दुआ करो सलामत हो दुधवा का बादशाह!
०तीन माह से पर्यटकों को दर्शन नहीं हुए बादशाह के
०रेडियो कॉलर बंद होने से बढ़ गई अधिकारियों की चिंता
०सावधान ,यूपी के किसी भी जंगल में पहुंच सकता है बाघ।
०बादशाह यूपी का पहला बाघ जिसको सेटेलाइट से जोड़ा गया
०रेडियो कॉलर बंद होने से बढ़ गई अधिकारियों की चिंता
०सावधान ,यूपी के किसी भी जंगल में पहुंच सकता है बाघ।
०बादशाह यूपी का पहला बाघ जिसको सेटेलाइट से जोड़ा गया
-मुलित त्यागी
धीरे-धीरे पर्यटन का समय गुजरता जा रहा है। परंतु दुधवा के जंगल में छोड़ा गया एक बाघ(बादशाह) का कोई सुराग नहीं लग पा रहा है। चिंता का विषय यह है कि बादशाह के गले में लगा हुआ रेडियो कॉलर भी बंद हो चुका है। जिसके चलते जहां देश विदेश से आने वाले पर्यटकों में बेचैनी हो रही है, वहीं वन विभाग की भी नींद उड़ी हुई है। हालांकि दुधवा नेशनल पार्क के अधिकारियों ने दावा किया है कि बादशाह जंगल में ही कही है।
दुधवा नेशनल पार्क में लखनऊ से पकड़ कर लाए गए बाघ का नाम अधिकारियों ने बादशाह रख दिया था। करीब दो माह तक लखनऊ मंडल में आतंक का पर्याय बन चुके बादशाह को देखने के लिए देश विदेश के पर्यटकों की गिनती बढ़ती चली गई। परंतु 5 अक्टूबर को बादशाह की लोकेशन मिलनी बंद हो गई। जिसको खोजने के लिए अधिकारियों ने दस कैमरे लगवा दिए। परंतु 5 अक्टूबर के बाद 20 जनवरी आ चुकी है। लेकिन बादशाह (बाघ) की कोई लोकेशन नहीं मिल पा रही है। बाघ के गले में लगाया गया रेडियो कॉलर भी बंद हो चुका है है। जिससे वन विभाग एवं अन्य अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई पड़ने लगी है। बाघ को गायब हुए करीब तीन माह का समय गुजर गया है जिसकी कही खोज खबर नहीं लग पा रही है। इसी के साथ दधुवा नेशनल पार्क में पर्यटन के लिए जो समयावधि नवम्बर से अप्रैल तक है, उसका समय धीरे-धीरे गुजरता जा रहा है। जिसके चलते उत्तर प्रदेश के विभिन्न महानगरों के अलावा देश-विदेश से आने वाले पर्यटक बादशाह के गायब होने से परेशान हो रहे है। दुधवा नेशनल पार्क में आने वाले पर्यटक तथा वन विभाग के अधिकारी उसके सलामत होने की दुआ मांग रहे है। इसके अलावा अधिकारी तथा वन विभाग बाघ को खाजने में जुटा हुआ है।
फरवरी में भी भाग गया था बादशाह----
फरवरी 2012 में बाघ दुधवा नेशनल पार्क से भाग गया था। जिसकी लोकेशन मैलानी, मोहम्मदी, हरदोई में मिलने के बाद लखनऊ में मिली थी। इसके बाद वन विभाग के अधिकारियों ने बाघ को 25 अप्रैल को लखनऊ में पकड़ा था। जिसके बाद उसको 27 अप्रैल को फिर से दधुवा छोड़ दिया गया था।
लखनऊ में रहमान नाम रख दिया था बाघ का---
बताया गया है कि दो माह तक गायब रहने वाले बादशाह ने लखनऊ मंडल में जमकर आतंक मचाया था। जिसमें उसने भूख के चलते जानवरों पर हमला बोलकर उनको शिकार बनाया था। बताया गया है कि 25 अप्रैल को बाघ को लखनऊ के रहमान खेड़ा में पकड़ा गया था, जिसके बाद उसका नाम रहमान रख दिया गया था।
पूर्व में तीन बाघों की हो चुकी है मौत---
सात माह पूर्व दुधवा नेशनल पार्क में रहने वाले एक बाघ की मौत हो चुकी है। जबकि पीलीभीत के जंगल में भी दो बाघ मृत मिले थे। हालांकि दुधवा पार्क में वर्तमान में 110 बाघ बताए जा रहे है।
हापुड़, बुलंदशहर तथा मेरठ में भी है जंगली जानवर का आतंक--
पिछले चार माह से यूपी के जनपद मेरठ, बुलंदशहर तथा हापुड़ के जंगल में भी जंगली जानवरों का आतंक व्याप्त है। बताया जाता है कि हस्तिनापुर सेंचुरी क्षेत्र में जंगली जानवरों ने हमले करते हुए वहां पर सैकड़ों जानवरों का खा लिया है। जाकि कई स्थानों पर इंसानों पर भी हमले हो चुके है।
छ: माह तक आते है देश विदेश के पर्यटक--
दधुवा नेशनल पार्क में पर्यटकों के लिए नवम्बर से अप्रैल तक आने की छूट रहती है। जिसके चलते नेशनल पार्क में देश विदेश से छ: माह तक पर्यटक आकर बाघ, हाथी , तेंदुआ, हिरण, पाढ़ा, साम्भर, गैंडा आदि को देखते है।
उत्तर प्रदेश का बादशाह पहला बाघ जिसके गले में लगाया रेडियो कॉलर----
सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पहली बार किसी बाघ के गले में रेडियो कॉलर लगाकर उसको प्राकृतिक वातावरण में छोड़ा गया था। बादशाह के लगाया गया रेडियो कॉलर सेटेलाइट से लिंक था। परंतु सेटेलाइट से लिंक में आने वाला खर्चा वन विभाग के लिए आ आफत बीन गया है। क्योंकि रेडियो कॉलर बंद होने के पीछे खर्च एक बड़ी वजह हो सकती है। जिस कारण उसकी लोकेशन सेटेलाइट से नहीं ली जा रही है।
क्या कहते है अधिकारी----
दुधवा टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर गणेश भट्ट का दावा है कि बाघ जंगल में ही है। उन्होंने कहा कि कुछ पद चिंह मिले है परंतु हम पूरे सबूत मिलने के बाद ही उसके जंगल में होने की पुष्टि करेंगे। उन्होंने कहा कि वन्य जीवन पर काम करने वाली एक संस्था ने उसके गले में रेडियो कॉलर लगाई थी जिसने काम करना बंद कर दिया है। सम्भवत: तकनीकी खराबी के चलते वह बंद हो चुकी है।
कैमरे लगाए जाएंगे---
डिप्टी डायरेक्टर कहते है कि रुटीन प्रक्रिया में जंगल में कैमरे लगाए जा रहे है। जिसके चलते वहा पर रहने वाले बाघ आदि की जानकारी मिलती रहेगी।
मुलित त्यागी (लेखक हिन्दुस्तान दैनिक में ब्यूरो प्रमुख के रूप में जनपद खीरी में कार्यरत है, मूलत: गढ़मुक्तेश्वर जनपद हापुड़ के निवासी है, इनसे mt680004@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )
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