वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Oct 25, 2012

पीताम्बर एक अनोखा पुष्प !

ये है पीताम्बर  

एक वनस्पति जो अपने सुन्दर पुष्प के अतिरिक्त तमाम व्याधियों के मूलनाश की क्षमता रखती है ।

हाँ पीताम्बर एक प्रजाति जिसका पुष्प पीत वर्ण की अलौकिक आभा का प्रादुर्भाव करता है  हमारे मध्य, मानों साक्षात गुरूदेव बृहस्पति विराजमान हो इन मुकुट रूपी पुष्पगुच्छों पर,   और मधुसूदन स्वयं उपस्थित हो इस छटा  में! क्योंकि पीताम्बर कृष्ण का भी एक नाम है, इस पुष्प का पीत वर्ण सहज ही मन को शान्ति, विचारों में सात्विकता और मन में क्षमा का भाव स्थापित करता है।

वर्षा ऋतु में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों सुन्दर कीट पतंगों व तितलियों के जीवन चक्र के महत्वपूर्ण हिस्से का आरम्भ होता है-प्रजनन, वनपस्तियों में सुन्दर पुष्प खिलते है, तितलियां अपने लार्वा के स्वरूप को त्यागकर रंग-बिरंगे पंखों वाली परियों में तब्दील होती हैं, और तमाम कीट-पंतगे प्रकृति के रंगों में रंग कर उन्ही में अपने अस्तित्व को डुबोए हुए नज़र आते हैं, बरसात के अंत में प्रकृति अपने उरूज़ पर होती है, अजीब सूफ़ियाना माहौल होता है, प्रकृति में वनस्पतियों और जीवों के इस परस्पर मिलन का, एक दूसरे पर निर्भरता और सामजस्य जो अदभुत सा लगता है, मानों इन सभी प्राकृतिक प्रक्रियाओं का संचालन बड़े करीने से सुनियोजित ढग से किसी द्वारा चलाया जा रहा हो, बिना रंच मात्र त्रुटि किए हुए !

इसी सिलसिले में एक पीले रंग का सुन्दर पुष्प उगा लखीमपुर खीरी के मोहम्मदी तहसील के एक परगना में जिसे कस्ता के नाम से जानते हैं, यहाँ से गुजरती एक नहर के किनारों पर यह वनस्पति अपने पुष्पों के कारण एक पीली छटा सी विखेरती नज़र आती है इस बरसाती हरियाली के मध्य,  हाँ मैं बात कर रहा हूँ पीताम्बर की,  यह वनस्पति भारत भूमि में आई तो इसके औषधीय महत्त्व से भी हमारे लोग हुए और और इसके त्वचा रोगों पर असरकारक तत्वों को भी जान पाए, क्योंकि इसकी पत्तियों व् फूल का रस ग्राम-पाजटिव बैक्टीरिया पर बहुत असरकारक है। और पेट संबधी रोगों में भी यह रामबाण औषधि है, यह ई0 कोलाई बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है, इसके फंगल और बैक्टीरिया जनित बीमारियों के साथ साथ ब्लड शुगर व् मूत्र-संबधी बीमारियों  पर असर के कारण इसे तमाम देशो के स्थानीय समुदाय पीताम्बर के औषधीय गुणों से लाभान्वित होते रहे है। इस वनस्पति को विदेशी आक्रामक प्रजातियों के अंतर्गत रखा गया, लेकिन जहां की धरती इसे अपना ले तो फिर वह विदेशी कैसे हुई, फिर हर प्रजाति अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष शील है, और यदि प्रकृति में जीवन संघर्ष की दौड़  में कोई प्रजाति कुछ विशेष गुण अर्जित कर ले, तो यह उसका खुद का विकास है!

 उत्तर भारत के तराई में  कस्ता  गाँव में कैसे पहुंची यह प्रजाति, इसका अंदाजा भर लगाया जा सकता है, कि  किसी अन्य प्रादेशिक  समुदाय या किसी तीर्थ यात्री द्वारा लायी गयी फलियों से पीताम्बर उगाने की कोशिश  हो । और इसतरह अब पीताम्बर इस लखीमपुर खीरी के तराई की धरती का बाशिंदा हो गया अपने पुष्पित बालियों की पीली आभा का दृश्य स्थापित करने के लिए हमारे मध्य । 

इस बेलनाकार पुष्प गुच्छ वाली वनस्पति जो अपने आप में तमाम रंग बिरंगे कीट-पतंगों को रिहाइश और भोजन दोनों मुहैया कराता है, साथ ही आप के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। दुनिया के तमाम देशों में पीताम्बर की पत्तियों और पुष्प के रस को साबुन में मिलाया जाता है, जो त्वचा के रोगों को दूर करता है और साथ ही त्वचा की दमक को बढाता भी है।

 इस प्रजाति को वैज्ञानिक  भाषा में सेना अलाटा कहते है, यह मैक्सिको की स्थानीय प्रजाति है, पीताम्बर फैबेसी परिवार का सदस्य है। यह वनस्पति ट्रापिक्स (उष्ण-कटिबंधीय क्षेत्र ) में 1200 मीटर तक के ऊँचें स्थानों में उग सकती है। आस्ट्रेलिया और एशिया में यह इनवेसिव (आक्रामक) प्रजाति के रूप में जानी जाती हैं। धरती के तमाम भूभागों में इसका औषधीय महत्त्व है। मौजूदा वक्त में यह प्रजाति अफ्रीका साउथ-ईस्ट एशिया, पेसिफिक आइलैंड्स और ट्रापिकल अमेरिका में पायी जाती है।

पीताम्बर जंगल के किनारों, परती नम-भूमियों, नदियों व् तालाबों के किनारों पर उगने वाली वनस्पति हैं, इसके बीज रोपने के कुछ ही दिनों में अंकुरित हो जाते है, एक बार एक पौधा तैयार हो जाने पर इसकी तमाम फलियाँ जो 50-60 बीजों का भंडार होती है, पकने के पश्चात जमीन पर गिरती है और एक ही वर्ष में यह प्रजाति वहां की जमीन पर अपना प्रभुत्व बना लेती है, सैकडों झाडियाँ एक साथ उग आती है। इसी कारण इसे आक्रामक प्रजाति कहा जाता है, और विदेशी भी? चूंकि यह उत्तरी-दक्षिण अमेरिका की स्थानीय प्रजाति है और इसने  अपने बड़े व् सुन्दर पीले पुष्प-गुच्छों वाली  बालियों के कारण मानव-समाज को आकर्षित किया और यही वजह रही की यह मनुष्यों द्वारा एक स्थान से दुनिया के दूसरे इलाकों में लाया गया, और साथ में आई इनकी खूबियाँ जिनमें औषधीय गुण प्रमुख है। 

पीताम्बर का पुष्प-गुच्छ 6-24 इंच लंबा, इसमें गुथे हुए पुष्पों का आकार 1 इंच  तक का होता है। इसके ख़ूबसूरत पुष्प-गुच्छ के वजह से ही इसे दुनिया के तमाम हिस्सों में कई नामों से जाना जाता है जैसे इम्प्रेस कैंडल, रोमन कैंडल ट्री, येलो कैंडल, क्रिसमस कैंडल, सेवन गोल्डन कैंडल बुश  साथ ही औषधीय गुणों के कारण भी लोगों ने इसे कई नाम दिए रिन्गवार्म बुश आदि।  पुष्पंन का वक्त सितम्बर-अक्टूबर है।

पीताम्बर झाडी के रूप में उगता है, जिसकी ऊंचाई 4 मीटर तक हो सकती है। पत्तियाँ 50-80 से०मी० लम्बी होती हैं। पुष्प गुच्छ की शक्ल मोमबत्ती की तरह चमकीले पीले रंग की, और इसके बीजों की फलियाँ 25 सेमी लम्बी होती हैं। इसकी यही पंखनुमां फलियाँ पानी के बहाव द्वारा एवं जानवरों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती हैं। इस प्रकार यह ख़ूबसूरत प्रजाति इलाहिदा जगहोँ में अपना अस्तित्व बनाती है। पीताम्बर की फली पक जाने पर भूरे व् काले रंग की हो जाती है, और प्रत्येक फली में 50-60 चपटे त्रिकोंणनुमा बीज निकलते है।

बालियों में लगे दर्जनों पुष्पों  में काफी तादाद में पराग मौजूद होते है, वह तमाम तरह की प्रजातियों को आकर्षित करते है, जैसे तितलियाँ, कैटरपिलर, मख्खियों, और चीटियों  को, इन कीट-पतंगों को पीताम्बर के  विशाल पुष्प-गुच्छों  से  भोजन तो मिलता ही है साथ ही ये इनके निवास का स्थान भी बन जाते हैं। परागण  की ये प्रक्रिया इन्ही कीट-पतंगों द्वारा होती है यह एक तरह का सयुंक्त अभ्यास है, जीवन जीने का वनस्पति और जंतुओं  के मध्य। दोनों एक दूसरे से लाभान्वित होते हैं। 

पीताम्बर के इस पुष्प का औषधीय इस्तेमाल अस्थमा ब्रोंकाइटिस एवं श्वसन संबधी बीमारियों में किया जाता है। पत्तियों का रस डायरिया कालरा गैस्ट्राईटिस और सीने की जलन में उपयोग में लाते है।

इसका पुष्प, पत्तियाँ तथा जड़ में एन्टी-फंगल, एंटी-ट्यूमर  व् एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते है, जिस कारण यह मानव व् जानवरों के विभिन्न रोगों में इस्तेमाल होता रहा है, दुनिया के तमाम भू-भागों में। ग्राम-पॉजटिव   बैक्टीरिया पर इसके रस का प्रभाव जांचा जा चुका है, यही वजह है की मनुष्य एवं जानवरों में होने वाली त्वचा संबधी व्याधियों में इसके इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है।


दुनिया के तमाम हिस्सों में स्थानीय समुदायों में पीताम्बर का अलग-अलग इस्तेमाल किया जाता है जिसमें रेचक (लक्जेटिव )  के रूप में तथा त्वचा रोगों में विशेष तौर से इसकी पत्तियों व् पुष्प का प्रयोग होता हैं, कुछ प्रमुख बीमारियों में पीताम्बर का उपयोग- एनीमिया, कब्ज, लीवर रोग, मासिक धर्म से जुडी बीमारियाँ, एक्जीमा, लेप्रोसी, दाद, घाव, सिफलिस गनोरिया, सोरियासिस, खुजली, डायरिया, पेचिश,   मूत्र-वर्धक, एवं त्वचा की सुन्दरता निखारने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

पीताम्बर कृमिहर औषाधि के रूप में तथा जहरीले कीड़ों के काटने पर भी औषधि के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है, विभिन्न स्थानों पर इसका प्रयोग इन्सेक्टीसाइड, लार्वीसाइड के तौर पर भी होता है।

बसंत ऋतु के आख़िरी दिनों में पीताम्बर के बीजों की बुआई करना चाहिए नम भूमि में व् जहां सूर्य की किरणे सीधी आती हो।  फिर क्या है आप भी तैयार हो जाइए इस ख़ूबसूरत फूल को अपनी बगिया में उगाने के लिए जो सुन्दरता के साथ साथ आप और आप के पशुओं की बीमारियों में दवा के काम भी आयेगा।

 भारत जैसे उष्ण -कटिबन्धीय क्षेत्र में  जहां पर  कुपोषण, गरीबी, गन्दगी  और अशिक्षा जैसी तमाम दिक्कते मौजूद हों वहां त्वचा-रोगों की उपस्थिति अवश्यभामी है, त्वचा जैसा संवेदी और महत्वपूर्ण अंग में कुष्ठ आदि रोगों के लग जाने से मनुष्य का जीवन जीना दूभर हो जाता है, ऐसे में पीताम्बर के पुष्प पत्ती और जड़ के रस का लेपन त्वचा रोगों को समाप्त कर देता है,  उत्तर भारत के तराई जनपदों में वातावरण में अत्यधिक नमी और जल-भराव के कारण त्वचा रोगों का फैलाव  सबसे ज्यादा होता हैं, इसलिए पीताम्बर की यहाँ उपस्थिति जनमानस के स्वास्थ्य के लिए प्रकृति की अनुपम भेट है ।

बात सिर्फ पीताम्बर की नहीं हमारे आसपास तमाम वनस्पतियाँ व् जंतु रहते है, किन्तु हम उन्हें न तो जानना चाहते है और न ही उनकी उपस्थित के महत्त्व को खोजना और इस जिज्ञासा का अनुपस्थित  होना हमारे मानों में , हमारे मानव समाज के लिए ही अहितकर है, प्रकृति के मध्य सभी के अस्तित्व को स्वीकारना उनकी रक्षा करना और उनके महत्त्व को समझ ले तो फिर हमारी मनोदशाओं में जो  सकारात्मकता आयेगी  वह हमको और बेहतर बनायेगी साथ ही प्रकृति के सरंक्षण का कार्य खुदब-खुद हो जाएगा हमसे, हमारे इस बोध मात्र से !@



कृष्ण कुमार मिश्र 
(krishna.manhan@gmail.com)



References:

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9 comments:

  1. This effort sure needs to be registered by the government agency. It is an effort that needs to be recognised. Way to go Mishraji....

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  2. shukriya krishna kumar ji!!!!! behad zaroori aur anmol jaankaari k liye!!!!! sach hi kaha aapne k hum log nhi pehchaan paate k hamaare aas-paas kai aisi adbhut vanaspatiyaan jeev-jantu hein!!!! darasal mein hum ek doosre ko hi nhi pehchaan paate hein to in par hamaara dhyaan hi kaise jaaye!!!! agar ye sakaaraatmak soch sab aa jaye to baat hi kya ho!!! aapne bahut mehnat ki aur wo rang layi hai!!!! aapko badhaai aur shubhkaamnaaein! ek pitambar meri kyaari mein bhi khile aisi meri koshish rahegi!!!......

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  3. बहुत शोध किय है.. बधाई
    अच्छा ब्लाग है..

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  4. bilkul sir ye to baat hai ki hum apne hi aas paas ki cheezo ko nhi jante or ya to ilaaz ki durlabhta k chalte bimaari badhaye rakhte h ya to dr. k chakkr lagate rhte h
    its very good knowlg
    and thnx:)

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  5. बहुत अच्छी जानकारी। अब तो यह भारत के कई प्रान्तों में पाया जाता है ....छत्तीसगढ़ में तो प्रचुर मात्रा में है।इसका चर्म रोग नाशक गुण विशेष है।

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  6. बहुत् ही बेहतरीन और अदभुत जानकारी दी आपने । इस्व खूबसूरत पुष्प और उसके गुणों से अब तक हम तो अपरिचित ही थे । बहुत बहुत आभार आपका ।

    जरूरी है दिल्ली में पटाखों का प्रदूषण

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  7. इस पौधे के बारे में जानना अच्छा लगा . उपयोगी जानकारी !

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  8. बहुत ही अच्छा लेख लिखा सर आपने आपको बहुत बधाई।

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