कैमासुर गाँव (लखीमपुर-खीरी) सुबह तकरीबन १० बजे मिली सूचना के मुताबिक़ जिला मुख्यालय से १० किमी की दोर्री पर स्थित गाँव कैमासुर में एक अजगर की मौजूदगी की बात कही गयी, "दुधवा लाइव टीम" ने मौके पर जाकर खबर के पुख्ता होने की पुष्टि की, ग्रामीण काफी भयभीत व् आक्रोशित थे, पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण में कर रखा था, वन विभाग के लोग मूक दर्शक बने हुए थे, मंजर अजीब था, ग्रामीण लाठी डंडे, हसिया, भाला लिए हुए झाड़ियों को पीट रहे थे.
दुधवा लाइव के संस्थापक कृष्ण कुमार मिश्र व् अन्य पत्रकार साथियों के साथ ग्रामीणों को यह बताने की सफल कोशिश की अजगर से किसी तरह का कोई नुकसान नहीं और न ही यह जहरीला है, आखिरकार ग्रामीणों ने साउथ खीरी वन विभाग की मदद के लिए आगे आये, और आस पास रहने वाली जन-जाती के लोगों को भी बुलवाया गया, जिन्हें वन्य जीवन का अनुभव है, दुधवा लाइव प्रोजेक्ट के सदस्यों ने लोगों को अजगर पर किसी तरह के धार दार हथियार का इस्तेमाल करने से मना किया, और जीव के प्रति सहिष्णुता बरतने की भी गुजारिश की.
कुछ जागरूक ग्रामीणों ने उस अजगर को तमाम कवायदों के बाद एक जूट के बोरे में कैद कर वन विभाग को सौप दिया ताकि उसे खीरी के किसी सुरक्षित जंगल में छोड़ा जा सके.
दरअसल एक ग्रामीण के मकान के पिछले हिस्से में मौजूद आम की पुरानी बाग़, जिसमे तमाम तरह की झाड़ियाँ उगी थी और वे पूरी तरह से कई प्रकार की बेलों से ढकी हुई थी, इन्ही बेलों के नीचे की भुरभरी व् नाम मिट्टी में रहता था ये अजगर, यकीनन इसकी प्रजाति के अन्य सदस्यों की मौजूदगी भी यहाँ संभव है, पिछले तीन दिनों में हुई बारिश के बाद सूरज की चमक ने इस सांप को भी धूप सेकने के लिए मजबूर कर दिया, नतीजतन यह अजगर जमीन से निकलकर मंदिर नुमा आकृति की झाड़ियों पर चढ़कर बैठ गया. ग्रामीणों की नज़र में आने के बाद इसे यहाँ से हटाने या मार देने की बात कही जाने लगी. और यही वजह रही इसके इस आवास से इसके निष्कासन की.
दुधवा लाइव के संस्थापक कृष्ण कुमार मिश्र ने बताया की यह भारतीय अजगर है जिसका नाम पाइथन मालुरस है, इसे ब्लैक टेल्ड पाइथन या इंडियन रॉक पाइथन भी कहते है,यह तीन मीटर तक लंबा हो सकता है, यह बहुत अच्छा तैराक, वृक्षों पर चढ़ने का कौशल, व् नम भूमियों में निवास खासतौर पर किसी तालाब या नदी के किनारे, चलने में सुस्त और सामन्यता: यह हमलावर नहीं होता भले इस पर हमला हो रहा हो, इसके इसी व्यवहार से इसका शिकार आसानी से हो जाता है, देश व् विदेश में इसकी खाल व् मांस की तस्करी इसके शिकार की वजह है, यह १०० से अधिक अंडे देता है, एक अजगर की उम्र १५ वर्ष से भी अधिक हो सकती है, और भोजन के लिए यह पक्षियों, स्तनधारी छोटे जीवों, चूहे आदि व् मेढक आदि का भी शिकार करता है. भारतीय वन्य जीव अधिनियम १९७२ के तहत अज़गर को सेड्युल १ के तहत सरक्षित श्रेणी में रखा है, इसका शिकार पूर्णतया प्रतिबंधित है और इसके सरंक्षण पर विशेष बल दिया जा रहा है, आई यूं सी एन ने इसे खतरे में पड़ी प्रजातियों के नज़दीक की श्रेणी में रखा हुआ है.
कुलमिलाकर एक खूबसूरत जीव की जिन्दगी ग्रामीणों व् जागरूक लोगों के प्रयास से सुरक्षित रही, अब इसका जीवन इस बात पर निर्भर करता है की साउथ खीरी वन प्रभाग के लोग इसे इसके प्राकृतिक आवास वाली परिस्थितियों में छोड़ेगे या किसी भी जंगल में किसी भी स्थान पर रिहा कर देंगे, साथ ही गौरतलब यह भी है की उस नए स्थान पर यह अपने आप को अनुकूलित कर पायेगा या नहीं .......
दुधवा लाइव डेस्क
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