अपने घर की छत पर कुंडे में पानी भरते हुए सुचित सेठ |
शाहजहांपुर के घूरनतलैया मोहल्ले के मकान नंबर : 54 की कहानी
हिन्दुस्तान ने सुधरवा दी पांच साल पुरानी एक गलती
मुहिम
-यहां एक मां देती आई थी चिड़ियों को हर रोज पानी और दाना
-5 साल पहले मां की मौत के बाद चिड़ियों को बंद हो गया दाना, पानी
-हिन्दुस्तान की अपील के बाद फिर मिलने लगा चिड़ियों को दाना-पानी
हिन्दुस्तान ने सुधरवा दी पांच साल पुरानी एक गलती
मुहिम
-यहां एक मां देती आई थी चिड़ियों को हर रोज पानी और दाना
-5 साल पहले मां की मौत के बाद चिड़ियों को बंद हो गया दाना, पानी
-हिन्दुस्तान की अपील के बाद फिर मिलने लगा चिड़ियों को दाना-पानी
दुधवा लाइव: शाहजहांपुर
आइए हमारे साथ चलिए शाहजहांपुर के घूरनतलैया के मकान नंबर 54 में। यहां छोटी सी एक बगिया है, पीपल का एक पेड़ लगा है। पेड़ की छांव इन दिनों गर्मी में बेहद राहत दे रही थी। इस घर में पूजा-पाठ करके हवाई चप्पल पहने सुचित सेठ बाहर आए। राम-राम हुई। इसके बाद उनसे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। बगिया के बारे में, पीपल के पेड़ के बारे में, मां के बारे में, चिड़ियों के बारे में।
खबर शुरू करने से पहले आपको बता दें कि सुचित सेठ शाहजहांपुर शहर के लोगों के लिए अनजाना नाम नहीं है। सुचित का फोन हिन्दुस्तान दफ्तर में खनखनाया। फोन रिसीव होते ही सुचित ने कहा कि हिन्दुस्तान ने आज हमें पांच साल पुरानी एक गलती का अहसास कराया है। उस गलती को आज मैंने सुधारा है।
9 अक्टूबर 2006
बकौल सुचित : मेरी मां शशि सेठ जीजीआईसी में टीचर थीं। रोज का नियम था उनका...पूजा करने के बाद वह छत पर जाती थीं... एक हाथ में पानी का जग और दूसरे हाथ की मुटठी में चावल के दाने रहते थे। छत पर जाकर वह कुंडे में पानी भरती थीं और चावल के दानों को बिखरा देती थीं। उनके इस नियम को मैं बचपन से देखता था। रिटायरमेंट के बाद आठ अक्टूबर 2006 को उनका देहावसान हो गया। बकौल सुचित, मां की मौत के बाद नौ अक्टूबर 2006 से हम सब मां के नियम को बढ़ा नहीं सके। चिड़ियों को दाना और पानी बंद हो गया।
9 मई 2011
सुचित के घर नौ मई 2011 को सुबह हिन्दुस्तान अखबार पहुंचा। पहले पन्ने पर पहली ही खबर... तपती धरती, प्यासे पक्षी, आगे आएं, कुंडे लगाएं...सुचित ने इस समाचार को पढ़ा और पढ़ने के बाद याद आई मां। वह मां जिसकी गोद में वह खेले, जिसका प्यार और दुलार जैसे उन्हें मिला, वैसे ही चिड़ियों को भी मिला था। फिर हुआ गलती का अहसास...गलती यह कि मां थीं तो वह चिड़ियों को दाना और पानी देती थीं। आंखें भर आईं, यह सोच कर मां ने बेटे के रूप में उन्हें पाला और बेटियों के रूप में चिड़ियों को। इस नाते चिड़ियां तो उनकी बहन हुईं। ऐसी गर्मी में कैसे रह पाती होगी मेरी बहन यानी चिड़ियां। उन्होंने पूजा की और भगवान के सामने सकंल्प कि आज से मैं चिड़ियों को हर रोज दाना और पानी दूंगा।
फ्लैश बैक : 1892
शाहजहांपुर शहर में उस वक्त प्रताप नारायण सेठ को कौन नहीं जानता था। खासे पैसे वाले थे। घूरनतलैया में उन्होंने मकान बनवाया था। मकान की छतें धन्नियों पर टिकी थीं। उनके तीन बेटे सुचित, मुदित, पंकज हुए। धीरे-धीरे सब बढें, पढ़े और अपने काम धंधे में लग गए। मकान भी प्रताप नारायण सेठ और शशि सेठ की काया की तरह कमजोर होने लगा। धन्नियों में दीमक लग गई। धीरे-धीरे मकान की छत सीमेंटेड हो गईं। अब केवल पूजा का कमरा ही है, जिसकी छत अभी धन्नी पर टिकी है। तब मकान में ताखे भी थे, अब नहीं। चिड़िया तब भी आती थी, अब भी। तब उन्हें दाना-पानी मिलता था।
हिन्दुस्तान को सलाम
सुचित ने हिन्दुस्तान को सलाम भेजा है। उन्होंने कहा कि लोगों को उनके सामाजिक सरोकारों को याद दिलाने के लिए जो बीड़ा हिन्दुस्तान ने उठाया है, वह बेहद सराहनीय है। हिन्दुस्तान तो एक ऐसा अखबार है, जो खबरें ही नहीं छापता, बल्कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को याद दिलाता है। बोले, मैं हिन्दुस्तान के माध्यम से लोगों से अपील करता हूं कि वह भी अपने घरों में कुंडे रखें और चिड़ियों को दाना दें। उनकी इस मुहिम में उनका कक्षा तीन में पढ़ने वाला भतीजा माधव सेठ भी शामिल है।
आइए हमारे साथ चलिए शाहजहांपुर के घूरनतलैया के मकान नंबर 54 में। यहां छोटी सी एक बगिया है, पीपल का एक पेड़ लगा है। पेड़ की छांव इन दिनों गर्मी में बेहद राहत दे रही थी। इस घर में पूजा-पाठ करके हवाई चप्पल पहने सुचित सेठ बाहर आए। राम-राम हुई। इसके बाद उनसे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। बगिया के बारे में, पीपल के पेड़ के बारे में, मां के बारे में, चिड़ियों के बारे में।
खबर शुरू करने से पहले आपको बता दें कि सुचित सेठ शाहजहांपुर शहर के लोगों के लिए अनजाना नाम नहीं है। सुचित का फोन हिन्दुस्तान दफ्तर में खनखनाया। फोन रिसीव होते ही सुचित ने कहा कि हिन्दुस्तान ने आज हमें पांच साल पुरानी एक गलती का अहसास कराया है। उस गलती को आज मैंने सुधारा है।
9 अक्टूबर 2006
बकौल सुचित : मेरी मां शशि सेठ जीजीआईसी में टीचर थीं। रोज का नियम था उनका...पूजा करने के बाद वह छत पर जाती थीं... एक हाथ में पानी का जग और दूसरे हाथ की मुटठी में चावल के दाने रहते थे। छत पर जाकर वह कुंडे में पानी भरती थीं और चावल के दानों को बिखरा देती थीं। उनके इस नियम को मैं बचपन से देखता था। रिटायरमेंट के बाद आठ अक्टूबर 2006 को उनका देहावसान हो गया। बकौल सुचित, मां की मौत के बाद नौ अक्टूबर 2006 से हम सब मां के नियम को बढ़ा नहीं सके। चिड़ियों को दाना और पानी बंद हो गया।
9 मई 2011
सुचित के घर नौ मई 2011 को सुबह हिन्दुस्तान अखबार पहुंचा। पहले पन्ने पर पहली ही खबर... तपती धरती, प्यासे पक्षी, आगे आएं, कुंडे लगाएं...सुचित ने इस समाचार को पढ़ा और पढ़ने के बाद याद आई मां। वह मां जिसकी गोद में वह खेले, जिसका प्यार और दुलार जैसे उन्हें मिला, वैसे ही चिड़ियों को भी मिला था। फिर हुआ गलती का अहसास...गलती यह कि मां थीं तो वह चिड़ियों को दाना और पानी देती थीं। आंखें भर आईं, यह सोच कर मां ने बेटे के रूप में उन्हें पाला और बेटियों के रूप में चिड़ियों को। इस नाते चिड़ियां तो उनकी बहन हुईं। ऐसी गर्मी में कैसे रह पाती होगी मेरी बहन यानी चिड़ियां। उन्होंने पूजा की और भगवान के सामने सकंल्प कि आज से मैं चिड़ियों को हर रोज दाना और पानी दूंगा।
फ्लैश बैक : 1892
शाहजहांपुर शहर में उस वक्त प्रताप नारायण सेठ को कौन नहीं जानता था। खासे पैसे वाले थे। घूरनतलैया में उन्होंने मकान बनवाया था। मकान की छतें धन्नियों पर टिकी थीं। उनके तीन बेटे सुचित, मुदित, पंकज हुए। धीरे-धीरे सब बढें, पढ़े और अपने काम धंधे में लग गए। मकान भी प्रताप नारायण सेठ और शशि सेठ की काया की तरह कमजोर होने लगा। धन्नियों में दीमक लग गई। धीरे-धीरे मकान की छत सीमेंटेड हो गईं। अब केवल पूजा का कमरा ही है, जिसकी छत अभी धन्नी पर टिकी है। तब मकान में ताखे भी थे, अब नहीं। चिड़िया तब भी आती थी, अब भी। तब उन्हें दाना-पानी मिलता था।
हिन्दुस्तान को सलाम
सुचित ने हिन्दुस्तान को सलाम भेजा है। उन्होंने कहा कि लोगों को उनके सामाजिक सरोकारों को याद दिलाने के लिए जो बीड़ा हिन्दुस्तान ने उठाया है, वह बेहद सराहनीय है। हिन्दुस्तान तो एक ऐसा अखबार है, जो खबरें ही नहीं छापता, बल्कि अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को याद दिलाता है। बोले, मैं हिन्दुस्तान के माध्यम से लोगों से अपील करता हूं कि वह भी अपने घरों में कुंडे रखें और चिड़ियों को दाना दें। उनकी इस मुहिम में उनका कक्षा तीन में पढ़ने वाला भतीजा माधव सेठ भी शामिल है।
( विवेक सेंगर, लेखक हिन्दुस्तान शाहजहांपुर के ब्यूरो चीफ हैं, सामाजिक सरोकारों पर पैनी नज़र, संवेदनशील लेखन, विभिन्न प्रतिष्ठित अखबारों में उप-संपादक/ब्यूरो प्रमुख के तौर पर कार्यानुभव, इनसे viveksainger1@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।)
HI,
ReplyDeleteWE ARE THRILLED TO READ THIS TOUCHING STORY.
MANY-2 CONGRATULATIONS & REGARDS TO VIVEK JEE & MY BIG BRO.!
PANKAJ SETH
SAHARA HOSPITAL, LUCKNOW