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International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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Nov 7, 2014

पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्वासन की कहानी

 पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रवेश द्वार
गौरवशाली अतीत की ओर लौटा पन्ना टाइगर रिजर्व 

बाघ पुर्नस्थापना की पहली बाघिन टी - 1 ने चौथी बार दिया शावकों को जन्म 

पांच वर्ष के भीतर ही बाघों की संख्या पहुंची शून्य से तीस के पार 

(पन्ना, 4 नवम्बर - 2014) म.प्र. का पन्ना टाइगर रिजर्व अपने गौरवशाली अतीत की ओर तेजी के साथ लौट रहा है. यहां बाघों की वंशवृद्धि में अहम भूमिका निभाने वाली बाघिन टी - 1 ने चौथी बार शावकों को जन्म दिया है. पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में इन नन्हें मेहमानों के आगमन से यहां बाघों की संख्या तीस के पार जा पहुंची है. यह चमत्कारिक उपलब्धि यहां पर पांच वर्ष के भीतर हासिल हुई है जो अपने आप में एक मिशाल है. 
उल्लेखनीय है कि चौथी बार शावकों को जन्म देने वाली बाघिन टी - 1 पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना की पहली बाघिन है, जिसे मार्च 2009 में बांधवगढ़ से पन्ना लाया गया था. बाघ विहीन पन्ना टाइगर रिजर्व में सबसे पहला कदम इसी बाघिन के पड़े थे, जो बहुत ही शुभ और फलदायी साबित हुए. क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व आर.श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि बाघिन टी - 1 के द्वारा ठीक एक माह पूर्व चौथी बार शावकों को जन्म दिए जाने की पुष्टि अनुश्रवण के आधार पर हुई है. इस बाघिन के अनुश्रवण दल द्वारा गत 3 नवम्बर रविवार को मंडला वन परिक्षेत्र में बाघिन टी - 1 के नन्हें शावकों में से एक को प्रत्यक्ष रूप से देखा भी गया है. इतना ही नहीं इस नन्हें बाघ शावक का छायाचित्र लेने में भी कामयाबी मिली है. चौथी बार इस बाघिन ने कितने शावकों को जन्म दिया है अभी इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है. आने वाले दिनों में जब शावक अपनी मां के साथ बाहर निकलने लगेंगे तभी उनकी संख्या का सही आकलन हो पायेगा. 


पन्ना टाइगर रिजर्व के लिए भाग्यशाली साबित होने वाली बांधवगढ़ की इस बाघिन के अतीत पर नजर डालने से पता चलता है कि इस बाघिन ने कभी भी चार से कम शावकों को जन्म नहीं दिया. बाघिन टी - 1 ने पहली बार यहां 19 अप्रैल 2010 में चार शावकों को जन्म दिया था. दूसरी बार फिर इसने चार शावक जन्मे थे तथा तीसरी बार भी इस बाघिन ने अप्रैल 2014 में शावकों को जन्म दिया लेकिन किन्ही अज्ञात प्राकृतिक कारणों के चलते उसने इन शावकों का त्याग कर दिया, परिणाम स्वरूप तीसरी बार बाघिन के कितने शावक हुए, इसका आकलन नहीं हो सका. लेकिन इस बाघिन के इतिहास को दृष्टिगत रखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जन्मे शावकों की संख्या चार हो सकती है. पन्ना टाइगर रिजर्व में आने वाली अन्य दूसरी बाघिने टी-2 व टी-4 ने यहां तीन - तीन बार शावकों को जन्म देकर बाघों की वंश वृद्धि में अपना योगदान दिया है. मालुम हो कि मार्च 2009 में जब पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना शुरू हुई थी, उस समय किसी ने भी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि बाघों का उजड़ चुका संसार यहां इतनी तेज गति से पुन: आबाद हो सकेगा. विशेषज्ञों का भी यही कहना था कि सब कुछ यदि बेहतर रहा तो पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 15 से अधिक होने में कम से कम 10 साल लग जायेंगे. लेकिन प्रकृति ने विशेषज्ञों के सारे आकलन व ज्ञान को झुठलाते हुए पांच साल से भी कम समय में पन्ना टाइगर रिजर्व को उस बुलंदी और मुकाम पर पहुंचा दिया, जहां वह कभी था. निश्चित ही इस अनूठी सफलता का श्रेय पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति व उनके समर्पित सहयोगियों को जाता है जिन्होंने पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से आबाद करने के लिए अथक परिश्रम किया और प्रकृति के उसके सृजन में सहभागी बने. श्री मूर्ति का यह मानना है कि प्रकृति सृजन का कार्य स्वयं करती है, हमने तो सिर्फ अनुकूल माहौल व परिस्थितियां निर्मित करने का काम किया है जिसमें पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारियों व कर्मचारियों सहित इस जिले के नागरिकों का भी सराहनीय योगदान रहा है. 



बाघिन टी - 1 का नन्हा शावक
बढ़ती संख्या से छोटा पडऩे लगा जंगल का दायरा 


यह जानकर सुखद अनुभूति होती है कि पन्ना टाइगर रिजर्व दुनिया का पहला संरक्षित क्षेत्र है जहां बाघों के पुर्नस्थापना का कार्यक्रम इतने कम समय में इतना सफल रहा है. पन्ना का यह संरक्षित वन क्षेत्र बीते चार - पांच सालों में बाघों की नर्सरी के रूप में विकसित हुआ है. यहां जन्म लेने वाले बाघ शावक सुरक्षित और अनुकूल माहौल में पलकर न सिर्फ बड़े होते हैं बल्कि जंगल की निराली दुनिया और कानून से भी परिचित होते हैं. शिकार करने में कुशलता व दक्षता हासिल होते ही मां से अलग होकर शावक स्वच्छन्द रूप से विचरण करते हुए अपने इलाके का निर्धारण करते हैं. बाघों की तेजी से बढ़ती संख्या के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व का सीमित दायरा अब छोटा पडऩे लगा है, नतीजतन यहां के बाघ समूचे बुन्देलखण्ड व बघेलखण्ड के जंगलों में भी विचरण करने लगे हैं. इसी को कहते हैं अच्छे दिनों का आना जिसने बुरे दिनों को विस्मृत कर दिया है. पन्ना के जंगलों की यह समृद्धि और खुशहाली बनी रही, इसी में यहां के रहवासियों की भी समृद्धि और खुशहाली निहित है. 


अरुण सिंह 
aruninfo.singh08@gmail.com

1 comment:

  1. this is a good news for all of bundelkhand but . all of utter pedesh lost her ecology. banda. hamirpur mahoba jalon jhansi lalitpur . lost all type of wildlife. tree only pepar not in forest.

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