आज मौसम में सर्दी नहीं थी,गुनगुनी धूप थी टाइगर हेवेन के गेट पे भी कुछ उदासी छाई दिख रही थी.गेट के अंदर गन्ने की फसल भी मानो इस उदासी में शामिल थी,सामने विली का वो सफ़ेद झक्कास बंगला नुमा मकान की सफेदी भी इस उदासी में शामिल थी.हम आगे बढे तो एक नौकर दौड़ा चला आया पूछा कौन है हमने कहा विली की समाधी पे फूल चढाने आये है..वहाँ पहुचे तो कुछ फूल पहले से उनकी समाधी पे चरणो में रखे थे...दो तीन अगरबत्तियां अधजली लगी थी..हमने भी फूल उनकी समाधी पे चढ़ाये...और उनकी आत्मा की शांति की दुआ की.वहाँ से हट के उस व्यक्ति से पूछा ये फूल कौन चढ़ा गया,वो बोला,अभी थोडा देर पहले श्रीराम और कोई और दो लोग आये थे...मैंने सोचा चलो विली की किसी को तो याद रही.वैसे श्रीराम विली का सबसे नजदीकी परिचारक रहा..है उनके आखिरी दिनों तक...विली की समाधी पे लिखा था "होनेरेरी टाइगर" दुधवा की स्थापना में विली का कितना योगदान रहा किसी से छिपा नहीं है.पर आज उनकी समाधी पे कोई फूल चढाने वाला भी नहीं...वन विभाग ने भी उन्हें भुला दिया...खैर मरने के बाद कौन किसको याद रखता है पर विली को याद रखने वाले आज भी बहुत है...'पाल गेटी' अवार्ड से लेकर 'यशभारती' पाने वाले को उमके ही इलाके के लोग भुला दे,लोग तो लोग सरकारी महकमे भी तो इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी...खैर कुछ नौजवानो ने ही सही विली को याद किया याद ही नहीं उनकी बातो को आगे बढ़ने का संकल्प भी लिया.विली की याद में दुधवा तिराहे पर विली की एक मूर्ति लगवाने की बात भी उठी है,और इसका नाम विली अर्जन सिंह मार्ग रखवाने की मांग भी...चलो कुछ लोग ही इस मुहिम को आगे बढ़ाएंगे...विली हमेशा कहते थे "टाइगर अगर वोट देता होता तो नेता उसकी फिक्र करते" उनकी यादे उनके वाइल्डलाइफ के लिए किये गए कार्य उनको हम सबकी यादो में जिन्दा रखेंगे...दुधवा के संस्थापक सदस्य रहे बिली अर्जन सिंह की आज पुण्य तिथि थी.तीन साल पहले इसी दिन उनके प्राण पखेरू उड़ गए,मरते दम तक जंगल,टाइगर और वाइल्ड लाइफ की हिमायत करने वाले विली हम सबकी यादो में हमेशा जिन्दा रहेंगे.
प्रशांत पाण्डेय ( लेखक मीडियाकर्मी हैं, हिन्दुस्तान एवं जागरण जैसे नामी संस्थानों में अपनी सेवा दे चुके है, मौजूदा वक्त में ई.टीवी में पत्रकार है, लखीमपुर खीरी में निवास, इनसे prashantyankee.lmp@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं .)
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