.आसमानी हरियाली की एक कथा-
तोतो की कहानी
...यूँ तो हम लौट रहे थे राजस्थान की राजधानी जयपुर से जहां की शहरी आबादी के मध्य भी हाउस क्रो (सफ़ेद गले वाला कौआ) और पी-काक यानि मोर के दर्शन राज-मार्गों पर भी हो रहे थे, भरतपुर वन्य जीव विहार भी अभी भी प्रवासी पक्षियों के इन्तजार में था, अब तलक वो विदेशी मेहमानों ने यहां दस्तक नही दी थी..शायद पानी की कमी इसका बड़ा कारण था ! केवलादेव में फ़लों वाले वृक्ष और झाड़ियां यहां तमाम स्थानीय पक्षी प्रजातियों को आश्रय दिए हुए है...घाना की यही विशेषता रंग-बिरंगी चिड़ियों को यहां बसेरा लेने के लिए आकर्षित करती है! मोटे तौर पर यहां पेन्टेड स्टार्क का प्रजनन चल रहा था, मोर अपने बच्चों के साथ वन्य जीव विहार में घूम रहे थे, और तोते बड़े मजे से कौआ-गोड़ी का मजा ले रहे थे...कौआ गोड़ी लाल रंग का एक फ़ल होता है...अम्मा ऎसा बताती है, ये स्थानीय शब्द है अवध का इस फ़ल का...!..हां बात तोतो की है यानि उस अदभुत आसमानी हरियाली की......
भरतपुर मथुरा मार्ग पर एक नदी पर बने ब्रिटिश-भारत के पुल के निकट एक विशाल वृक्ष जिस पर मड़राती हरियाली नें मुझे आकर्षित किया और वही मैं ठहर गया कुछ घंटों के लिए...उस पेड़ के ट्री-होल में तोतों ने घोसला बनाया था, और बारी-बारी से नर-मादा अपने बच्चों को चूंगा देने के लिए आते उनके उर्ध्वाधर होकर वृक्ष के तने पर रुके रहना उनके पंजों की बनावट का नतीजा था। अपनी संतति को सेने की यह आतुरता जो प्रकृति से मिली है हर जीव को उसने मुझे आकर्षित किया नतीजतन उन उड़ने वाली हरियाली की तमाम तस्वीरों के साथ उनका ब्योरा यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
Rose-ringed Parakeet (Psittacula krameri) तोतो की यह प्रजाति अभी भी सामन्यत: दिखाई देती है, इस पक्षी में नर के गले में एक लाल रंग के छल्ले जैसा निशान होता है, और इसकी तमाम सहोदर प्रजातियां जब कम हो रही है तब भी यह अपने को इस प्रतिकूल वातावरण में अपने को बचा पाने में कुछ कुछ सक्षम प्रतीत होता है। इसी प्रजाति की यह सभी तस्वीरे है, और इन्ही जनाब ने जगह जगह मुझे अपने दीदार कराये।
सामन्यता तोतो को सिटेसेन्ज (Psittacines) पक्षी कहते है, इनकी लगभग ३७२ किस्में है, ७८ जेनरा के अन्तर्गत, आर्डर Psittaciformes. ये मुख्यता उष्णकटिबंधीय प्रदेश एंव उपोष्णकटिबंधीय (मकर रेखा तथा कर्क रेखा से लगे हुए क्षेत्र) में पाये जाते है, यह आर्डर तीन परिवारों में विभक्त किया गया है-Psittacidae (true parrots), Cacatuidae (Cockatoos), एंव Strigopidae (newzealand parrots)- इनका वितरण Pantropical यानि ट्रापिक्स के दोनो तरफ़ है, अफ़्रीका, एशिया, और अमेरिका ।
झुकावदार चोच, मजबूत टांगे, व पंजे, नाखून (जाइगोडेक्टाइली- यानि २-३ आगे- २ पीछे की तरफ़ जो इन्हे किसी भी वृक्ष की टहनी पर मजबूती से रुके रहने में मदद करते है), ये विभिन्न रंगों से सजे हुए होते है, इनके आकार में लैंगिक असमानता ज्यादा नही होती, सभी तोते वृक्षों की खोह (holes) में घोसले बनाते है। और अण्डे देते है।
यह काफ़ी बुद्धिमान पक्षी है, और इन्सान की आवाज की नकल करने में माहिर, हर परिस्थिति में जीवन याप्न की क्षमता, बस मनुष्य की आवाज की नकल बना लेने की दक्षता ने इसके व्यापार को बढावा दिया और यह आसमानी हरियाली पिजड़ों में कैद की जाने लगी। इसका आहार मुख्यता, पुष्प, फ़ल, बीज या वृक्षों के अन्य हिस्से है।
तोतों की घटती आबादी अवैध व्यापार तो है ही, साथ ही उनके प्राकृतिक आवासों के नष्ट हो जाने से इस खूबसूरत प्रजाति पर संकट आ गया है, अब न तो विशाल वृक्ष बचे है जिनकी खोहों में ये परिन्दे अपने घोसले बनाये और न ही फ़लदार वृक्ष जिससे ये अपना और अपनी सन्तति का पोषण कर सके, अब सरकारे भी सड़क के किनारे एसे वृक्षों और झाड़ियों का रोपड़ कर रही है, जिनमें न तो फ़ल आते है और न ही उनमें पक्षियों के बसेरा करने लायक जगह होती है, यहां आप को बताना चाहूंगा कि ब्रिटिश भारत में सड़कों के किनारे, नीम, जामुन, पाकड़, बरगद, आम, व पीपल जैसे विशाल वृक्षों का रोपड़ कराया जाता था, जो आज भी कही कही मौजूद है, यदि आप इसका सुन्दर नमूना देखना चाहे तो पीलीभीत से बरेली मार्ग पर सड़क के दोनों तरफ़ पाकड़ जैसे विशाल वृक्ष मौजूद है जिनके असख्य फ़लों पर तमाम पक्षी प्रजातियां अपना पोषण करती है, और शाखाओं की खोहों में अनगिनत जीव बसेरा करते है।
लखीमपुर खीरी के तराई जनपद में मैं बचपन में सांझ के वक्त जब छत पर होता तो आसमान की तरफ़ सिर उठाने पर हजारों की तादाद में तोते अपने रैन-बसेरों की तरफ़ जाते दिखाई देते है, और आज एक भी तोता सांझ को आसमान से नदारद है क्यों...नष्ट कर दिए गये आवास और इनके भोजन की वजह से यह एक सवाल है जो सिर्फ़ तोतों के लिए नही तमाम पक्षी प्रजातियों के लिए जो अपना जीवन-चक्र चलाने की जद्दोजहद में है।
खीरी जनपद की बात चली तो एक और गौर तलब बात है कि यहां पलाश के तमाम बड़े जंगल हुआ करते थे , और ये भूमियां या परती भूमि के अन्तर्गत आती थी या फ़िर ग्राम-सभाओं की जमीन....यहां अवैध पट्टे व मानव आबादी की बसाहट ने इन पलाश के बनों को नष्ट कर दिया, पलाश के बूढ़े वृक्षों में तमाम खोहे हो जाते है और यही खोहे इन तोतो या अन्य पक्षी प्रजातियों को घोसले बनाने और अपनी सन्तति को आगे बढाने में मदद करती थी।...किन्तु अब ऎसा कुछ नही बचा न ही खूबसूरत पलाश और न ही ये तोते...और न ही वह सुन्दर जुगलबन्दी...लाल और हरे रंग की !
कृष्ण कुमार मिश्र ( बस यूं ही घूमते रहना और प्रकृति की सुन्दरता और अदभुत अभिव्यक्तियों के साथ साथ प्रकृति की ही एक रचना यानि मनुष्य की मनोदशाओं का असफ़ल? अध्ययन करना... मुझसे सम्पर्क करे krishna.manhan@gmail.com पर !)
तोतो की कहानी
...यूँ तो हम लौट रहे थे राजस्थान की राजधानी जयपुर से जहां की शहरी आबादी के मध्य भी हाउस क्रो (सफ़ेद गले वाला कौआ) और पी-काक यानि मोर के दर्शन राज-मार्गों पर भी हो रहे थे, भरतपुर वन्य जीव विहार भी अभी भी प्रवासी पक्षियों के इन्तजार में था, अब तलक वो विदेशी मेहमानों ने यहां दस्तक नही दी थी..शायद पानी की कमी इसका बड़ा कारण था ! केवलादेव में फ़लों वाले वृक्ष और झाड़ियां यहां तमाम स्थानीय पक्षी प्रजातियों को आश्रय दिए हुए है...घाना की यही विशेषता रंग-बिरंगी चिड़ियों को यहां बसेरा लेने के लिए आकर्षित करती है! मोटे तौर पर यहां पेन्टेड स्टार्क का प्रजनन चल रहा था, मोर अपने बच्चों के साथ वन्य जीव विहार में घूम रहे थे, और तोते बड़े मजे से कौआ-गोड़ी का मजा ले रहे थे...कौआ गोड़ी लाल रंग का एक फ़ल होता है...अम्मा ऎसा बताती है, ये स्थानीय शब्द है अवध का इस फ़ल का...!..हां बात तोतो की है यानि उस अदभुत आसमानी हरियाली की......
भरतपुर मथुरा मार्ग पर एक नदी पर बने ब्रिटिश-भारत के पुल के निकट एक विशाल वृक्ष जिस पर मड़राती हरियाली नें मुझे आकर्षित किया और वही मैं ठहर गया कुछ घंटों के लिए...उस पेड़ के ट्री-होल में तोतों ने घोसला बनाया था, और बारी-बारी से नर-मादा अपने बच्चों को चूंगा देने के लिए आते उनके उर्ध्वाधर होकर वृक्ष के तने पर रुके रहना उनके पंजों की बनावट का नतीजा था। अपनी संतति को सेने की यह आतुरता जो प्रकृति से मिली है हर जीव को उसने मुझे आकर्षित किया नतीजतन उन उड़ने वाली हरियाली की तमाम तस्वीरों के साथ उनका ब्योरा यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
Rose-ringed Parakeet (Psittacula krameri) तोतो की यह प्रजाति अभी भी सामन्यत: दिखाई देती है, इस पक्षी में नर के गले में एक लाल रंग के छल्ले जैसा निशान होता है, और इसकी तमाम सहोदर प्रजातियां जब कम हो रही है तब भी यह अपने को इस प्रतिकूल वातावरण में अपने को बचा पाने में कुछ कुछ सक्षम प्रतीत होता है। इसी प्रजाति की यह सभी तस्वीरे है, और इन्ही जनाब ने जगह जगह मुझे अपने दीदार कराये।
सामन्यता तोतो को सिटेसेन्ज (Psittacines) पक्षी कहते है, इनकी लगभग ३७२ किस्में है, ७८ जेनरा के अन्तर्गत, आर्डर Psittaciformes. ये मुख्यता उष्णकटिबंधीय प्रदेश एंव उपोष्णकटिबंधीय (मकर रेखा तथा कर्क रेखा से लगे हुए क्षेत्र) में पाये जाते है, यह आर्डर तीन परिवारों में विभक्त किया गया है-Psittacidae (true parrots), Cacatuidae (Cockatoos), एंव Strigopidae (newzealand parrots)- इनका वितरण Pantropical यानि ट्रापिक्स के दोनो तरफ़ है, अफ़्रीका, एशिया, और अमेरिका ।
झुकावदार चोच, मजबूत टांगे, व पंजे, नाखून (जाइगोडेक्टाइली- यानि २-३ आगे- २ पीछे की तरफ़ जो इन्हे किसी भी वृक्ष की टहनी पर मजबूती से रुके रहने में मदद करते है), ये विभिन्न रंगों से सजे हुए होते है, इनके आकार में लैंगिक असमानता ज्यादा नही होती, सभी तोते वृक्षों की खोह (holes) में घोसले बनाते है। और अण्डे देते है।
यह काफ़ी बुद्धिमान पक्षी है, और इन्सान की आवाज की नकल करने में माहिर, हर परिस्थिति में जीवन याप्न की क्षमता, बस मनुष्य की आवाज की नकल बना लेने की दक्षता ने इसके व्यापार को बढावा दिया और यह आसमानी हरियाली पिजड़ों में कैद की जाने लगी। इसका आहार मुख्यता, पुष्प, फ़ल, बीज या वृक्षों के अन्य हिस्से है।
तोतों की घटती आबादी अवैध व्यापार तो है ही, साथ ही उनके प्राकृतिक आवासों के नष्ट हो जाने से इस खूबसूरत प्रजाति पर संकट आ गया है, अब न तो विशाल वृक्ष बचे है जिनकी खोहों में ये परिन्दे अपने घोसले बनाये और न ही फ़लदार वृक्ष जिससे ये अपना और अपनी सन्तति का पोषण कर सके, अब सरकारे भी सड़क के किनारे एसे वृक्षों और झाड़ियों का रोपड़ कर रही है, जिनमें न तो फ़ल आते है और न ही उनमें पक्षियों के बसेरा करने लायक जगह होती है, यहां आप को बताना चाहूंगा कि ब्रिटिश भारत में सड़कों के किनारे, नीम, जामुन, पाकड़, बरगद, आम, व पीपल जैसे विशाल वृक्षों का रोपड़ कराया जाता था, जो आज भी कही कही मौजूद है, यदि आप इसका सुन्दर नमूना देखना चाहे तो पीलीभीत से बरेली मार्ग पर सड़क के दोनों तरफ़ पाकड़ जैसे विशाल वृक्ष मौजूद है जिनके असख्य फ़लों पर तमाम पक्षी प्रजातियां अपना पोषण करती है, और शाखाओं की खोहों में अनगिनत जीव बसेरा करते है।
लखीमपुर खीरी के तराई जनपद में मैं बचपन में सांझ के वक्त जब छत पर होता तो आसमान की तरफ़ सिर उठाने पर हजारों की तादाद में तोते अपने रैन-बसेरों की तरफ़ जाते दिखाई देते है, और आज एक भी तोता सांझ को आसमान से नदारद है क्यों...नष्ट कर दिए गये आवास और इनके भोजन की वजह से यह एक सवाल है जो सिर्फ़ तोतों के लिए नही तमाम पक्षी प्रजातियों के लिए जो अपना जीवन-चक्र चलाने की जद्दोजहद में है।
खीरी जनपद की बात चली तो एक और गौर तलब बात है कि यहां पलाश के तमाम बड़े जंगल हुआ करते थे , और ये भूमियां या परती भूमि के अन्तर्गत आती थी या फ़िर ग्राम-सभाओं की जमीन....यहां अवैध पट्टे व मानव आबादी की बसाहट ने इन पलाश के बनों को नष्ट कर दिया, पलाश के बूढ़े वृक्षों में तमाम खोहे हो जाते है और यही खोहे इन तोतो या अन्य पक्षी प्रजातियों को घोसले बनाने और अपनी सन्तति को आगे बढाने में मदद करती थी।...किन्तु अब ऎसा कुछ नही बचा न ही खूबसूरत पलाश और न ही ये तोते...और न ही वह सुन्दर जुगलबन्दी...लाल और हरे रंग की !
कृष्ण कुमार मिश्र ( बस यूं ही घूमते रहना और प्रकृति की सुन्दरता और अदभुत अभिव्यक्तियों के साथ साथ प्रकृति की ही एक रचना यानि मनुष्य की मनोदशाओं का असफ़ल? अध्ययन करना... मुझसे सम्पर्क करे krishna.manhan@gmail.com पर !)
Unko Salam hai ki Jab Aadmi Nature se dur jakar sirf apni hi Paresaniyo me gumsuda hai to ek sarfira Parindo ka falsafa to likh raha hai ki ham bhi Zinda rahna chahte hai......
ReplyDeleteएक बार मेरे बचपन में मैं छत पर पतंग उड़ा रहा था,अचानक तोतों का एक झुण्ड आते देखा तो शैतानी आ गयी और पतंग के धागे को उस झुण्ड में ले जा कर इधर उधर करने लगा। पता न था मेरी शैतानी उन मासूमों मेसे एक की जान ले लेगी।
ReplyDeleteमेरे सारे दोस्त हंसकर बोले़़़वाह! क्या कमाल कर दिया।
पर मुझे न जाने बेहद अफसोस हुआ जो आज भी होता है जब याद आ जाता है उसका कटा हुआ पर (पंख) जिसने मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ा था।
तब सोचा कि यही सब अगर मेरे साथ हुआ होता मैं मेरे परिवार या दोस्तों साथ होता और ये हादसा मेरे साथ होता तो धीरे-धीरे निकलती जान और तड़पते जिश्म के साथ मैं यही सोचता ''अभी बस थोड़ी देर पहेले मैं मेरे अपनो के साथ था कितना खुश था'' हे ईश्वर ये क्या हुआ?
उस मासूम ने भी कुछे ऐसा ही सोचा होगा।
Very good efforts Mr. Mishra. Indeed inspiring.
ReplyDeleteWe all need to do our bit for promotion and conservation of fauna and flora of this lively planet.
K K Mishra
Mumbai
:) Amazing efforts. Aap bahut hi acha kaam kar rahe hein..
ReplyDeletevery good effort ...m always wid u ...:)
ReplyDeleteअच्छा लगा यहाँ आकर।
ReplyDeletebe in touch face book sidhi kumar (pradhan)
ReplyDeleteBahut sundar aalekh. Kash ham apnaa daayitv samajhe aur is sundar pakshi ko bachane me sahayog kar sake.
ReplyDeletekarishna kumar ji hum aapke vicharon aur is abhiyan se bahut hi prabhavit hain.aap apne is ullekhniye karya k liye sachmuch me prasansa k patr hai.hame khusi hogi agar hum aapke is abhiyan me kisi tarah ka sahyog kar saken.
ReplyDeleteउत्तरप्रदेश और उत्तरांचल में भी पाकड़ और पीपल का स्थान अब पापुलर ने ले लिया है। वास्तव में हमें पक्षियों के लिये भी उपयुक्त वृक्षारोपण करना चाहिये।
ReplyDeletekrishna kumar ji sabse pahle to shukriya aapko!!!..dudhwalive k pahle mukhprishth se aapne apne tote udaa diye!!!...:)..aur phir dobara shukriya!!behad khoobsoorat jaankaari k liye!!!sadakon k kinaare pedon ki baat aapne kahi hai...!!main mehsoos kar sakti hoon aapki bhavnaaon ko kyonki main jahaan rahti hoon kasturbagram,indore mein wahaan bhi yahi sab dekhne aur mehsoos karne ko milta hai!!!...jo aaj k samay mein koi bhi nhi sochta!!!..
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