वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Dec 31, 2013

पद्मभूषण बिली अर्जन सिंह की तृतीय पुण्यतिथि पर उन्हें नमन


टाइगर मैन बिली अर्जन सिंह की याद में .....

कुंवर अर्जन सिंह जिन्हें लोग टाइगर मैन की संज्ञा देते है इस गुजर रहे साल और आने वाले नए वर्ष के पहले रोज यानी एक जनवरी सन २०१४ को बिली अर्जन सिंह की तृतीय पुण्य तिथि है, नव वर्ष के प्रथम दिन सन २०१० में बिली अर्जन सिंह का देहावसान हुआ और इसी रोज से दुधवाकेजंगलों की निगेहबानी करने वाले व्यक्ति के साथ साथ वो कवायदे भी ख़त्म हो गयी जो इस भ्रष्ट व्यवस्था पर सवाल करती थी.

उन्हें याद करने का जो हमारा मंसूबा है, वह तभी पूरा हो सकता है जब उनके मकसदों को हम आगे बढाए और लोग जान सके की बाघ और जंगल का नाता क्या है, बिली ने कहा था की “बाघ नहीं रहेगा तो जंगल नहीं बचेंगे और जंगल बारिश लाते है बिना बारिश के, शुद्ध हवा के इंसान भी नहीं रह सकता, जैसे मुसलमान का अल्लाह है, ईसाई का गाड है, वैसे जंगल का भगवान् शेर है” 

बिली अर्जन सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत के सयुंक्त प्रांत के गोरखपुर में पंद्रह अगस्त सन १९१७ में हुआ, उस वक्त इनके पिता जसबीर सिंह ब्रिटिश भारत के एक बड़े अफसर के तौर पर वहां तैनात थे, सन १९२३ में बिली के पिता बलरामपुर स्टेट के कोर्ट आफ वार्ड नियुक्त किये गए, और यही से बिली के जंगलों से रिश्ते की शुरूवात हुई, बारह वर्ष की आयु में इन्होने एक तेंदुए का शिकार किया और चौदह वर्ष की आयु में बाघ का और यह सिलसिला अनवरत चलता रहा लखीमपुर खीरी के जंगलों की उस रात तक जब बिली ने एक तेंदुए का शिकार किया तभी एक दूसरा तेन्दुआ जीप की लाईट के सामने से गुजर कर मर चुके तेंदुए की तरफ जा रहा था एक तेंदुए की आँखों की चमक देखी और दूसरे की आँखों की बुझी हुई चमक से बिली आहात हुए और उस रोज उन्होंने प्रतिज्ञा ली की प्रकृति के इन खूबसूरत जीवों को जिनका निर्माण मैं नहीं कर सकता तो इन्हें मारने का मुझे कोइ हक़ नहीं है.

बिली को पंद्रह साल की उम्र में फिलैंडर स्मिथ कालेज नैनीताल भेजा गया, जहां जिम कार्बेट ने शिक्षा ग्रहण की थी, इसके बाद इलाहाबाद में इन्होने शिक्षा ली, इन्हें आक्सफोर्ड भेजने की जो तैयारी की गयी थी, विश्व युद्ध शुरू हो जाने के कारण वह योजना साकार रूप न ले सकी, बिली ने ब्रिटिश इन्डियन आर्मी में स्वैच्छिक सेवा के तौर पर भारती ले ली, वर्मा और ईराक तक बिली ने ब्रिटिश भारतीय फौजों के साथ काम किया, पिता की मृत्यु की सूचना मिलने पर वह ईराक से वापस आये और फिर खेती करने के इरादे से खीरी के जंगलों की तरफ रूख किया खीरी के जंगल इनके लिए कोइ अपरिचित जगह नहीं थी, क्योंकि यहाँ बिली कभी अपने मित्रों के साथ शिकार पर आया करते थे,



जसबीर नगर से टाइगर हैवन तक का सफ़र 
सन १९४५ में वो खीरी आये और पलिया के निकट जमीन लेकर खेती करने लगे, इस जगह का नाम इन्होने अपने पिता के नाम पर रखा. एक बार भगवान् पियारी(हथिनी) पर सवार होकर बिली नार्थ खीरी के जंगलों में भ्रमण पर निकली तो सुहेली और नेवरा के मध्य जो स्थान दिखा उसकी रमणीयता ने बिली को प्रभावित किया. यह बात है सन १९४९ की और यही वह जगह थी जहां विश्व प्रसिद्द टाइगर हैवन का प्रादुर्भाव होना था! 
जंगल के मध्य इस जगह को बिली ने अपनी रिहाइश बनाई जो बाद में बाघों और तेंदुओं का घर बना. सन १९७१ में टाइगर हैवन  में दो नए मेहमान आये एक था प्रिंस जो तेंदुआ था और दूसरी थी एली एक कुतिया, यहीं से बिली अर्जन सिंह के प्रयोग की शुरूवात हुई की पालतू जानवरों को जंगल में दुबारा प्राकृतिक व् स्वछंद जीवन जीने के लिए ट्रेंड किया जाए, बाघ और तेंदुओं जैसे शिकारी जानवरों के साथ यह प्रयोग कितने खतरनाक और रोमांचित कर देने वाले थे. 

श्रीमती इंदिरा गांधी और कुंवर अर्जन सिंह 
श्रीमती इंदिरा गांधी के सौजन्य से बिली को दो तेंदुए भेंट के तौर पर मिले जूलियट और हैरियट बिली ने इनके नाम शेक्सपीयर के नाटक के पात्रों पर रखे, इन दोनों तेंदुओं को जंगल में वापस भेजने की बिली की कोशिश कुछ कारणों से आंशिक तौर पर सफलता मिली, हैरियट ने तो बच्चे भी दिए और वह भी जंगल में बिली के घर से दूर, यानी जहां वह पली बड़ी उस जगह को छोड़कर अपने प्राकृतिक आवास में चली गयी, लेकिन उसका व्यवहार अजीब था एक दिन वह अपने बच्चों के साथ टाइगर हैवन वापस आयी, अपने चिरपरिचित स्थान पर, बिली ने फिर उसे सुहेली के पार घने जंगलों में वापस भेजा. इन घटनाओं पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनी जो बहुत विख्यात हुई इस फिल्म का नाम था “द लियोपर्ड कैन नाट चेंज्ड इट्स स्पाट्स”. सन १९७६ में इंग्लैण्ड के चिड़ियाघर से एक बाघिन के शावक को लाने की इजाजत मिली बिली अर्जन सिंह और यह वही बाघिन थी जो तारा के नाम से विख्यात हुई पूरी दुनिया में एवं डा. रामलखन सिंह की किताबों में कुख्यात हुई एक आदमखोर के तौर पर!
   

तारा-एक बाघिन 
बिली अर्जन सिंह जिस तारा को  सन १९७६ में इंग्लैण्ड के टाईक्रास जू से लाये थे, उसका नाम जेन था, वह एक रायल बंगाल टाइगर और साईबेरियन टाइगर का क्रास थी, जब इस बात की पुष्टि हुई तो अर्जन सिंह पर दुधवा के बंगाल टाइगर में  साइबेरियन जीन वाली तारा के जरिये आनुवांशिक प्रदूषण फैलाने का आरोप लगा. 

बिली ने तारा को टाइगर हैवन के प्राकृतिक जंगली माहौल में प्रशिक्षित करना शुरू किया, तारा बड़ी होती गयी, और बिली के अनुशासन की अनदेखी करने लगी, बिली यही तो चाहते थे की तारा अपने जंगली शिकारी स्वभाव को अपना ले, और यही हुआ एक दिन तारा दुधवा के बाघ के साथ चली गयी, बिली के लिए यह वैसे ही था जैसे एक पिता के लिए बेटी का ससुराल जाना, खुशी और गम दोनों एक साथ उपजते है तब! और बेटियां कहा रुकती है हमेशा अपने घर में! 

तारा ने कुछ महीनों बाद दो बच्चों को जन्म दिया, बिली लगातार तारा पर नज़र रखने की कोशिश करते की उनकी पाली हुई यह बाघिन दुधवा के जंगलों के खूंखार बाघों के बीच सुरक्षित है की नहीं, और तारा भी गाहे बगाहे अपने बचपन के घर टाइगर हैवन आ जाती....पर यह आने जाने का सिलसिला बहुत दिनों तक नहीं चला, तारा पूर्ण रूप से दुधवा के जंगल में अपनी जगह बना चुकी थी, तभी जंगल में मानव भक्षण की घटनाएं तेज हो गयी और आरोप तारा के सर लगाए जाने लगे. बिली के प्रयोग को यह सबसे बड़ा धक्का था, कई मानव मौतों के बाद तारा को मारने का  सरकारी फरमान जारी हुआ, और एक बाघिन मारी भी गयी जिसे तारा बताया गया? सच्चाई अभी भी समय के गर्भ में है! मानव भक्षण के दौरान कई टाइगर मार दिए गए अब चाहे वह मानव भक्षी हो या फिर न हो.

दुधवा में तारा की संतति 

खैर बिली साहब मुझसे अंत तक कहते रहे की तारा दुधवा के जंगलों में अपनी कई पीढ़ियों को जन्म देने के बाद प्राकृतिक मौत को प्राप्त हुई.
अभी हाल में दुधवा से बाघों के डी एन ए  सैम्पल लिए गए और उनकी जांच की गयी, जिसमे दुधवा के बाघों में साइबेरियन जीन की पुष्टि हुई?, इनका चेहरा बड़ा, चौड़ी धारियां और शरीर पर ज्यादा सफेदी अपेक्षाकृत बंगाल टाइगर के .....व्यवहारिक तौर पर बिली को जो सफलता मिली अपने प्रयोगों में वह वैज्ञानिक तौर पर भी लगभग पुष्ट हो गयी है, इसी के साथ बिली अर्जन सिंह दुनिया के पहले व्यक्ति हो गए जिन्हों ने बाघों के पुनर्वासन के कार्यक्रम में सफलता पाई.

जब राजकुमारी अमृतकौर ने अर्जन सिंह को बिली कहा...

  अर्जन सिंह  का नाम बिली उनकी बुआ राजकुमारी अमृतकौर का दिया हुआ है, राजकुमारी अमृत कौर महात्मा गांधी की निकटस्थ और आजाद भारत की प्रथम महिला स्वास्थ्य मंत्री बनी, बिली ब्रिटिश भारत की बड़ी रियासत कपूरथला से ताल्लुक रखते है, इनके दादा राजा हरनाम सिंह और परदादा राजा रंधीर सिंह थे.
सन १९२४ में बिली का परिवार नैनीताल गया छुट्टिया मनाने और ये लोग बलरामपुर रियासत के स्टैनली हाल में ठहरे, जहां बिली ने पहली बार जिम कार्बेट को देखा, बिली के प्रेरणा स्रोतों में जिम कार्बेट के अलावा ऍफ़ डब्ल्यू चैम्पियन रहे जो एक वन अधिकारी थे, उनकी किताब “विद अ कैमरा इन टाइगर र्लैंड एंड द जंगल इन सन लाईट एंड शैडो” ने बहुत प्रभावित किया बिली को.


एक मुलाक़ात के दौरान बिली अर्जन सिंह ने मुझसे कहा की तुम तो लिखते हो, ये लिखो की उनके पिता जसबीर सिंह  ब्रिटिश भारत में पहले भारतीय डिप्युटी कमिश्नर थे लखनऊ में, इस बात को आज पहली बार मैं लिख रहा एक बेहतरीन उद्दरण के साथ, एक किताब है “द मेन हू रूल्ड इंडिया” इसके दुसरे खंड में एक फिलिप नाम के अंग्रेज ने कहा है की जसबीर सिंह मेरे पहले डिपुटी  कमिश्नर थे, वो एक फिलासफर, और अच्छे इंसान थे सन १९४५ में उनकी मृत्यु हो जाने पर मुझे ऐसा लगा की मैंने अपने पिता को खो दिया.

पद्मश्री से पद्मभूषण 

बिली साहब को सन १९७५ में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया, सन १९७६ में विश्व प्रकृति निधि द्वारा गोल्ड मैडल दिया गया, सन २००४ में बाघ सरक्षण में उनकी महत्त्व पूर्ण भूमिका होने के कारण वन्य जीवन के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला जे. पाल गेटी अवार्ड मिला. सन २००६ में बिली अर्जन सिंह पद्मभूषण सम्मान से भारत सरकार ने नवाजा, इसी वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार में मुलायम सिंह ने बिली को यश भारती से भी सम्मानित किया. वन्य जीव सरंक्षण में कुंवर् अर्जन सिंह को मिले पुरस्कारों की फेहरिस्त इतनी लम्बी है की कहा जाता है की वन्य जीवन में काम करने वाले बिली ऐसे व्यक्ति है पूरी दुनिया में की इनसे ज्यादा पुरस्कार किसी को नहीं मिले अब तक! 


इन्डियन वाइल्ड लाइफ बोर्ड के सदस्य होने के साथ साथ अर्जन सिंह दुधवा के अवैतनिक वन्य जीव प्रतिपालक रहे जीवन पर्यंत, नार्थ खीरी के विशाल जंगलों को दुधवा राष्ट्रीय उद्यान बनवाने का श्रेय बिली अर्जन सिंह को है, नतीजतन तराई के जंगलों में बाग़ तेंदुओं के अतरिक्त जीव जंतुओं की अनगिनित प्रजातियां सरक्षित हो सकी.

सन २०१० के पहले दिन कुंवर अर्जन सिंह का देहावसान उनके जसबीर नगर के निवास पर हुआ, बाघों का रखवाला और जंगल की निगहबानी करने वाला चला गया, पर अपने बहुत सारे अनुभव हमें दे गए बिली साहब उनके बनायी हुई डगर जो जंगल और उनमे रहने वाले बाघों के सरक्षण की तरफ जाती है उस डगर पर हमारी उगली पकड़कर हमें खडा भी कर दिया है उन्होंने अब हमारी जिम्मेदारी है की उनके सपनो को हम पूरा करे ताकि तराई के जंगलों में बाघ तेंदुए और जंगल सभी कुछ महफूज रह सके.


कुंवर अर्जन सिंह ने अपने वन्य जीवन के अनुभवों को लिखा वो तमाम किताबों के रूप में हमारे बीच मौजूद है. 
तारा ए  टाइग्रेस 
एली एंड द बिग कैट 
प्रिंस आफ कैटस 
टाइगर टाइगर! 
टाइगर हैवन
द लीजेंड आफ द मैनईटर   
ए टाइगर स्टोरी 
वाचिंग इंडियाज वाइल्डलाइफ़ 

बिली अर्जन सिंह पर लिखी गयी कुछ प्रसिद्द किताबें 
आनरेरी टाइगर 
टाइगर वाला 
टाइगर आफ दुधवा 

बिली अर्जन सिंह के बाघों एव तेंदुओं के साथ किए गए प्रयोगों पर बनी फ़िल्में 
टाइगर टाइगर 
द लेपर्ड कैन नाट चेंज्ड इट्स स्पाट्स 
फायर इन थाइन आईज  



सम्पादक की कलम से !

      







कृष्ण कुमार मिश्र 
(editor.dudhwalive@gmail.com)




2 comments:

  1. His Credit always count as he is true founder of Dudhwa tiger reserve. The Real hero of wildlife and always remembered!

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  2. जब उनके मकसदों को हम आगे बढाए और लोग जान सके की बाघ और जंगल का नाता क्या है, बिली ने कहा था की “बाघ नहीं रहेगा तो जंगल नहीं बचेंगे और जंगल बारिश लाते है बिना बारिश के, शुद्ध हवा के इंसान भी नहीं रह सकता, जैसे मुसलमान का अल्लाह है, ईसाई का गाड है, वैसे जंगल का भगवान् शेर है”

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