Photo Courtesy: Karen Hollingsworth (women painting women) |
कही-अनकही
==मयंक वाजपेयी
=बीस
मार्च...(वर्ष का जिक्र नहीं) की दोपहर बाद का समय। मितौली के धूल भरे
इलाके से वापसी हुई थी गौरैया दिवस मनाकर। उस घर के दरवाजे पर दस्तक दी।
दरवाजा खुला तो एकोहद परिचित चेहरा अपरिचित अंदाज में सामने आ गया, एक दबी
हुई मुस्कराहट के साथ। एक अनजान सा सवाल कि यहां कैसे...आज किस तरह...इधर
कैसे! झिझकते हुए जवाब दिया कि आज गौरैया दिवस है न...। वही मनाने के लिए
आए हैं। सामने वाला हैरत में कि गौरैया दिवस क्या होता है? दोपहर तीखी धूप
थी। लगा कि इस धूप में खड़े होकर कैसे बताया जाए कि गौरैया दिवस क्या होता
है..। इसा बीच भीतरी दरवाजा खुल गया। इसके बाद शुरू हो गई गौरैया दिवस को
लेकर। मैं भी साथ था तो बताना शुरू किया कि गौरैया दिवस क्या है और का शुरू
हुआ। गौरैया दिवस पर बात चलती रही। मैं गौरैया की कहानी सुना रहा था और वह
मेरे साथ बैठा हुआ गौरैया की ओर देख रहा था। गौरैया भी झिझकते हुए पंख फैला
रही थी। वह उड़ना चाह रही थी। पर उसे लगता था कि जाल बिछा हुआ है। वह किधर भी
उड़कर जाएगी तो जाल उसको फंसा लेगा। गौरैया की आंखों में चमक उतर आई थी।
जैसे वो कहना चाह रही थी कि गौरैया दिवस केाहाने ही सही मिलने तो आए। बीस
मार्च की तारीख यादगार होती जा रही थी। ...करीब बीस मिनट गुजर गए। सामने चाय
के प्याले रखे थे। उसे चाय मे ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी..भाई चाय तो किसी
भी गली-नुक्कड़ पर मिल जाएगी...पर खुशी ये थी कि गौरैया के घोसले में पनाह
पाने का सुख मिल रहा था। वह लगातारोलता जा रहा था। छत पर बैठी चिड़ियों की बात
कर रहा था। आसपास बिखरे दानों में निवाला ढूंढ रहा था और गौरैया खामोशी से
सा सुनती जा रही है। गौरैया का क्या है...अभी-अभी तो वह भीड़ सेाचकर घर
पहुंची थी। उसे कुछ रोज घर पर ही रहना है। इसके बाद ये वक्त उसे कहां ले
जाएगा...वह तो उसे अपने घोसले में जगह देना चाहता है। उसने कई दफा गौरैया
से यह कहा भी था कि तुमको मेरे घर आना है। मैं तुम्हारे लिए सपनों का
आशियाना बनाउंगा। मिट्टी का घर होगा..उसमें आलेानाएंगे। छत की मुंडेर पर रोज
दाने बिखराएंगे और आवाज देकर तुमको हर सुबह बुलाया करेंगे। तुम आना और रोज
यूं ही दाने चुंगते जाना।...मुझे याद है कि यह सपना देखते-देखते गौरैया की
काली आंखें पनीली हो गई थीं। फिर लमा दौर गुजर गया। गौरैया उड़ चुकी है। वह
किसी और पेड़ पर अपना नया घोसला बना चुकी है। पता नहीं वहां उसके लिए रोज
कोई दाने बिखेरता होगा भी या नहीं...। पता नहीं होली में गौरैया के पंखों को
कोई रंगेगा भी या नहीं...। फिर भी ये दुआ करता हूं कि जा भी गौरैया खुश
हो...सामने से पंख फड़फड़ाकर उड़े जरूर...। खुशी से चहके भी।
-फिर बीस मार्च आ गया है। इस बार गौरैया दिवस मनाएंगे, लेकिन गौरैया दिखेगी
तभी तो उसकी कथा बनेगी ..तभी तो मैं उसकी कथा कहीं सुनाने फिर जाऊंगा...पता
नहीं ऐसा होगा या नहीं। वरना मुनव्वर राना का यह शेर ही याद आता रहेगा-
‘ऐसा लगता है कि जैसे खत्म मेला हो गया, उड़ गई आंगन से चिड़िया घर अकेला हो गया।’
मयंक बाजपेयी (लेखक लखीमपुर खीरी में हिन्दुस्तान दैनिक में पत्रकार है, निवास गोला गोकर्णनाथ, इनसे mayankbajpai.reporter@gmail.com पर संपर्क कर सकते है )
‘ऐसा लगता है कि जैसे खत्म मेला हो गया, उड़ गई आंगन से चिड़िया घर अकेला हो गया।’
मयंक बाजपेयी (लेखक लखीमपुर खीरी में हिन्दुस्तान दैनिक में पत्रकार है, निवास गोला गोकर्णनाथ, इनसे mayankbajpai.reporter@gmail.com पर संपर्क कर सकते है )
आदरणीय मयंक जी आपका लेख पढ़ा .बहुत ही मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी लगा .गौरैया हमारे आगन की शोभा है जिसे हम जाने नहीं देगे .बड़े भाई कृष्ण कुमार मिश्र ने गौरैया और उसका हमारे आगन से रिश्ता बताने का जो प्रयास किया है वो मुझे धीरे धीरे ही सही सफल होता नज़र आरहा है .गाव की पगडण्डी पर बैठे किसान से लेकर शहर के तथाकथित बुद्धिजीवी तक अब ये कोई नहीं कह सकता की गौरैया हमारे परिवार का हिस्सा नहीं है .मेरा यकीन है गौरैया लौट कर आएगी और अपने ही घर में घोसला बनाएगी .एक बार फिर आपको बधाई .
ReplyDeleteअरुण सिंह चौहान
एडिटर-इन-चीफ
लोकमत लाइव
www.lokmatlive.in
nice article....heart touching story regarding love.....
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