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राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच-
वनाधिकारों के लिए एक आंदोलन-
ताकि उन्हे उनका हक मिले !
आज दिनांक 2 दिसम्बर 2011 को अमीनाबाद स्थित गंगाप्रसाद मेमोरियल हाल में राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच द्वारा ‘ उत्तरप्रदेश में वनाधिकार आंदोलन और वनाधिकार अधिनियम के क्रियान्वन व राष्ट्रीय आंदोलन की रणनीति’ पर एक दिवसीय प्रांतीय अधिवेशन आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में वनाच्छित जनपदों से लगभग 1000 लोगों ने भागीदारी निभाई। इस सम्मेलन में काफी महत्वपूर्ण जनपदों जैसे सहारनपुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, गोंण्ड़ा, गोरखपुर, महराजगंज, सोनभद्र, मिर्जापुर, वनगुर्जर समुदाय, चित्रकूट, चन्दौली के अलावा अन्य प्रदेशों जैसे उत्तराखंड़ व बिहार से भी संगठन के कार्यकताओं द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उददेश्य प्रदेश व वनाधिकार कानून को लागू करने में अधिकारीयों द्वारा कोताही बरतने व अधिकारीयों द्वारा वनविभाग से सांठ गांठ कर इस कानून को लागू करने में तरह तरह की अड़चनें पैदा कर रहे हैं। इसी के साथ कानून के पालन करने में राज्य व सरकार को चुनौती देने के लिए आगामी रणनीति के तहत 15 दिसम्बर 2011 को दिल्ली जाने का कार्यक्रम भी तय करना था, चूंकि इस समय संसद का सत्र चालू है।
इस कार्यक्रम महिलाए काफी संख्या में आई थी जिसमें आदिवासी, दलित व अन्य परम्परागत समुदाय की संख्या काफी अधिक थी। इस सभा में वनसमुदाय द्वारा काफी सरकार व सरकारी अधिकारीयों पर काफी गुस्सा फूटा चूंकि पांच वर्ष बाद भी यह कानून लागू नहीं हो पाया है। सहारनपुर से आए वनटांगीयां निवासी शेर सिंह ने कहा कि जहां उनका संगठन पहंुच जाता है वनविभाग को भागने की कहीं रास्ता नहीं मिलता है। शोभा सोनभद्र ने कहा कि इस कानून को लागू करने का काम हमारा है और खासतौर पर महिलाओं की जिन्हें इस कानून को लागू कराने में काफी मेहनत करनी है। इसलिए सभी महिलाए घरों में न रहे बल्कि आदमी घरों में रहे और महिलाए दिल्ली जा कर इस बात का जवाब ले कि इस कानून को लागू करने में इतनी बाधाए क्यों आ रही है। खीरी से रामचंद्र राणा ने कहा कि वनाश्रित समुदायों की लड़ाई हमारे अपने संगठन ने लड़ी है इसलिए यह वनाधिकार कानून भी पारित हुआ है इस लिए हमारी सरकार व वनविभाग के साथ सीधी टक्कर है। हमें राजनैतिक लोग कहते हैं कि आप संगठन की मिटिंग में क्यों जाते हैं।
आज दिनांक 2 दिसम्बर 2011 को अमीनाबाद स्थित गंगाप्रसाद मेमोरियल हाल में राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच द्वारा ‘ उत्तरप्रदेश में वनाधिकार आंदोलन और वनाधिकार अधिनियम के क्रियान्वन व राष्ट्रीय आंदोलन की रणनीति’ पर एक दिवसीय प्रांतीय अधिवेशन आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में वनाच्छित जनपदों से लगभग 1000 लोगों ने भागीदारी निभाई। इस सम्मेलन में काफी महत्वपूर्ण जनपदों जैसे सहारनपुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, गोंण्ड़ा, गोरखपुर, महराजगंज, सोनभद्र, मिर्जापुर, वनगुर्जर समुदाय, चित्रकूट, चन्दौली के अलावा अन्य प्रदेशों जैसे उत्तराखंड़ व बिहार से भी संगठन के कार्यकताओं द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उददेश्य प्रदेश व वनाधिकार कानून को लागू करने में अधिकारीयों द्वारा कोताही बरतने व अधिकारीयों द्वारा वनविभाग से सांठ गांठ कर इस कानून को लागू करने में तरह तरह की अड़चनें पैदा कर रहे हैं। इसी के साथ कानून के पालन करने में राज्य व सरकार को चुनौती देने के लिए आगामी रणनीति के तहत 15 दिसम्बर 2011 को दिल्ली जाने का कार्यक्रम भी तय करना था, चूंकि इस समय संसद का सत्र चालू है।
इस कार्यक्रम महिलाए काफी संख्या में आई थी जिसमें आदिवासी, दलित व अन्य परम्परागत समुदाय की संख्या काफी अधिक थी। इस सभा में वनसमुदाय द्वारा काफी सरकार व सरकारी अधिकारीयों पर काफी गुस्सा फूटा चूंकि पांच वर्ष बाद भी यह कानून लागू नहीं हो पाया है। सहारनपुर से आए वनटांगीयां निवासी शेर सिंह ने कहा कि जहां उनका संगठन पहंुच जाता है वनविभाग को भागने की कहीं रास्ता नहीं मिलता है। शोभा सोनभद्र ने कहा कि इस कानून को लागू करने का काम हमारा है और खासतौर पर महिलाओं की जिन्हें इस कानून को लागू कराने में काफी मेहनत करनी है। इसलिए सभी महिलाए घरों में न रहे बल्कि आदमी घरों में रहे और महिलाए दिल्ली जा कर इस बात का जवाब ले कि इस कानून को लागू करने में इतनी बाधाए क्यों आ रही है। खीरी से रामचंद्र राणा ने कहा कि वनाश्रित समुदायों की लड़ाई हमारे अपने संगठन ने लड़ी है इसलिए यह वनाधिकार कानून भी पारित हुआ है इस लिए हमारी सरकार व वनविभाग के साथ सीधी टक्कर है। हमें राजनैतिक लोग कहते हैं कि आप संगठन की मिटिंग में क्यों जाते हैं।
सोनभद्र से आए रामशकल ने कहा कि सोनभद्र में हजारों की संख्या में आदिवासीयों के उपर झूठे मुकदमें लादे गए है जबकि वनाधिकार कानून लागू हो चुका है। एक तरफ तो अधिकार देने की बात कही जा रही है वहीं वनविभाग द्वारा झूठे फर्जी मुकदमें लाद कर जेल भेज रहा है। इसलिए अब इन मामलों में हम लोग जेल नहीं जाएगें और जबरदस्ती करेगें तो जेल भरो आंदोलन जाएगें। गोंण्ड़ा से आए ख्ुाशीराम और अमरसिहं ने जिलाप्रशासन गोण्ड़ा द्वारा टांगीयां वननिवासीयों पर झूठे केसों व अधिकार पत्र को उपखंड़ स्तरीय समिति द्वारा निरस्त करने के विषय में जिलाप्रशासन के खिलाफ एक जबरदस्त आंदोलन का ऐलान किया। पीलीभीत से आई गीता ने कहा कि अब अगर हमारे भूमि के अधिकार नहीं दिए जाएगें तो महिलाओं द्वारा खाली पड़ी भूमि पर अपना दख़ल कायम करेगें। सहारनपुर के शिवालिक जंगलों से आए वनगुर्जर घुमन्तु समुदा के तालिब हुसैन ने कहा कि अभी तक जंगलों में रहने वाले समुदायों जो कि घुमन्तु जनजाति से हैं को किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं मिला है।
मंच के संयोजक अशोक चैधरी ने वनाधिकार अधिनियम पारित होने को इतिहास पर जिक्र किया कि जनसंगठन ही सरकार को सही कर सकते हैं और अगर सरकार सहीं ढं़ग से कानून को लागू नहीं करती तो ऐसी सरकार का तख्ता जनता ही पलट सकती है। यह कार्यक्रम 15 दिसम्बर को इसलिए लिया गया क्योंकि इसी तारीख में पांच साल पहले यह कानून पास हुआ था संसद अभी चल रही है इन्हीं सब मुददों को लेकर संसद को घेरा जाएगा। अभी तक कई सांसदों ने इस कानून को पारित तक नहीं किया है। सारी पार्टीया सता के हिसाब से सोच रही है व अदिवासीयों, दलितो एवं किसानों की भूमि को लूटने में लगी है। पार्टीयां भी जनता से दूर होती जा रही है इसलिए संगठन की ताकत से ही जनता की ताकत को बढ़ाना है व जनशक्ति को बढ़ाना है।
एनएपीएम के संदीप पांडे ने कहा कि महिलाओं की इतनी संख्या काफी उत्साहजनक है और किसी भी सामाजिक बदलाव बिना महिलाओं की अगुवाई के नहीं हो सकता। स्थिति तो पहले भी गंभीर थी लेकिन उदारीकरण व भूमंडलीकरण की नीतियों के चलते प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर जनता के अधिकार समाप्त होते जा रहे हैं। वनाधिकार कानून को सही पालन बिल्कुल नहीं हो रहा है जिसके जिम्मेदार सरकार, प्रशासन, माफिया, सांमत, वनविभाग सब शामिल हैं।
ओमकार सिंह ने कहा कि इस कानून की जरूरत क्यों पड़ी क्योंकि देश जब आज़ाद हुआ तो इस कानून को पास नहीं किया गया और न ही वनों में रहने वालो को उनके अधिकार व जंगल नहीं सौंपे गए। केन्द्र सरकार में जो शासक वर्ग बैठे है वह मज़दूर विरोधी व ग़रीब विरोधी है। देश में जंगलों में कई विदेशी कम्पनियों का दखल हो गया है जिसके कारण काफी लोग हथियार उठाने पर मजबूर हो गए हैं। इस लिए इन सब मुददों को लड़ने के लिए हमारी पार्टी ने भी इन सब के लिए संघर्ष का ऐलान किया है जिसमें मेघा पाटकर, राजेन्द्र सच्चर, कुलदीप नययर आदि शामिल हैं। आज सामाजिक कार्यकता जो समाज में काम कर रहे हैं उनके उपर कार्यवाही की जा रही है जैसे सामाजिक कार्यकर्ता रोमा पर रासुका लगाई गई वह निदंनीय है । इस भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ बुलन्द करने की जरूरत है।
सम्मेलन में सबसे ज़ोरदार तरीके से महिलाओं ने बोला व ग्रामीण क्षेत्रों से आई थारू, उरांव, कोल, गोंड़ जनजाति व दलित महिलाओं ने जो वक्तव्य रखे वो निश्चित ही रूप से आने वाले दिनों में जनराजनीति की बयार की ओर इंगित कर रही थी। महिलाओं ने कहा कि अब जनता जागरूक हो रही है उसे मूर्ख बनाना इतना आसान नहीं है और न ही उनके अधिकारों को कुचलना। वक्ताओं ने कहा कि असली भ्रष्टाचार अधिकारों को न दिया जाना है जब तक जुल्म, आंतक व गैरबराबरी है तब तक भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता। जैसे वनाश्रित समुदायों के उपर जो उत्पीड़न हो रहा है उस के उपर अगर वह थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने जाते हैं तो दर्ज भी नहीं होती है।
सभी वक्ताओं ने कहा कि दिल्ली में केन्द्र सरकार को एक जबरदस्त धक्का देना जरूरी है इसलिए केवल उत्तरप्रदेश से 25000 लोग दिल्ली कूच करेगें व वहां पहुंच रहे अन्य देश के सभी संगठनों व जनांदोलनों जैसे मछुआरे के संगठन, खेतीहर मज़दूर के संगठन, महिला संगठन, ट्रेड यूनियन और उन तमाम लोग जो कि प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं उनके साथ एकजुट हो कर अपने वनाधिकार के लिए संघर्ष की रणनीति बनायेगें।
इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से वनाधिकारों के लिए गठित राज्य स्तरीय निगरानी समिति के रामचंद्र राणा, विशेष आंमत्रित सदस्य रोमा, राष्ट्रीय जनआंदोलन का समन्वय से संदीप पांडे, सोशिलिस्ट पार्टी के ओमकार सिंह, घरेलू कामगार यूनियन से गीता, राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच के संयोजक अशोक चैधरी, कैमूर क्षेत्र महिला मज़दूर संघर्ष समिति की शांता भटटाचार्य व रजनीश शामिल थे। मंच का संचालन शांता भटटाचार्य व मुजाहिद नफीस ने किया।
राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच
222, विधायक आवास, राजेन्द्र नगर, ऐशबाग रोड, लखनऊ, उत्तरप्रदेश
222, विधायक आवास, राजेन्द्र नगर, ऐशबाग रोड, लखनऊ, उत्तरप्रदेश
दिनांक- ०२-१२-२०११
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