यादों में रह गए दुधवा के विली अर्जन सिंह
वन्य-जीव
संरक्षकों की दुनिया की जानी मानी महान विभूति तथा दुधवा नेशनल पार्क की
स्थापना में अग्रणी एवं महती भूमिका निभाने वाले पदमश्री बिली अर्जुन सिंह
आज के ही दिन यानी एक जनवरी 2010 को दुनिया से अलविदा करके पंचतत्व में
विलीन हो गए थे। यह विडम्बना ही कही जाएगी कि क्षेत्र के वाइल्ड लाइफरों
समेत वन्य-जीव संरक्षण का ढिंढोरा पीटने वाले एनजीओ के अगुवाकारों ने ही नहीं
वरन् दुधवा नेशनल पार्क प्रशासन ने भी स्वर्गीय बिली अर्जुन सिंह को दो
साल के भीतर ही भुला दिया। इसका प्रमाण यह है कि क्षेत्र में कहीं भी उनकी
याद में कोई कार्यक्रम किसी ने आयोजित करने की जहमत नहीं उठाई है।
बताते चलें कि 15 अगस्त 1917 को देश के पंजाब सूबे में कपूरथला स्टेट
के जसवीर सिंह के घर में अर्जुन सिंह पैदा हुए थे। गोरखपुर तथा मेरठ में
नजदीकियां होने से वह फौज में भरती हो गए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजी
सेना की ओर से वर्मा देश में जाकर बतौर आर्मी कैप्टन युद्ध लड़ा था। इसके
बाद देश की आजादी से पहले ही अर्जुन सिंह ने फौज की नौकरी छोड़ दी थी। इससे
पूर्व अपने कुछ रिश्तेदारों के बुलावे पर अर्जुन सिंह खीरी के जंगल में
शिकार करने आए थे तब उन्होंने बारह वर्ष की अल्पायु में बाघ का शिकार किया
था। मगर फिर शिकार करने के बाद उनका हृदय परिवर्तन हो गया और खीरी के घने
जंगलों के अलावा संपूर्ण प्रकृति के वह प्रेमी हो गए उन्हें वयंजीवों एवं
पक्षियों में खास कर बाघ से बेहद प्रेम हो गया। फौज में वह एयरफोर्स में
जाना चाहते थे लकनि उनकी इच्छा के आगे कद आ गया। यह इच्छा पूरी करने के लिए
स्वतंत्रता के बाद वह खीरी के पलिया थाना क्षेत्र के तहत जंगल की सीमा पर
उन्होंने टाइगर हैवन के नाम से आशियाना बनाकर रहने लगे।
केन्द्रीय सरकार
में पहुंच और प्रधानमंत्री स्वर्गीय इन्दिरा गांधी से नजदीकियां होने के
कारण पर्यावरण प्रेमी बिली अर्जुन सिंह को विलायत से लाई गई तारा नामक
बाघिन को पालने पोसने के लिए श्रीमती गांधी ने ही उन्हें सौंपा था। इस बीच
दो फरवरी 1977 को दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना कराने में भी बिली अर्जुन
सिंह का खासा महत्वपूर्ण योगदान रहा।
इनके प्रयासों से ही 1984 में बाघ
संरक्षण परियोजना की भी शुरूआत हुई थी। यूपी, खीरी और दुधवा को दुनिया के
पर्यटन मानचित्र पर एक सम्मानजनक स्थान दिलवाने में बिली अर्जुन सिंह ने
अहम भूमिका अदा की थी। उन्होंने दुधवा की ख्याति को ब्रिटेन, इंग्लैंड आदि
दुनिया के अन्य देशों तक पहुंचाया। हैरियट और जूलियट नामक नर मादा तेंदुआ
को अपने आवास पर पाल पोसकर बड़ा किया था। बीते दो साल पूर्व एक जनवरी को
बिली अर्जुन सिंह ने जब इस दुनिया से अलविदा कहा था तब उनके अंतिम दर्शनों
के लिए देश विदेश से उनके नाते रिश्तेदारों के साथ ही क्षेत्रीय जन
प्रतिनिधि, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अधिकारी तथा सूबे के वन विभाग के
उच्चाधिकारी यहां आए थे। दुधवा नेशनल पार्क के कर्मचारियों ने सीमा पर उनकी
शवयात्रा को सलामी भी दी थी। लेकिन यह विडम्बना की बात यह है कि दो साल ही
बीता है कि क्षेत्रीय लोगों ने उनको भुला दिया यहां तक दुधवा नेशनल पार्क
प्रशासन ने ही द्वितीय पुण्यतिथि पर बिली को याद किया और न ही वाइल्ड लाइफर
होने का दंभ भरने वालों समेत वयंजीव संरक्षण के नाम पर चला रहे एनजीवों के
अगुवाकारों द्वारा कोई कार्यक्रम आयोजित किया गया। इससे लगता है कि
क्षेत्र की महान विभूति बिली अर्जुन सिंह को यहां के लोगों ने भुला दिया
है। बिली अर्जुन सिंह की द्वितीय पुण्यतिथि पर मैं अपनी ओर से
श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
किताबें लिखी, तमाम पुरस्कारों से नवाजा गया
बिली
अर्जुन सिंह को टाइगर कंजरवेशन के लिए किए गए उनके महत्वपूर्ण योगदान के
लिए 1979 में देश के अलंकरण पदमश्री उपाधि से विभूषित किया गया। सन् 2005
में अमेरिका के विश्वस्तरीय पालगेटी एवार्ड से भी उन्हें नवाजा गया था।
इससे पूर्व 1977 में विश्व में विश्वजीव कोष से गोल्डन आर्क पुरस्कार मिला।
1989 में ईएसएसओ सम्मान, 2003 में सेंक्चुरी एमएमआरओ लाइफ टाइम सर्विस
सम्मान, सन् 2005 में यश भारती सम्मान से भी उनको नवाजा गया था।
बिली
अर्जुन सिंह द्वारा वन्य-जीव तथा बाघ संरक्षण पर दि लीजेंड आफ मैनइटर टाइगर,
टाइगर हैवन, वाचिंग इंडियाज वाइल्ड लाइफ, तारा द टाइग्रेस, प्रिंस आफ
कैट्स, बायोग्राफी इंडियस वाइल्ड लाइफ आदि पुस्तकें भी लिखी जो विश्व स्तर
पर खासी प्रसिद्ध हुई। ब्रिटिश लेखक डफ हर्टडेविस द्वारा बिली के जीवन पर
लिखी गई पुस्तक आनरेटी टाइगर द लाइफ आफ बिली अर्जुन सिंह भी खासी चर्चित
रही।
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र, (लेखक
वरिष्ठ पत्रकार हैं, मौजूदा वक्त में हिन्दुस्तान दैनिक के पलिया में
संवाददाता, वन्य-जीव सरंक्षण पर लेखन, अमर उजाला में कई वर्षों तक
पत्रकारिता, आप पलिया से ब्लैक टाइगर नाम का अखबार निकाल रहे हैं, इनसे dpmishra7@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। )
देश कोई रिक्शा तो है नहीं
ReplyDeleteजो फेफड़ों की ताक़त की दम पे चले
वह चलता है पैसों से
सरकार के बस का नहीं
देना सस्ती और उच्च शिक्षा
मुफ़्त इलाज भी
सरकार का काम नहीं
कल को तो आप कहेंगे
गिलहरी के बच्चे का भी
रखे ख़याल सरकार
वे विलुप्त होने की कगार पे हैं
परिन्दों से ही पूछ लो
क्या उन्हें उड़ना
सरकार ने सिखाया है..?
क्या उनके दुनके में
रत्ती-भर भी योगदान है सरकार का
जंगल में
बिना सरकारी अस्पताल के
एक बाघिन ने
आज ही दिया जन्म
तीन बच्चों को
एक हाथी के बच्चे ने
आज ही सीखा है नदी में तैरना
बिना सरकारी योगदान के
पार कर गया नीलगायों का झुण्ड
एक खौफ़नाक बहती नदी
सरकार का काम नहीं है
कि वो रहे चिन्तित
उन जर्जर पुलों के लिए
जिन्हें लाँघते है हर रोज़
ग़रीब गुरबा लोग
सरकार के पास नहीं है फुर्सत
हर ग़रीब आदमी की
चू रही छत का
रखती रहे वह ख़याल
और भी बहुत से काम है
जो करने हैं सरकार को
मसलन रोकनी है महँगाई
भेजनी है वहाँ सेना
जहाँ लोग बनने ही नहीं दे रहे हैं
सेज
सरकार को चलाना है देश
वह चलता है पैसों से
और पैसा है बेचारे अमीरों के पास
आज ही सरकार
करेगी गुज़ारिश अमीरों से
कि वे इस देश को
ग़रीबी में डूबने से बचाए
देश की भलाई के लिए
अमीर तस्करों तक के आगे
फैलाएगी अपनी झोली
बदले में देगी
उन्हें थोड़ी-सी रियायतें
क्योंकि देश कोई रिक्शा तो नहीं
जो फेफड़ों की ताक़त के दम पे चलें
वह तो चलता है पैसों से