मैक्सिकन वाइन
एक फूल जो डायबिटीज जैसी बीमारी में फायदेमंद है.
कोरल वाइन: जिसे क्वींस क्राउन या लव वाइन भी कहते है, एक मैक्सिकन लता है, जो अपने गुलाबी फूलों के लिए जानी जाती है, यह सुर्ख गुलाबी सुन्दर पुष्प गुच्छ ही कारण बने, इस प्रजाति के फैलाव का, इंसान के प्रकृति की इस सुन्दर आभा को इंसानी दिमाग की रूमानियत ने इसे धरती के तमाम भागों में खिलने का मौक़ा दिया, और अब इस प्रजाति ने लोगों के बगीचों से बाहर निकल कर अपनी खुद की जमीन तैयार कर ली, इन खिले हुए फूलों का नज़ारा गाहे-बगाहे आप सड़क के किनारों, नदियों के आस-पास, और पारती पडी भूमियों पर उग आये झुरमुटों में भी देख सकते है, यह कुछ इस तरह से है की जैसे इंसान अपने शौक के लिए तमाम जीव-जंतुओं को दुनिया के कई हिस्सों से लाकर पालता है और गुलामों की तरह उस जीव या वनस्पति पर अपना एकाधिकार कायम करता है, ताकि अपने ही समाज में वो इन अजब चीजों का प्रदर्शन कर खुद को अव्वल साबित कर सके, पर प्रकृति तो स्वतंत्र और स्वछंद होती है और उसमे इतनी कूबत भी होती है की वह किसी भी परिस्थित में कही भी जीवन को जीवंत बना ले, प्रकृति कभी कैद में नहीं रह सकती, उसमें मौजूद सभी जीवधारियों में अपने जीव-द्रव्य के विस्तार की अकूत ताकत होती है, इसका उदाहरण है रईसजादों द्वारा लाये गए विदेशी प्रजाति के कुत्ते और बगीचों के लिए विदेशी नस्ल के पौधे!
आज वे विदेशी कुत्तों और विदेशी पौधों की तमाम प्रजातियाँ सड़कों पर और सड़कों के किनारे आप सब से बावस्ता हो जायेंगी! प्रकृति का यही गुण उसे सर्वव्यापी बनाता है कठिन से कठिन हालात में भी. कुछ ऐसी ही कहानी रही है इस फूल की, यह मैक्सिको देश की प्रजाति भारत में किसी शौक़ीन अफसर या राजा-महराजा के द्वारा लाई गयी होगी और इस खूबसूरती ने बगीचों की चारदीवारियों को तोड़ कर आजाद धरती को अपना आशियाना बना लिया, और इन विदेशी प्रजातियों ने महलों की कैद से अलाहिदा जब खुद की जमीन तलाशी तो इन्हें विदेशी आक्रामक प्रजातियों के अमले में दर्ज किया जाने लगा, भला धरती भी कही भेद करती है तेरे मेरे में, और न ही उसके लिए ये भौगोलिक रेखाएं मायने रखती है, जिसे इंसानों ने खींचा. जिस प्रजाति को धरती ने अपना लिया हो फिर वह काहे की विदेशी या देशी! धरती के आगोश में सभी बराबर है बस उन प्रजातियों में कूबत हो अपनी जगह में मुस्तकिल होने की.
एक फूल जो डायबिटीज जैसी बीमारी में फायदेमंद है.
कोरल वाइन: जिसे क्वींस क्राउन या लव वाइन भी कहते है, एक मैक्सिकन लता है, जो अपने गुलाबी फूलों के लिए जानी जाती है, यह सुर्ख गुलाबी सुन्दर पुष्प गुच्छ ही कारण बने, इस प्रजाति के फैलाव का, इंसान के प्रकृति की इस सुन्दर आभा को इंसानी दिमाग की रूमानियत ने इसे धरती के तमाम भागों में खिलने का मौक़ा दिया, और अब इस प्रजाति ने लोगों के बगीचों से बाहर निकल कर अपनी खुद की जमीन तैयार कर ली, इन खिले हुए फूलों का नज़ारा गाहे-बगाहे आप सड़क के किनारों, नदियों के आस-पास, और पारती पडी भूमियों पर उग आये झुरमुटों में भी देख सकते है, यह कुछ इस तरह से है की जैसे इंसान अपने शौक के लिए तमाम जीव-जंतुओं को दुनिया के कई हिस्सों से लाकर पालता है और गुलामों की तरह उस जीव या वनस्पति पर अपना एकाधिकार कायम करता है, ताकि अपने ही समाज में वो इन अजब चीजों का प्रदर्शन कर खुद को अव्वल साबित कर सके, पर प्रकृति तो स्वतंत्र और स्वछंद होती है और उसमे इतनी कूबत भी होती है की वह किसी भी परिस्थित में कही भी जीवन को जीवंत बना ले, प्रकृति कभी कैद में नहीं रह सकती, उसमें मौजूद सभी जीवधारियों में अपने जीव-द्रव्य के विस्तार की अकूत ताकत होती है, इसका उदाहरण है रईसजादों द्वारा लाये गए विदेशी प्रजाति के कुत्ते और बगीचों के लिए विदेशी नस्ल के पौधे!
आज वे विदेशी कुत्तों और विदेशी पौधों की तमाम प्रजातियाँ सड़कों पर और सड़कों के किनारे आप सब से बावस्ता हो जायेंगी! प्रकृति का यही गुण उसे सर्वव्यापी बनाता है कठिन से कठिन हालात में भी. कुछ ऐसी ही कहानी रही है इस फूल की, यह मैक्सिको देश की प्रजाति भारत में किसी शौक़ीन अफसर या राजा-महराजा के द्वारा लाई गयी होगी और इस खूबसूरती ने बगीचों की चारदीवारियों को तोड़ कर आजाद धरती को अपना आशियाना बना लिया, और इन विदेशी प्रजातियों ने महलों की कैद से अलाहिदा जब खुद की जमीन तलाशी तो इन्हें विदेशी आक्रामक प्रजातियों के अमले में दर्ज किया जाने लगा, भला धरती भी कही भेद करती है तेरे मेरे में, और न ही उसके लिए ये भौगोलिक रेखाएं मायने रखती है, जिसे इंसानों ने खींचा. जिस प्रजाति को धरती ने अपना लिया हो फिर वह काहे की विदेशी या देशी! धरती के आगोश में सभी बराबर है बस उन प्रजातियों में कूबत हो अपनी जगह में मुस्तकिल होने की.
जब पहली बार २२ मई २०१३ को इन गुलाबी पुष्पों को देखा लखनऊ के काल्विन तालूकेदार्स कालेज के कैम्पस के किनारे एक झुरमुट में तमाम प्रजातियों की हरियाली के मध्य गुलाबी फूलों की मालाओं की लडियां, तो कौतूहल बस इसे सेलफोन कैमरे में कैद कर लिया की चलो इत्मीनान से इस फूल से जान पहचान की जायेगी.
यह पालीगोनैसी परिवार से है जिसका वैज्ञानिक नाम एंटीगोनन लेप्टोपस है, यह मैक्सिको की एक लता है जो अब उष्ण-कटिबंधीय देशों में अपनी ख़ूबसूरती बिखेर रही है, भारत में भी इसने अपनी जमीन तलाश ली है, और तमाम पहले से मौजूद वनस्पतियों के बीच घुल मिल गयी है. इस फूल की कहानी भी फूलों के शौक़ीन लंबरदारों के बगीचों की कैद से बाहर आने की है, और अब यह वनस्पति अपना फैलाव खुली जमीनों पर कर चुकी है,
इस प्रेम लता की खासियत यह है की यह अन्य प्रजातियों के मध्य कमजोर मिट्टी में भी उग जाने की क्षमता रखती है, इसके मुलायम तने से निकली छल्लेदार प्रतानें इसे झाड़ियों दरख्तों और दीवारों पर ऊचाई तक ले जाती है जहां इसे पर्याप्त मात्रा में सूरज की रोशनी हासिल हो सके, इसके फूलों की सूरत जितनी ख़ूबसूरत है उससे कही ज्यादा इसकी शीरत!
लव वाइन या प्रेम लता के फूलों में डायबिटीज जैसी बीमारी को ठीक करने के तत्व मौजूद है, अभी तक इसके फूलों को खाने के तौर पर विभिन्न देशों में उपयोग में लाया जाता रहा है, पास्ता में इन फूलो का विशेष महत्त्व है, साथ ही इसके बीजों को भून कर उनके छिलके उतार कर खाने में प्रयुक्त होता है, और इसकी जड़ और पत्तियों का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता रहा, प्रेम लता की जड़ के रस का इस्तेमाल दर्द निवारक व् सूजन दूर करने में व् पत्तियों का रस खांसी, फ़्लू और सूजन दूर करने में किया जाता है,
लव वाइन के पुष्पों की सुन्दरता के साथ साथ इस वनस्पति के औषधीय गुण हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी है, बशर्ते हम इस वनस्पति को अपने आस-पास उगने का मौक़ा दे और इसे सरंक्षण प्रदान करे बजाए इसके की इसे विदेशी आक्रामक प्रजाति मानकर इसकी खूबियों को नकार दे.
उत्तर भारत में इस सुन्दर फूलों वाली वनस्पति को लखनऊ के काल्विन तालूकेदार्स कालेज की चारदीवारी के बाहर प्राकृतिक तौर पर उगा हुआ देखा है, इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय पार्कों, उद्यानों, जंगलों व् गाँव देहात में इसे नहीं देखा गया, मायने साफ़ है की सजावटी फूलों के तौर पर लाई गयी इस प्रजाति की अपनी जमीन तैयार करने की अभी शुरूवात भर है.
तो चलिए फिर इन फूलों से दोस्ती की जाए !
कृष्ण कुमार मिश्र
krishna.manhan@gmail.com
(आजकल फूलों से दोस्ती की जा रही है)
लव वाइन के पुष्पों की सुन्दरता के साथ साथ इस वनस्पति के औषधीय गुण हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी है, बशर्ते हम इस वनस्पति को अपने आस-पास उगने का मौक़ा दे और इसे सरंक्षण प्रदान करे बजाए इसके की इसे विदेशी आक्रामक प्रजाति मानकर इसकी खूबियों को नकार दे.
उत्तर भारत में इस सुन्दर फूलों वाली वनस्पति को लखनऊ के काल्विन तालूकेदार्स कालेज की चारदीवारी के बाहर प्राकृतिक तौर पर उगा हुआ देखा है, इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय पार्कों, उद्यानों, जंगलों व् गाँव देहात में इसे नहीं देखा गया, मायने साफ़ है की सजावटी फूलों के तौर पर लाई गयी इस प्रजाति की अपनी जमीन तैयार करने की अभी शुरूवात भर है.
तो चलिए फिर इन फूलों से दोस्ती की जाए !
कृष्ण कुमार मिश्र
krishna.manhan@gmail.com
(आजकल फूलों से दोस्ती की जा रही है)
bahut baddhiya column. thanks a lot.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर जानकारी इन फूलों की तरह ।
ReplyDeleteउम्दा जानकारी अवश्य ही इसे खोजेंगे।कृपया कुछ जानकारी तुरही लता पर भी साझा कीजिये ।
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