमान रूप में कई गंभीर खांमियां हैं: इसका दायरा बहुत ही सीमित है, इसमें पारदर्शिता का अभाव है, व इसके गुणवत्ता आंकड़ों को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने या उपयोगी बनाने के लिये कोई ठोस योजना भी नहीं है।
ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर नंदीकेश शिवलिंगम के अनुसार, “राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक, या एनएक्यूआई, को अगर ठीक से लागू किया जाये तो यह एक अत्यंत शक्तिशाली औजार बन सकता है। सटीक जानकारी स्वच्छ हवा के अभियान में पहला महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन हवा की गुणवत्ता के बारे में विश्वसनीय और पारदर्शी जानकारी प्रदान करने से पहले एनएक्यूआई को तत्काल ठीक करने की जरुरत है। सूचकांक से प्राप्त जानकारी के आधार पर जहां एक तरफ लोगों को अधिक सक्रियता से वायु प्रदुषण से बचने के लिये एहतियाती उपाय बताए जाने की जरुरत है, वहीं दूसरी तरफ प्रशासन द्वारा वायु प्रदुषण के मूल कारणों पर विचार भी किया जाना चाहिए।”
हाल ही में ग्रीनपीस ने ताजा स्थिति की जांच के दौरान पाया कि एनएक्यूआई को लागू करने के निवेश, व बुनियादी ढांचे में काफी अन्तर है। सूचकांक के आकड़ों को ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिये केवल दिल्ली में 10 निगरानी स्टेशन हैं, वहीं चेन्नई, बेंगलूर और लखनऊ में तीन-तीन स्टेशन हैं, जबकि हैदराबाद में दो स्टेशन हैं और अन्य दस शहरों में केवल एक-एक स्टेशन ही हैं। यही नहीं,दिल्ली में भी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक के आकड़े निरर्थक हैं क्योंकि आंकड़ों के प्रसार के लिये कोई व्यवस्था नहीं है, स्थानीय प्रशासन द्वारा सबसे अधिक वायु प्रदुषण वाले दिन से निपटने के लिये कोई साझी योजना नहीं है, और न ही इन आकड़ों के आधार पर लोगों को प्रदुषण से निपटने के लिये कोई सूचना दी जाती है।
नंदीकेश का कहना है, “राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक को पूरे देश में लागू करना अच्छा है, बल्कि यह हमारी मांगों में से एक है। लेकिन सबसे जरुरी है कि पहले इस सिस्टम को उचित बुनियादी ढांचे और स्पष्ट कार्य योजना के साथ लागू किया जाय। वर्तमान रूप में राष्ट्रीय वायु सूचकांक एक मौन अलार्म घड़ी की तरह है: चाहे वो सही समय दिखाये या नहीं, यदि उसकी आवाज ही ना सुनाई दे तो उसका क्या उपयोग है?”
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में दुनिया के 20 सबसे बुरे प्रदुषित शहरों की सूची जारी की है, जिनमें से 13 शहर भारत में है। यह स्पष्ट संकेत है कि वायु प्रदुषण से निपटने के लिये आवश्यक कदम उठाना जरुरी है। ग्रीनपीस ने बंगलोर के चार प्रमुख जगहों, जिनमें क्रिस्ट कॉलेज, हौजुर रोड, आरबीआई और नरुपथुंगा रोड शामिल हैं, पर किये गए वायु गुणवत्ता की निगरानी सर्वेक्षण में चौंकाने वाले परिणाम पाया: इन जगहों पर आठ घंटे के नमूना अवधि में, औसत वायु प्रदुषण के स्तर में पीएम 10 का स्तर भारत सरकार के सुरक्षा सीमा से 13 गुणा और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 26 गुणा अधिक तक पाया गया। इनमें दो स्थानों पर केन्द्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के सीमा से औसत 1.3 और 2.5 गुणा अधिक पाया गया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदुषण के इन बढ़ते स्तरों का असर लोगों पर देखा जा रहा है, खासकर बच्चों पर। लेकसाइड अस्पताल, बंगलौर में बच्चों के फेफड़ा और श्वास संबंधित मामलों के विशेषज्ञ बाल विशेषज्ञ डॉ. एच. प्रमेश का कहना है, “ पिछले 15 सालों में, गर्मी में बंगलोर में 18 साल से कम के बच्चों में अस्थमा की शिकायत में 27 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि गंभीर अस्थमा के मामलों में 4 से 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इन बच्चों को लगातार स्टेरॉयड दिये जाते हैं, वहीं उन्हें हमेशा चिकित्सक की देखभाल में रखने की जरुरत होती है। खासकर, सर्दियों की सुबह जब प्रदुषण का स्तर उच्च होता है, खेलने या व्यायाम करने के क्रम में बच्चों में सांस की बीमारियों के होने के खतरे सबसे ज्यादा होते हैं”।
नंदीकेश कहते हैं, “ऐसे कई अध्ययन हो रहे हैं जिससे साबित होता है कि देश में अकाल मौतों में वायु प्रदुषण की अहम भूमिका है। इसलिए बहुत जरुरी हो गया है कि लोगों को यह बताया जाए कि उनके द्वारा ली जाने वाली हवा में कितना प्रदुषण है, इसका उनके स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा और किस तरह के एहतियाती कदम उठाने की जरुरत है। स्वच्छ हवा पर हमारा अभियान एक प्रयास है जिससे लोगों को स्वच्छ वायु के अधिकार के लिये जागरुक किया जा सके। सरकार को एक पारदर्शी, विश्वसनीय राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक को पूरे देश में लागू करना चाहिए, जिससे समय रहते वो वायु प्रदुषण से निपटने के लिये आवश्यक कदम उठाने में सक्षम हो सके।”
अविनाश कुमार
avinash.kumar@greenpeace.org
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