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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Mar 31, 2015

महान में लोकतंत्र महोत्सव, ग्रामीणों ने किया भूमि अधिग्रहण कानून का विरोध


महान संघर्ष समिति ने भरी हुंकार, अबकी बार जंगल-जमीन पर हमारा अधिकार

30 मार्च 2015। सरकार द्वारा महान जंगल को कोयला खदान के लिये आंवटित नहीं करने के निर्णय को लोकतंत्र की जीत बताते हुए आज अमिलिया में महान संघर्ष समिति द्वारा लोकतंत्र महोत्सव का आयोजन किया गया। इस महोत्सव में महान वन क्षेत्र में स्थित करीब 20 गांवों के सैंकड़ों ग्रामीण शामिल हुए। समारोह में ग्रामीणों ने सरकार द्वारा प्रस्तावित भूमि अघिग्रहण कानून के विरोध में अबकी बार जंगल-जमीन पर हमारा अधिकार के नारे लगाये।
महोत्सव की शुरुआत ग्रामीणों ने जंगल के रक्षक डीह बाबा की पूजा से की। महोत्सव में शामिल महिलाओं, पुरुषों और बच्चों ने जंगल और उससे जुड़े अपने रिश्ते पर बनी पारंपरिक लोकगीतों और लोकनृत्य के माध्यम से अपनी खुशी का इजहार किया। 


कोयला मंत्रालय द्वारा महान को निलामी सूची से हटा दिया गया है लेकिन इसी जंगल क्षेत्र में कई दूसरे कोल ब्लॉक को निलामी सूची से नहीं हटाया गया है। जनसम्मेलन को संबोधित करते हुए महान संघर्ष समिति के सदस्य कृपानाथ यादव ने कहा, महान जंगल में प्रस्तावित कोयला खदान के खिलाफ लड़ते हुए हमने लगातार धमकियों, गैरकानूनी गिरफ्तारी और छापेमारी का सामना किया है। हमारे आंदोलन का ही नतीजा है कि सरकार को हमारी बात माननी पड़ी और महान कोल ब्लॉक को निलामी सूची से बाहर करना पड़ा। अब हम सरकार से मांग करते हैं कि वन क्षेत्र के आसपास बसे गाँवों को वनाधिकार कानून के तहत सामुदायिक वनाधिकार दिया जाय। हम आगे भी किसी भी परिस्थिति में फिर से कोयला खदान को आवंटित नहीं होने देंगे और जंगल का विनाश होने से बचायेंगे



इस आंदोलन में शुरुआत से शामिल महान संघर्ष समिति की कार्यकर्ता और ग्रीनपीस की सीनियर कैंपेनर प्रिया पिल्लई ने कहा, सरकार का यह फैसला लोकतंत्र की जीत है। यह लोगों के आंदोलन की जीत है। एक ऐसे समय में जब दिल्ली की केन्द्र सरकार लोगों के जंगल-जमीन को हड़पने के लिए भूमि अधिग्रहण कानून में फेरबदल करना चाहती है, महान जैसे जमीनी आंदोलनों की अहमियत बढ़ जाती है। नियामगिरी आंदोलन के बाद महान की लड़ाई ने देश में दूसरी बार साबित किया है कि लोगों के आंदोलन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस संघर्ष ने देश भर के जनआंदोलनों को ताकत दी है
प्रिया ने आगे कहा, प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून में सरकार ने ग्रामीणों की सहमति और जनसुनवाई को जरुरी नहीं माना है, जो सीधे-सीधे गरीबों और  किसानों के हित के खिलाफ है। इस प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ पूरे देश में लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। महान संघर्ष समिति भी इन आंदोलनों के साथ मिलकर प्रस्तावित कानून का विरोध करेगी

राष्ट्रीय वन श्रमजीवि अधिकार मंच की तरफ से सभा को संबोधित करते हुए गंभीरा भाई ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध किया और कान्हड़ डैम से प्रभावित लोगों के द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन के बारे में बताया। उन्होंने 2013 में पारित भू अधिग्रहण कानून को लागू करने की मांग की।
जनसम्मेलन के अंत में महान संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की प्रतियों को फाड़कर जमीन में दफनाया और उसपर आंदोलन के प्रतीक के रुप में पौधारोपण किया।

प्रिया पिल्लई
ग्रीनपीस भारत 
 ppillai@greenpeace.org


अविनाश कुमार 
ग्रीनपीस भारत 
Avinash.kumar@greenpeace.org

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