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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Nov 22, 2013

…अब महान जंगलों से गूँज रही है आवाज

लोगों के संघर्ष को आवाज देता रेडियो संघर्ष
सीजीनेट की सहायता से ग्रीनपीस ने शुरू किया सामुदायिक मोबाईल रेडियो
विधानसभा चुनावों के समय लोगों को मिली आवाज
 नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के चुनावी मौसम में सभी राजनीतिक दलों के नेता अपनी घोषणाएँ और वादे मीडिया के सहारे लोगों तक पहुंचाने में लगे हैं। वहीं दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के महान जंगल क्षेत्र (सिंगरौली) में लोग अपनी आवाज और सरोकार नेताओं और अफसरों तक पहुंचाने के लिए सामुदायिक रेडियो जैसे नये माध्यम का सहारा ले रहे हैं। महान जंगल क्षेत्र में सीजीनेट स्वर की सहायता से ग्रीनपीस ने रेडियो संघर्ष के नाम से एक नये सामुदायिक मोबाईल रेडियो की शुरुआत की है। सदियों से अपनी जुबान बंद रखने वाले इस क्षेत्र के लोगों को रेडियो संघर्ष ने अपनी आवाज उठाने का माध्यम दे दिया है। चार महीने के सफल परिक्षण के बाद रेडियो संघर्ष को औपचारिक रुप से शुरू कर दिया गया है।
आम लोगों की आवाज
सिंगरौली जिले में बुधेर गांव की रहने वाली अनिता कुशवाहा को अपने विभाजित जमीन की रसीद और कागजात नहीं मिले हैं। अनिता ने रेडियो संघर्ष में फोन करके शिकायत दर्ज कराया है। उसने अपने गांव के पटवारी का नाम और मोबाईल नंबर भी रिकॉर्ड कराया। साथ ही, रेडियो संघर्ष के लोगों से अपील किया है कि वे इस मामले में उसकी मदद करें।

अनिता एक उदाहरण भर है। भ्रष्टाचारपानीबिजलीबीपीएल में गड़बड़ी से लेकर जंगल पर अपने अधिकार तक गांव के लोग अपनी हर समस्या को रेडियो संघर्ष के माध्यम से दर्ज करवा रहे हैं। रेडियो संघर्ष को महान जंगल क्षेत्र के गांवों में आम आदमी की समस्याओं को उठाने वाले उपकरण के रुप में लोकप्रियता मिल रही है। इसका उद्देश्य स्थानिय प्रशासननीति-निर्धारक तथा गांव वालों के बीच एक सेतु की तरह काम करना है।

ग्रीनपीस की अभियानकर्ता प्रिया पिल्लई कहती हैं, देश के सुदूर इलाकों में रहने वाले  आदिवासियों और समाज के शोषित तबकों की आवाज कभी नीति-निर्धारकों के पास नहीं पहुंच पाती। रेडियो संघर्ष दोनों को एक संचार माध्यम मुहैया करा रहा है। रेडियो संघर्ष एक ओर जहां लोगों को जागरुक करने का काम कर रहा है वहीं दूसरी तरफ नीति-निर्धारकों को सीधे आम लोगों की आवाज में उनकी समस्याओं के बारे में जानने का मौका भी दे रहा है। महान में रेडियो संघर्ष के आरंभ होने के बाद से लोग अपने अधिकार (वनाधिकार कानूनग्रामसभा मे अधिकारको लेकर जागरुक हुए हैं। अब वे अपने क्षेत्र में निष्पक्ष और सही तरीके से कानूनों को लागू करवाने के लिए खड़े हो रहे हैं

मिस कॉल करें और आवाज रिकॉर्ड कराएं, सुनें
रेडियो संघर्ष नागरिक पत्रकारिता को नये आयाम दे रहा है। इसके माध्यम से गांव वाले अपनी समस्याओं को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। गांव वालों को एक नंबर दिया गया है जिसपर उन्हें मिसकॉल देकर अपनी आवाज रिकॉर्ड करानी होती है। यह एक बहुत ही आसान उपकरण है। 09902915604 पर फोन कर मिस कॉल देना होता है। कुछ सेकेंड में उसी नंबर से फोनकरने वाले को फोन आता है। फोन उठाने पर दूसरी तरफ से आवाज सुनायी देती है- अपना संदेश रिकॉर्ड करने के लिए दबाएंदूसरे का संदेश सुनने के लिए दबाएं। रिकॉर्ड किए गए संदेश को मॉडरेटर द्वारा चुना जाता है जिसे उसी नंबर पर कॉल करके सुना जा सकता है। साथ हीचुने हुए संदेशों कोपर भी अपलोड किया जाता है।

जूलाई से अब तक रेडियो संघर्ष के पास रोजाना छह से सात कॉल एक दिन में आते हैं। अभी तक 572 कॉल्स आ चुके हैं जिनमें कुछ खाली मैसेज वाले भी शामिल हैं। इनमें 49.5% कॉल्स वनाधिकार कानून के उल्लंघन, 32.8% कॉल्स घूस मांगे जाने की शिकायत को लेकर है। 10.3% कॉल्स गांव वालों की मूलभूत समस्याओं मसलनसड़कराशन कार्डबीपीएल कार्डअस्पतालस्कूलपानीबिजली आदि की समस्याओं को लेकर है। 7.6% कॉल्स विस्थापन पर भी है। सबसे ज्यादा फोन कॉल्स मैसेज को सुनने के लिए आ रहे हैं। अभी तक 3545 लोगों ने संदेश सुनने के लिए कॉल किया है। रोजाना औसतन 34 कॉल्स मैसेज सुनने वालों के आते हैं।

      इसके लिए 25 लोगों को बतौर नागरिक पत्रकार प्रशिक्षण भी दिया गया है। ये नागरिक पत्रकार लोगों को कॉल करने तथा अपनी शिकायत दर्ज कराने में मदद करते हैं। अमिलिया गांव के विरेन्द्ग सिंह भी उन 25 लोगों में से एक हैं। वे कहते हैं कि मैं लोगों को अपनी बात रिकॉर्ड करने के साथ-साथ दूसरों की समस्याओं को सुनने में भी मदद करता हूं। जंगल के महुआ पेड़ों की अवैद्य मार्किंग हो या फिर ग्राम सभा में पारित फर्जी प्रस्ताव हर मामले में विरेन्द्र गांव वालों को रेडियो संघर्ष में अपनी आवाज रिकॉर्ड कराने में मदद करते हैं

पृष्ठभूमि
विरेन्द्र महान संघर्ष समिति के भी सदस्य हैं। 11 गांव के लोगों द्वारा बनी यह समिति महान जंगल पर  अपने वनाधिकार लेने के लिए आंदोलनरत हैँ। महान जंगल को महान कोल लिमिटेड (एस्सार व हिंडाल्को का सुंयक्त उपक्रम) को कोयला खदान के लिए आवंटित करना प्रस्तावित है। रेडियो संघर्ष की टीम महान संघर्ष समिति के साथ काम कर लोगों को वनाधिकार कानून के बारे में जागरुक कर रही है। रेडियो संघर्ष की टीम ने महान संघर्ष समिति के साथ मिलकर 11 गांवों में यात्रा का आयोजन किया था। इस दौरान लोगों को सामुदायिक रेडियो के बारे में प्रशिक्षित भी किया गया।

महान जंगल
प्राचीन साल जंगल वाला महान के क्षेत्र को कोयला खदान के लिए देना प्रस्तावित है। इस कोयला खदान को पहले चरण का निकास मिल चुका है लेकिन दूसरे चरण के निकास के लिए पर्यावरण व वन मंत्रालय ने 36 शर्तों को भी जोड़ा है। इन शर्तों में वनाधिकार कानून 2006 को लागू करवाना भी है। महान जंगल पर 14 गांव प्रत्यक्ष तथा करीब 62 गांव अप्रत्यक्ष रुप से जीविका के लिए निर्भर हैं। 2001 की जनगणना के अनुसार इन गांवों में 14,190 लोग जिनमें 5,650 आदिवासी समुदाय के लोग हैं प्रभावित होंगे। महान में कोयला खदान के आवंटन का मतलब होगा इस क्षेत्र में प्रस्तावित छत्रसाल, अमिलिया नोर्थ आदि कोल ब्लॉक के लिए दरवाजा खोलना, जिससे क्षेत्र के लगभग सभी जंगल तहस-नहस हो जायेंगे।

सौजन्य से-
अविनाश कुमार, ग्रीनपीस 
avinash.kumar@greenpeace.org

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