बाँदा / बुंदेलखंड 7 मई 2015 -
' गृहमंत्री के जाने के सातवें दिन की किसान ने आत्महत्या '
गृहमंत्री ने इसी गाँव का गत सप्ताह एक मई को किया था दौरा.
बाँदा की किसान महापंचायत में कहा था आपका कर्जा माफ़ नही कर सकते,सबका करना पड़ेगा !
जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर ग्रामीणों ने किया हाइवे जाम.
जिलाधिकारी बाँदा सुरेश कुमार प्रथम ने दिखलाया सामंती चेहरा,मृतक किसान परिवार,ग्रामीणों,किसान प्रतिनिधियों से किया मिलने से इंकार,कहा कि ...' मेरे पास और भी बहुत काम है,समय नही है ' ! एक के बाद एक गत तीन माह से गिर रही किसानो की लाशो पर एक और कड़ी जुड़ गई आज गाँव महोखर में.
जिला कलेक्टर ने ढाई घंटे तक किसान की लाश को,उसके पीड़ित परिवार को और सैकड़ो ग्रामीणों को इंतजार करवाया और लाख जिरह करने के बाद दो मिनट के लिए नही आये l ..सुरेश कुमार प्रथम ने सबको अपने ठेंगे में लिया जबकि खुद की धर्मपत्नी डाक्टर विमलेश राठौर के माध्यम से लगाये गए बाँदा में आर्ट आफ लिविंग के कैम्प में आला अधिकारी के साथ समय निकालकर करते है शिरकत ताकि भीड़ जुट सके ! अमानवीयता की सीमा से परे जाकर उपजिलाधिकारी सदर बाँदा प्रह्लाद सिंह, दरोगा - सिपाही और लेखपाल बने तमाशाई नही आई किसी को किसान आत्महत्या पर संवेदना ....कहते कि डीएम साहेब 5 मिनट के लिए आ जाइये ! ये बीस लाख की आबादी के आप प्रसाशनिक मुखिया है ! ....अगर इतने ही व्यस्त है तो फिर सपा विधायको के बेटो के विवाह समारोह, नेताओ के जलसे में क्यों चले जाते हो ?
आज बाँदा जिले के गाँव महोखर में किसान विजय बहादुर सिंह ( उम्र 60 वर्ष ) ने सुबह 9 से दस के मध्य अपने गृह निवास के समीप बने पुराने अटारीनुमा दो मंजिला पुराने घर में फांसी लगाके जीवन लीला खत्म कर ली. किसान के एक बेटा था,बेटियों का ब्याह हो चुका था,बेटे से तीन सायानी बेटियां क्रमशा काजल,सोना और दीपा है. जिसमे काजल के लिए बीते दो दिन लड़का देखकर आये थे. दहेज़ की बढ़ती मांग और गत 6 मई को खेत में चना कतरा कर आने के बाद उन्होंने बात नही की. आज सुबह ये कदम उठ गया. इस मृतक किसान के 23 बीघा कृषि जमीन थी. किसान क्रेडिट कार्ड पर 3 लाख रूपये खुद पर कर्ज और तीन लाख बेटे कुलदीप सिंह पर कर्जा था. मौके पर बाँदा के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह,मै खुद,कैप्टन सूर्य प्रकाश मिश्र,बलराम तिवारी,बैजनाथ सिंह पहुंचे. किसानो को संवेदित कर वहां आये उप जिलाधिकारी सदर से किसान प्रेम सिंह ने कहा कि ये आखरी किसान आत्महत्या हो ! इसका समाधान खोजिये ! सरकारी खैरात से इसका निपटारा नही होगा. सबने एक सुर में जिलाधिकारी बाँदा को आने का निवेदन किया लेकिन अपने कुर्सी के मद में चूर जिलाधिकारी नही आये l
बाद में आये कांग्रेसी विधायक तिंदवारी दलजीत सिंह ने आशा अनुकूल साथ नही दिया और हम सब अपनी लड़ाई हार गए किसान का अंतिम संस्कार बिना जिलाधिकारी के आये हुआ. मगर ये सवाल है उस लोक तन्त्र पर जो किसानो का पैदा किया खाता है, जिसके बच्चे - पत्नी हम जनता के धन / टैक्स से पलते है, ये सवाल है उन खद्दर वाले नेताओ,गृह मंत्री - प्रधानमंत्री और समाजवादी मुख्यमंत्री से जिन्होने इस साल को ' किसान वर्ष ' घोषित किया है ...कि क्या ये साल किसानो की तेरहीं का वर्ष है जिसमे आप के घड़ियाली दावे हजारो परिवारों को अनाथ कर रहे है. ....शर्म हमें नही आती !
-आशीष सागर (सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार व् पर्यावरणीय मसलों पर आंदोलनी अभिव्यक्ति, प्रवासनामा पत्रिका के संपादक, बांदा में निवास, इनसे ashish.sagar@bundelkhand.in पर संपर्क कर सकते हैं)
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