प्रवासनामा एक बहुत सुन्दर शब्द ...असल में हम सभी प्रवासी ही तो है। धरती पर इंसान और जानवर में फर्क इतना है की सभ्यता के विकास के साथ इंसान ने ठहरना सीख लिया एक जगह वजह थी कृषि का सृजन जिसे इंसानी दिमाग ने धीरे धीरे विकसित किया और आज चरम पर आकर वैज्ञानिक प्रयोगों और अतिउत्पादन की लालसाओं ने कृषि की बुनियाद को खोखला कर दिया नतीजतन हमारी बुनियादी जरूरतें भी प्रवासी हो गयी। हम एक जगह से दूसरी जगह उसी सदियों पुराने आदमी की आदिम प्रवृत्ति को दोहराने लगे फर्क बस इतना है की तब संसाधनों से भरी धरती का दोहन हम अपने और अपने परिवार के लिए करते थे और अब हम दूर दूर जाकर जल जंगल जमीन को खोजकर उसका व्यापार करते है! समय दोहरा रहा है खुद को और हम भी प्रक्रियाओं के दोहराव में है पर एक लालची करुनाहीन शिकारी की तरह जिसकी हवस अंतहीन है।
धरती को नोचता खसोटता ये इंसान जिसकी शक्ल तो काफी कुछ आदिम मनुष्य से मिलती है पर मौजूदा आदमी जो इंसानियत का आविष्कार करने के बाद खुद को इंसान कहता आया है इसकी इंसानियत की परिभाषाएं बदली हुई...
प्रवास धरती के जीवों की मूल प्रवत्तियों में से एक है और जो उस जीव के जीने और अपनी नस्ल को वजूद देने के लिए एक बुनियादी जरूरत रही है। आदमी की इस कहानी में बड़े खूबसूरत प्रवासों का जिक्र है बापू को ही ले तो साउथ अफ्रीका में प्रवास के कारण क्रान्ति का बिगुल बजा। भारत भूमि में ऋषियों के जगह जगह प्रवास कर शिक्षा और नैतिकता का प्रसार और प्रचार हुआ। महावीर और गौतम के प्रवासों ने भारत भूमि के कोने कोने में शिक्षा शान्ति और प्रेम का प्रादुर्भाव किया।
पशु पक्षी बाघ तितली सभी जीव अपनी जरूरतों की खातिर प्रवास करते है विभिन्न स्थानों पर प्रकृति से कुछ लेते है तो परागण और बीज प्रकीर्णन की प्रक्रियाओं में सहयोग के साथ साथ वहां के जैविक संतुलन में भी अपनी भूमिका निभाते है।
बस प्रवासन की कहानियों के वे दस्तावेज तैयार करने है प्रवास नामा में जो इस बात को समझा सके की हम धरती के प्रवासी जिन जिन जगहों पर प्रवास करते है तो उस जगह की प्राकृतिक संपदा का कितना शोषण करते है और हमारी कितनी सकारात्मक भूमिका होती है प्रकृति के लिए। और हाँ उन चेहरों को भी बेनकाब कर यह सुनश्चित किया जाए की जो बुनियादी जरूरतों के अलावा जल जंगल जमीन का सौदा करते है उन सौदागरों की भी एक फेहरिस्त तैयार हो।
वसुंधरा के हम सभी प्रवासियों को अब प्रवास नामा लिखना होगा ताकि सनद रहे की हमने जीने की जरूरतों से अलाहिदा इस धरती को कितना नोचा है और अगर कोइ सज़ा मुक़र्रर हो सके तो इन अपराधियों को जरूर हिरासत में ले अन्यथा एक दिन हम जीने के लिए पानी की बूँद बूँद और हरियाली के टुकड़ों की खातिर लड़ते लड़ते ख़त्म हो जायेंगे और इस पश्चाताप के साथ की जहां हमें प्रवास मिला पानी मिला अन्न मिला जीने का सब सामान, हमने उस धरती को बंजर कर दिया और बंजर जमीनों में बीज नहीं उगते...
प्रवास नामा में प्रकृति कृषि और आदम सभ्यता की कहानियों का सुन्दर दस्तावेजीकरण हो और जिससे हम और हमारी सरकारे कुछ सीख सके और हमारी वसुंधरा की हरियाली में इजाफा हो बस इसी आशा के साथ प्रवास नामा के अतुलनीय सफर को शुभकामनाएं।।।।
कृष्ण
(यह लेख बुंदेलखंड से प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका "प्रवासनामा" के नवम्बर अंक में प्रकाशित हो चुका है)
संपादक की कलम से........
कृष्ण कुमार मिश्र
editor.dudhwalive@gmail.com
संस्थापक संपादक
दुधवा लाइव पत्रिका व् दुधवा लाइव रेडियो
बहुत ही सटीक, सुगढ़ और महत्वपूर्ण लेख के लिए बहुत धन्यवाद!!...आज के समय में जहाँ प्रकृति और मनुष्य के रिश्तों के सारे मानक ही बदल दिए जा रहें हैं...प्रकृति और मनुष्य दोनों को ही उजाड़ने के लिए ही व्यवस्थित नीतियाँ तय की जा रहीं हैं, सारे सम्बन्धित अधिनियम और तमाम क़ानून बदले जा रहें हैं; वहीं आशा की किरण बन जाते हैं आप जैसे लोग!!...प्रकृति को बचाए रखने, सुरक्षित रखने की अपनी ये मुहीम व क़वायद इसी तरह बदस्तूर जारी रखिए!!..दुधवा लाइव और आपको आने वाले समय और तमाम चुनौतियों के लिए "लाइवली" शुभकामनाएं!!...
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