भू-अधिग्रहण अध्यादेश और दमन के खिलाफ
विशाल जनविरोध प्रदर्शन
12-14 जून 2015
लक्ष्मण पार्क धरना स्थल-लखनऊ-उ0प्र0
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मई 2015 को केन्द्र की एन.डी.ए सरकार ने देशभर में हो रहे भरपूर विरोध के
बावज़ूद तीसरी बार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को एक बार फिर से जारी कर दिया
है। इससे पूर्व इस अध्यादेश को दिनांक 31 दिसम्बर 2014 को व 3 अप्रैल को भी
जारी किया गया था। देशभर के खेतीहर किसान, दलित आदिवासी तबकों और भूमि
अधिकार के सवाल पर लड़ रहे जनसंगठनों, ट्रेड यूनियनों, संगठनों, संस्थाओं व
आम लोगों में भी इसके खिलाफ एक हाहाकार मच गयी थी व संसद में भी विपक्षी
सदस्यों ने इस अध्यादेश का भारी विरोध किया।
क्यूंकि
नियम ये है कि अध्यादेश जारी होने के बाद इसे कानून के रूप में बदलने के
लिये इसे संसद के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में पारित कराना ज़रूरी
होता है। संसद में भी भारी विरोध के चलते यह कानून पारित नहीं हो पाया। इसी
लिये सरकार को तीन बार अध्यादेश जारी करने की ज़रूरत पड़ी। दोनों बार ही
प्रस्तावित कानून लेाकसभा में पारित हो गया था, लेकिन पहली बार राज्य सभा
में पारित नहीं हो पाया और दूसरी बार तो राज्य सभा में विरोध के चलते पेश
ही नहीं किया गया। क्योंकि तब तक दूसरी बार अध्यादेश जारी होने के बाद उस
समय में इस अध्यादेश के विरोध में जो सशक्त जनांदोलन चल रहा है, उनके साथ
संसद में अध्यादेश का विरोध कर रहे दलों के साथ इस जनांदोलन का एक तालमेल
बन गया, जिसके कारण इसे वे राज्यसभा में पेश नहीं कर पाए और सरकार को
मजबूरन इस प्रस्तावित कानून को संयुक्त संसदीय समिति को गठित कर विचार के
लिए रखना पड़ा। यह सरकार के लिए एक कदम पीछे हटना था। संसदीय समिति को
जुलाई माह में संसदीय सत्र मे अपना सुझाव देना है और तब इस प्रस्तावित
कानून पर दोनों सदनों में चर्चा होगी और यह तय होगा कि यह कानून पारित होगा
या नहीं। ज्ञात रहे कि मोदी सरकार के पास लोकसभा में भारी बहुमत है लेकिन
राज्य सभा में उनके पास बहुमत नहीं है। सवाल यह है कि जब सरकार ने
प्रस्तावित विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति में भेज दिया था, तो फिर तीसरी
बार अध्यादेश ज़ारी करने की ज़रूरत क्यों पड़ी। साफ ज़ाहिर है कि सरकार को
संसदीय प्रणाली में भरोसा नहीं है, इसलिए वह बार-बार अध्यादेश ज़ारी कर रही
है। इस से यही साबित होता है कि सरकार ज़मीनों को हड़पने पर तुली हुई है।
यह सूटबूट और रंग बिरंगी बंडियों की मोदी सरकार बड़ी-बड़ी कम्पनियों के हाथ
देश की ज़मीनें व सम्पदा को सौंपने के लिए ज़रूरत से ज्यादा बैचेन है।
इससे पहले भी सरकारों ने प्राकृतिक सम्पदा को कम्पनियों के हाथों में दिया,
लेकिन इस कदर ऐसी हड़बड़ी कभी दिखाई नहीं दी। लगता है कि सरकार का टिकना
इसी बात पर निर्भर है। अगर जल्दी-जल्दी मालिकों के हाथ में सम्पदा नहीं
पहुंची तो शायद इनकी नौकरी चली जाएगी। क्योंकि यह सरकार तो मालिकों की
नौकरी कर रही है। उन्हें इस बात की कोई फिक्र नहीं कि देश में हर तबके के
लोग ऐसे कानून का विरोध कर रहे हैं। तमाम जनसंगठन, किसान संगठन, खेतीहर
मज़दूर संगठन, मानवाधिकार संगठन व तमाम केन्द्रीय मज़दूर संगठन भी सम्मिलत
रूप से इसका विरोध कर रहे हैं। लगभग सभी विपक्षी पार्टियां ऐसे कानून का न
केवल विरोध कर रही हैं, बल्कि जनसंगठनों के समूह ‘‘भूमि अधिकार आंदोलन’’ के
साथ भी तालमेल बना रही हैं। 2 अप्रैल 2015 को संसद क्लब में आयोजित की गई
सार्थक बैठक व 5 मई को संसद मार्ग पर किये गये संयुक्त प्रर्दशन से यह बात
सामने भी आ गई। सरकार इसी तालमेल से बौखला रही है। इसलिए अध्यादेशबाज़ी से
बाज़ नहीं आ रही। चोर चोरी से जाए हेरा फेरी से न जाए।
ये
तो रही केन्द्रीय सरकार की बात अब देखा जाए कि राज्य सरकारें क्या कर रही
हैं। जिन राज्यों में एन0डी0ए की सरकार है वहां तो मामला साफ है। लेकिन कई
राज्यों में जहां एन0डी0ए की सरकार नहीं है, जैसे उ0प्र0, तेलंगाना, असम,
उड़ीसा आदि में ज़मीनी स्तर पर सरकारी मशीनरी जबरन भूमि अधिग्रहण में लगी
हुई है। ज़्यादहतर राज्यों में अभी भी वनविभाग वनाश्रित समुदायों को
विस्थापित करने में लगा हुआ है, सिंचाई विभाग बांधों के नाम से कृषि एवं
ग्रामसभा की भूमि को गैरकानूनी रूप से छीन कर लोगों को जबरन विस्थापित कर
रहा है, रोड व ढांचागत निर्माण के नाम से लोक निर्माण विभाग शहरी और गांव
की ज़मीनें बेधड़क हड़प रहे हैं। सरकार चाहे किसी की भी हो सरकारी मशीनरी
एक ही बात जानती है, कि विकास के नाम पर सारी भूमि कम्पनियों और ठेकेदारों
के हाथ में दे दो। राज्य सरकारें चाहे कांग्रेस, सपा, अन्ना डी.एम.के,
बी.जे.डी या टी.आर.एस की हो सबकी चाल मोदी चाल ही है। क्योंकि इस काम में
अफसरों, बड़े बड़े कांट्रेक्टरों, सीमेंट व लोहा कम्पनियों, बड़े-बड़े मशीन
बनाने वाले उद्योगों की चांदी ही चांदी है। इन सारे चक्करों में फंस कर आम
जनता बेहाल होती जा रही है। इसलिए आज जो संसद में विरोध में चल रहा है, वो
कब तक चलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। देखना यह है कि संयुक्त संसदीय
समिति की बैठक में सबसे पहले राज्यों के मुख्य सचिवों को बुलाया गया है, जो
अपने-अपने राज्य की तरफ से क्या पेशकश देते हैं? जैसे उ0प्र0 में मुख्य
मंत्री ने स्पष्ट रूप से यह ऐलान किया कि प्रदेश में कोई भी भूमि जबरन नहीं
ली जाएगी। लेकिन बावजूद इसके अधिकारीगण जमीन अध्रिगहण के सारे हथकंडे अपना
रहे हंै, चाहे गोली क्यों न चलाई जाए। जिसकी सबसे बड़ी ताज़ा मिसाल
सोनभद्र में बन रहे कनहर बांध में जबरन भूमि अधिग्रहण के विरोध में चल रहे
शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान 14 अप्रैल 2015 को अम्बेडकर जयंती के दिन
आंदोलनकारियों पर सीधे गोली चलाने की घटना में मिलती है।यही नहीं इसके बाद
18 अप्रैल को एक बार फिर सुब्ह निकलते ही जब लोग आधी नींद में थे
पुलिस
ने स्थानीय गुंडों माफियाओं की मदद लेकर एक बार फिर सैकड़ों राउंड गोली
बारी की व बिना किसी महिला पुलिस के महिलाओं, बुजु़र्गों, नौजवानों पर खुला
लाठी चार्ज किया, निशाना साध कर सरों पर सीधे वार किये गये जिसमें सैकड़ों
लोग घायल हुए। जिसमें आदिवासी नेता अकलू चेरो के सीने पर पुलिस द्वारा
निशाना साध कर गोली चलाई गई, गोली सीने के आर-पार निकल जाने के कारण अकलू
चेरो की जान तो बच गई, लेकिन इरादा हत्या का ही था। उ0प्र0 के एक कददावर
मंत्री ने आंदोलनकारीयों को अब अराजक तत्व बताया है ठीक उसी तरह जिस तरह
केन्द्रीय सरकार ने दिल्ली विधान सभा के अधिकारों के लिए लड़ रही दिल्ली
सरकार को अराजकतावादी बताया है। विदित हो कि यह सब खेल सत्ता के इशारे पर
पुलिस प्रशासन द्वारा उस 2300 करोड़ रुपये के लालच में किया गया जो कि बाॅध
के निर्माण के लिये आना है।
भूमि अधिकार आंदोलन जो कि
देश के तमाम जनसंगठनों का साझा मंच है और जो केन्द्रीय स्तर पर इस अध्यादेश
के खिलाफ संघर्षरत है और इस साझा मंच के बैनर तले दिल्ली में दो बड़ी
रैलीयां की गई हैं। तमाम विरोधी सांसदों के साथ वार्ता भी की गई, जिसका
सीधा असर संसद की बहस में दिखाई दिया। यह आंदोलन इसके साथ-साथ राज्य की
स्थिति के बारे में भी जागरूक है। इसलिएयह साझा आंदोलन हर राज्य के
मुख्यालय और क्षेत्रों में भी विरोध प्रर्दशन के कार्यक्रम चला रहा है,
ताकि आम जनता जागरूक हो और राज्य सरकार भी सचेत हो। राज्य सरकारों को भी
अपनी जनता के प्रति प्रतिबद्धता भी जाहिर करना ज़रूरी है। केन्द्र में तो
अध्यादेश का विरोध करें और क्षेत्र में भूमि हड़प कार्यक्रम चलाकर कुछ और
करें ऐसा नहीं चल सकता। इसलिए भूमि अधिकार आंदोलन उ0प्र0 की राजधानी लखनऊ
में भी एक तीन दिवसीय धरने का आयोजन करने जा रहा है, जो कि 12 जून 2015 से
14 जून तक चलेगा। इस कार्यक्रम को अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन
आयोजित कर रहा है, जिसमें देश के तमाम जनसंगठन भी शामिल होंगे।
हमारी मांगे -
1. राज्य में जबरन किसी भी तरह का भूमि अधिग्रहण नहीं किया जाए।
2. कनहर
नदी पर बनाए जा रहे बांध के काम को रोकने के लिए राष्ट्रीय हरित
न्यायाधिकरण के 24 दिसम्बर 2014 के आर्डर के तहत जनता के प्रतिरोध को 14
अप्रैल 2015 को अम्बेडकर जंयती पर व 18 अप्रैल को पुलिस द्वारा गोली एवं
लाठी चार्ज कर आदिवासीयों एवं अन्य समुदायों पर जो दमन किया गया उसकी उच्च
स्तरीय न्यायिक जांच अथवा सी0बी0आई जांच कराई जाए। 7 मई 2015 के एन.जी.टी
के फैसले के तहत नये काम पर तत्काल रोक लगायी जाये।
3. कन्हर
गोली कांड़ के दोषी अधिकारियों पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई
और घायलों की तरफ से प्राथमिकी को फौरन दर्ज किया जाए।
4. आंदोलनकारियों
पर दायर असंख्य फर्जी केसों को फौरन वापिस लिया जाए, आंदोलन के नेता
गंभीरा प्रसाद, राजकुमारी, पंकज भारती, अशर्फी यादव, लक्ष्मण भुईयां, को
बिना शर्त रिहा किया जाए।
5. 14
अप्रैल को गोली कांड़ में घायल अकलु चेरो पर लगाये गये तमाम फर्जी केसों
को खत्म किया जाए, उनका पूरा इलाज सरकारी खर्च पर चलाया जाए एवं उनको
सरकारी नौकरी मुहैया कराई जाए।
6. सन्
2006 में संसद में पारित केन्द्रीय विशिष्ट कानून वनाधिकार कानून-2006 के
क्रियान्वयन की स्थिति प्रदेश में अभी तक दयनीय बनी हुई है, जिसके कारण
वनक्षेत्रों में समुदायों व वनविभाग के बीच का टकराव लगातार बढ़ रहा है लोग
अभी तक अपने हक़-ओ-हुकूक से वंचित हैं। इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू
किया जाए।
7. इस
देश के नागरिकों को यह संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, कि वे संविधान में
प्राप्त अपने मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 19 के तहत अपनी बात रख सके, संगठन
का निर्माण कर सकें व संगठित हो कर अन्याय के विरूद्ध लड़ सकें। जनवादी
तरीके से चल रहे जनआंदोलनों पर दमन की कार्रवाईयों पर पूरी तरह से रोक लगे व
ऐसा करने वाले अधिकारियों को कड़े रूप से दंडित किया जाये। जिला सोनभद्र
में प्रशासन द्वारा लगायी गयी अघोषित आपातकालीन स्थिति को समाप्त किया जाये
व शांति बहाल की जाये।
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां, रूई की तरहा उड़ जायेंगे
हम महक़ूमों के पाॅव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर, जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
हम देखेंगे, लाजि़म है कि हम भी देखेंगे -‘‘फै़ज़’’
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन
भूमि अधिकार आंदोलन
रोमा
romasnb@gmail.com
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