यूकेलिप्टस बनाम "नींबू वाली यूकेलिप्टस"
गुलाब से चमेली की खुशबू आये...और नीम में हो मिठास... कुछ ऐसा ही घटित हुआ मेरे साथ जब कुछ वर्ष पहले अपने साथियों के साथ मैं बैठा था जिले की सबसे मुख्य प्रशासकीय स्थल में, जी हाँ हमारे शहर लखीमपुर खीरी की कलेक्ट्रेट, जहां साहिब बहादुरों के दफ्तरों की जद में एक कैंटीन है , कभी यहीं चाय पीने का सिलसिला रोज दर रोज होता था हमारा, एक रोज जमीन पर पड़े एक पत्ते को उठाकर यूं की आदतन नाक के पास ले गया तो मामला चौकाने वाला था, उस पत्ते से नींबू जैसी खुशबू, दिमाग ने जीवन भर के पढ़े लिखे का लेखा जोखा एक पल में नाप-तौल डाला सूरत मिलाने वाले साफ्टवेयर की तरह, पर कही कोइ जानकारी नहीं, परिणाम शून्य! मैं चुपचाप वहां से चला आया बिना किसी को कुछ बताए, और वनस्पति विज्ञान के रहस्यों के परदे पलटने लगा, आखिर पता चल गया की यह नीबू सी खुशबू यूकेलिप्टस में कैसे ?
इस तरह प्रकृति की एक और अनजान पहेली से बावस्ता हुआ मैं, दरअसल यूकेलिप्टस की आदिम जमीन आस्ट्रेलिया महाद्वीप है, इसकी ७०० से ज्यादा प्रजातियाँ मौजूद है धरती पर, ब्रिटिश उपनिवेशों के दौरान यह प्रजाति दुनिया के तमाम भू-भागों में ले जाई गयी, विभिन्न मानवीय जरूरतों एवं आकर्षण के कारण, जिनमे भारत का नीलगिरी क्षेत्र में ब्रिटिश उपनिवेश के समय यूकेलिप्टस का पौधारोपण शुरू किया गया था, इसकी पत्तियों से निकाला गया तेल "नीलगिरी तेल" के नाम से मशहूर हुआ. वैज्ञानिक विवरण में जाए तो यह एन्जिओस्पर्म है, और दुनिया का सबसे बड़ा एन्जियोस्पर्म (आवृतबीजी) यूकेलिप्टस ही है. इसका नाम यूकेलिप्टस कैसे पडा यह भी रोचक जानकारी है, लैटिन भाषा में यू के मायने होते है "पूरी तरह से" या "अच्छे से" और "केलिप्टस" के मायने है "ढका हुआ". यूकेलिप्टस के पुष्प खिलने से पहले एक गोल ढक्कन नुमा सरंचना में बंद होते है, और जब पुंकेसर वृद्धि करते है तो यह कैप नुमा ढक्कन निकल जाता है और पीले-सफ़ेद व् लाल रंग पुष्प खिल उठते हैं. यूकेलिप्टस झाडी नुमा और लम्बे वृक्षों के रूप में देखे जा सकते है, भारत में तमिलनाडू की नीलगिरी पहाड़ियों पर राज्य के जंगलात के एक अफसर सर हेनरी रोह्ड्स मॉर्गन ने सन १८३० में यूकेलिप्टस का वृक्षारोपण करवाया वजह थी चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों को जलाऊ लकड़ी मुहैया कराना, बाद में यही से नीलगिरी तेल का उत्पादन शुरू हुआ इन यूकेलिप्टस के वृक्षों से.
यूकेलिप्टस के वैश्विक इतिहास को देखे तो सबसे पहले ब्रिटिश साम्राज्य के नेवी कैप्टन जेम्स कुक जो एक महान नेवीगेटर थे जिन्होंने प्रशांत महासागर की तीन साहसिक यात्राएं की और आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड और हवाई जैसे विशाल व् छोटे द्वीपों से तमाम जानकारियाँ हासिल की जो इससे पहले कोइ नहीं कर पाया था, इन्ही यात्राओं में यूकेलिप्टस दुनिया की नज़र में आया और इसका नामकरण हुआ. जेम्स कुक के साथ सन १८७७ में जोसेफ बैंक और डैनियल सोलैंडर ने यूकेलिप्टस का नमूना अपने साथ लाए पर तब तक इसका नामकरण नहीं हुआ था. जेम्स कुक की तीसरी यात्रा के दौरान डेविड नेल्सन यूकेलिप्टस का नमूना लाए और उसे ब्रिटिश संग्रहालय लन्दन में रखा गया जिसका नामकरण फ्रेंच वैज्ञानिक चार्ल्स लुईस एल हेरीटियर ने "यूकेलिप्टस आब्लिकुआ"
के नाम से किया.
यूकेलिप्टस के तीन वर्ग है जिनमे दो कोरंबिया और अन्गोफोरा है, इन्हें यूकेलिप्टस या गम ट्री भी कहते है, क्योंकि इनके तने की छाल को कही से भी काट दिया जाए तो वहां से गम या गोंद निकलना शुरू हो जाता है, यूकेलिप्टस के कोरंबिया जाती में छिपा है लखीमपुर शहर के इस इकलौते वृक्ष का रहस्य जिसमें नीबूं जैसी खुसबू आती है.
कोरंबिया सिट्रिओडोरा यही नाम है, लैटिन के सिट्रिओडोरस के मायने ही होते है नींबू वाली सुंगध, यूकेलिप्टस की इस प्रजाति का जिसका एक नमूना हमारे जनपद में मौजूद है, किन्तु खीरी जनपद के लोगों की नज़र में यह प्रजाति अभी तक दर्ज नहीं है, शायद यह पहली बार महके हमारे लोगों के बीच जो अभी तक परिचित नहीं हुए इस खूबसूरत महक वाली प्रजाति से .....
यूकेलिप्टस की यह प्रजाति जिससे सिट्रेनेला तेल प्राप्त होता है, जिसके तमाम औषधीय गुण है, बुखार, जुकाम व् शरीर में दर्द के लिए यह पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होता आया है, साथ ही यह तेल मच्छर निरोधक के तौर पर इस्तेमाल होता है, इस तेल को कई कंपनिया मच्छर निरोधक क्रीम व् तेल में इस्तेमाल कर रही है. यूकेलिप्टस की इस प्रजाति से शहद का उत्पादन भी किया जाता है क्योंकि इनके पुष्पों में परागकणों की अधिकता के कारण मधुमख्खी को बहुतायात में परागरस मिलता है.
इस तेल में एंटी-फंगल व् एंटी-बैक्तीरियल गुण होते है, सूजन व् दर्द में इसका प्रयोग लाभकारी है, कीटरोधी होने के कारण बायो-पेस्टीसाइड के तौर पर भी इसका प्रयोग होता है, परफ्यूम इंडस्ट्री में इसकी बेहतरीन खुसबू के कारण यह यूकेलिप्टस की प्रजाति की बेहद मांग है. इसके विशाल लम्बे वृक्ष टिम्बर में यूकेलिप्टस की अन्य प्रजातियों से ज्यादा बेहतर माने जाते है. कागज़ व् प्लाई वुड उद्योग में भी यूकेलिप्टस का इस्तेमाल किया जा रहा है.
वैसे तो तराई में यह विदेशी प्रजाति आजादी से पूर्व ही वन विभाग द्वारा अन्य प्रजातियों के साथ लाई गयी, शाखू के वनों का जो सफाया किया गया उस रिक्त जगह इस विदेशी प्रजाति से भर देने की एक कोशिश थी, यूकेलिप्टस की तमाम प्रजातियों के साथ ये नींबू वाली यूकेलिप्टस भी थी, और था सागौन दोनों ही प्रजातियाँ इस तराई की धरती के लिए नई थी, पर सही से यह नहीं कहा जा सकता की उत्तर भारत में यह नींबू वाली प्रजाति कब रोपी गयी. १९६२ में उत्तर प्रदेश में वन विभाग द्वारा बहुतायात में यूकेलिप्टस की कई प्रजातियों का वृक्षारोपण किया गया. भारत में मौजूदा वक्त में यूकेलिप्टस की लगभग २०० प्रजातियाँ मौजूद है. आम जनमानस में यूकेलिप्टस की यह प्रजाति नहीं मौजूद है, लोग टिम्बर के लिए अन्य यूकेलिप्टस की प्रजातियाँ रोपित करते आये हैं.
आम जनमानस से यह प्रजाति रूबरू नहीं हो पाई, और तराई के लोग इस जादू जैसी बात से भी बावस्ता नहीं हो पाए, नहीं तो हर कोइ चौक जाता यूकेलिप्टस से नींबू की खुशबू आते देख ! और इस तरह यह छुपी रही तराई के जंगलों में. यकीनन किसी वन-अधिकारी या निवर्तमान साहिब बहादुर ने इसे इस कचहरी के मध्य लगवाया होगा.
उम्मीद है अब इस खुशबूदार प्रजाति को आप सब भी उगायेगे अपने आस-पास पानी सोखने वाले वृक्ष के रूप में मशहूर यूकेलिप्टस की यह प्रजाति जिसके पत्तों और गोंद में मौजूद सिट्रेलाल मच्छरों के अतिरिक्त तमाम हानिकारक कीटों से दूर रखेगा, इसकी पत्तियों के धुंए से अपने मवेशियों को भी जहरीले कीटों से बचाया जा सकता है, साथ ही इसका तेल खुशबू के लिए और अन्य औषधीय प्रयोगों में लाया जा सकता है. कृषि में जैविक-कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. चूंकि नींबू वाले यूकेलिप्टस की लम्बाई ६० मीटर तक हो सकती है, इसलिए यह टिम्बर के लिए भी बहुत उपयोगी है.
इसतरह नींबू वाले इस यूकेलिप्टस की यह कहानी, और इसकी मन को तरोताजा कर देने वाली गंध दोनों आप सभी को सुन्दर एहसास कराएंगी.....इस यकीन के साथ आपका कृष्ण!
यह लेख डेली न्यूज एक्टीविस्ट (लखनऊ)अखबार में दिनांक ३ सितम्बर २०१३ को सम्पादकीय पृष्ठ पर "यूकेलिप्टस बनाम नींबू वाला यूकेलिप्टस" शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ है,
(अपडेट: ४ अक्टूबर २०१३ )
कृष्ण कुमार मिश्र (हर जगह, हर डगर, हर जीव, हर वनस्पति, नदी, जंगल .....सभी में खुद को खोजने और स्थापित करने की मुसलसल कोशिश....!!! संपर्क- krishna.manhan@gmail.com)
वैसे तो तराई में यह विदेशी प्रजाति आजादी से पूर्व ही वन विभाग द्वारा अन्य प्रजातियों के साथ लाई गयी, शाखू के वनों का जो सफाया किया गया उस रिक्त जगह इस विदेशी प्रजाति से भर देने की एक कोशिश थी, यूकेलिप्टस की तमाम प्रजातियों के साथ ये नींबू वाली यूकेलिप्टस भी थी, और था सागौन दोनों ही प्रजातियाँ इस तराई की धरती के लिए नई थी, पर सही से यह नहीं कहा जा सकता की उत्तर भारत में यह नींबू वाली प्रजाति कब रोपी गयी. १९६२ में उत्तर प्रदेश में वन विभाग द्वारा बहुतायात में यूकेलिप्टस की कई प्रजातियों का वृक्षारोपण किया गया. भारत में मौजूदा वक्त में यूकेलिप्टस की लगभग २०० प्रजातियाँ मौजूद है. आम जनमानस में यूकेलिप्टस की यह प्रजाति नहीं मौजूद है, लोग टिम्बर के लिए अन्य यूकेलिप्टस की प्रजातियाँ रोपित करते आये हैं.
आम जनमानस से यह प्रजाति रूबरू नहीं हो पाई, और तराई के लोग इस जादू जैसी बात से भी बावस्ता नहीं हो पाए, नहीं तो हर कोइ चौक जाता यूकेलिप्टस से नींबू की खुशबू आते देख ! और इस तरह यह छुपी रही तराई के जंगलों में. यकीनन किसी वन-अधिकारी या निवर्तमान साहिब बहादुर ने इसे इस कचहरी के मध्य लगवाया होगा.
उम्मीद है अब इस खुशबूदार प्रजाति को आप सब भी उगायेगे अपने आस-पास पानी सोखने वाले वृक्ष के रूप में मशहूर यूकेलिप्टस की यह प्रजाति जिसके पत्तों और गोंद में मौजूद सिट्रेलाल मच्छरों के अतिरिक्त तमाम हानिकारक कीटों से दूर रखेगा, इसकी पत्तियों के धुंए से अपने मवेशियों को भी जहरीले कीटों से बचाया जा सकता है, साथ ही इसका तेल खुशबू के लिए और अन्य औषधीय प्रयोगों में लाया जा सकता है. कृषि में जैविक-कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. चूंकि नींबू वाले यूकेलिप्टस की लम्बाई ६० मीटर तक हो सकती है, इसलिए यह टिम्बर के लिए भी बहुत उपयोगी है.
इसतरह नींबू वाले इस यूकेलिप्टस की यह कहानी, और इसकी मन को तरोताजा कर देने वाली गंध दोनों आप सभी को सुन्दर एहसास कराएंगी.....इस यकीन के साथ आपका कृष्ण!
यह लेख डेली न्यूज एक्टीविस्ट (लखनऊ)अखबार में दिनांक ३ सितम्बर २०१३ को सम्पादकीय पृष्ठ पर "यूकेलिप्टस बनाम नींबू वाला यूकेलिप्टस" शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ है,
(अपडेट: ४ अक्टूबर २०१३ )
कृष्ण कुमार मिश्र (हर जगह, हर डगर, हर जीव, हर वनस्पति, नदी, जंगल .....सभी में खुद को खोजने और स्थापित करने की मुसलसल कोशिश....!!! संपर्क- krishna.manhan@gmail.com)
दुनिया का सबसे बड़ा एन्जियोस्पर्म (आवृतबीजी) यूकेलिप्टस - एक अनायास घटना का घटित होना और उसकी तह में जाकर समुद्र मंथन की भांति सागर से अम्रत की बूंद निकाल लाना जो गाहे – बगाहे उपयोगी हो सकती है इसके लिए आभार कलम के यायावर सिपाही ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी और नयी जानकारी मिली .... आभार ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletevery informative post.
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी. हम भी अपने घर में बच्ची के आस पास से मच्छर भगाने को सिट्रेनेला तेल की एक दो बूँद रुई में लगाकर करते हैं.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
jigyasa hona aur jaanakari ki tah tak pahuchna ...aapaki khubi hai ...behatarin aalekh ... maa ka ghar yaad aa gaya ..ghar ki pahchaan hua karta tha ye sabse uncha ekmaatra ped ...
ReplyDeleteYour post is very nice.
ReplyDeleteWords r really touching the heart and soul and informative also.Thanks.
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