दुधवा टाइगर रिजर्व में थारू महिलाओं ने की घुसपैठ-
दर्जनों डनलप जलौनी लकड़ी व घास जंगल से बाहर ले गयी और सरकारी अमला मुहं ताकता रहा !
जिनका सदियों का नाता था जंगल से आज वह टूट चुका है, कारण हैं सरकारी फ़रमान जो सिर्फ़ सरकारी फ़ायदों के लिए होते है जनता के लाभ वाले मुखौटे के साथ-
दुधवा से देवेंद्र पंकाश की रिपोर्ट-
केन्द्र सरकार के वनाधिकार कानून को हथियार बनाकर आदिवासी जनजाति थारूक्षेत्र की सैकड़ों महिलाओं ने दुधवा नेशनल पार्क के जंगल में धावा बोल दिया और दर्जनों डनलप यानी भैंसा गाडि़यों में गिरी पड़ी जलौनी लकड़ी जबरन भरकर घर ले आई। सूचना पर दलबल सहित पहुंचे एसडीएम, सीओ तथा पार्क अधिकारी मौके पर मूक दर्शक यूं बने रहे क्योंकि महिलाओं से निपटने के लिए उनके पास न कोई योजना थी और न उपाय। थारूक्षेत्र की महिलाओं के इस कदम से भविष्य में पार्क प्रशासन तथा थारूओं के बीच टकराव की नयी पृष्ठभूमि तैयार हो गई।
केन्द्र सरकार के वनाधिकार कानून को हथियार बनाकर आदिवासी जनजाति थारूक्षेत्र की सैकड़ों महिलाओं ने दुधवा नेशनल पार्क के जंगल में धावा बोल दिया और दर्जनों डनलप यानी भैंसा गाडि़यों में गिरी पड़ी जलौनी लकड़ी जबरन भरकर घर ले आई। सूचना पर दलबल सहित पहुंचे एसडीएम, सीओ तथा पार्क अधिकारी मौके पर मूक दर्शक यूं बने रहे क्योंकि महिलाओं से निपटने के लिए उनके पास न कोई योजना थी और न उपाय। थारूक्षेत्र की महिलाओं के इस कदम से भविष्य में पार्क प्रशासन तथा थारूओं के बीच टकराव की नयी पृष्ठभूमि तैयार हो गई।
भारत-नेपाल सीमावर्ती दुधवा नेशनल पार्क के वनागोश में आबाद आदिवासी जनजाति थारूओं की पंद्रह ग्राम पंचायतों को राजस्व ग्राम का दर्जा हासिल है परन्तु दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के बाद से थारूओं को जंगल से मिलने वाली सुविधाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। यहां तक दुधवा में प्रोजेक्ट टाइगर लागू होने के बाद से कोर एरिया विगत 2006 में केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति एवं परम्परागत वन निवासी अधिनियम यानी वनाधिकार कानून को लागू कर दिया। वन क्षेत्र में आबाद ग्राम सूरमा तथा गोलबोझी के निवासियों को विगत माह मार्च में घर तथा कृषि जमीन के अधिकार पत्र तो प्रशासन ने थारूओं को सौंप दिए परन्तु वनाधिकार कानून के मुताबिक थारूओं को वन उपज का सामूहिक अधिकार नहीं मिल सका है। हालांकि वन कर्मचारी निज स्वार्थ में वह सभी कार्य करा रहे हैं जो प्रतिबंधित है। इसके चलते थारूओं में भारी रोष फैल गया है। आखिर आज थारूओं के परिवारों की महिलाओं के गुस्से का लावा उबाल बनकर फूट पड़ा।
केन्द्र सरकार के वनाधिकार कानून को हथियार बनाकर थारूक्षेत्र के ग्राम सौनहा, देवराही, मसानखंभ, जयनगर आदि ग्रामों की सैकड़ों महिलाएं एकजुट हो गई और दुधवा नेशनल पार्क के देवराही जंगल में घुस गयी। धावा बोलकर जंगल में थारूओं की घुसने की सूचना से पार्क प्रशासन में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में दुधवा वार्डन ईश्वर दयाल आसपास के रेंजरों सहित भारी संख्या में पार्क कर्मचारियों को लेकर वहां पहुंच गए। उधर एसडीएम सीपी तिवारी, सीओ विवेक चंद्रा, तहसीलदार अशोक सिंह भी भारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए। सरकारी अमले को जमा होता देख उग्र थारू महिलाओं ने तीखा विरोध जताया और कहा कि हम लोग जंगल से वही जलौनी लकड़ी लाएंगे जो गिरी पड़ी है और सड़ जाती है। महिलाओं के विकराल रूप के आगे पूरा प्रशासनिक अमला मूक दर्शक बना रहा किसी की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि वह थारू महिलाओं कों जंगल में घुसने से रोक सके। कुछेक घंटों के भीतर जंगल में घुसी सैकड़ों महिलाएं दर्जनों डनलप यानी भैंसा गाडि़यों में भरकर लाई गई जलौनी लकड़ी लेकर घर चली गई इसपर प्रशासनिक अमला भी धीरे-धीरे वापस आ गया।
पलियाकलां-खीरी। वनाधिकार कानून में सामुदायिक अधिकारों के तहत वन उपज का लाभ थारूओं को दिए जाने का प्राविधान किया गया है लेकिन प्रशासन थारू गांवों के निवासियों के सामुदायिक अधिकार दावा फार्म नहीं भरा रहा है। इससे थारूओं में भारी रोष फैल गया है। थारू महिलाओं के जंगल में जबरन घुसने की हुई घटना से अब यह लगने लगा है कि यदि शासन प्रशासन अथवा वन विभाग ने समय रहते सामुदायिक अधिकार थारूओं को नहीं दिए तो भविष्य में टकराव हो सकता है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। एसडीएम सीपी तिवारी का कहना है कि जब तक सामुदायिक अधिकारों से संबंधित कोई शासनादेश जारी नहीं हो जाता है इससे पूर्व थारूओं द्वारा उठाया गया कदम गैर कानूनी है। श्री तिवारी ने यह भी कहा है कि ग्रामीणों में जागरूकता के लिए वनाधिकार आदि से संबंधित गांव-गांव शिविर लगाकर उनको प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं एडवोकेट है)
dpmishra7@gmail.com
No comments:
Post a Comment
आप के विचार!